दिल्ली हाईकोर्ट ने विदेश मंत्रालय से यूएई की 'जेल में बंद' सॉफ्टवेयर इंजीनियर की स्थिति के बारे में अबू धाबी के अधिकारियों से जानकारी मांगने को कहा

Update: 2023-02-16 11:04 GMT

दिल्ली हाईकोर्ट ने गुरुवार को एक पिता की उस याचिका पर नोटिस जारी किया जिसमें उसने अपने बेटे के बारे में जानकारी मांगी थी, जिसके बारे में कहा जाता है कि वह संयुक्त अरब अमीरात में जेल में बंद है।

जस्टिस प्रतिभा एम सिंह ने विदेश मंत्रालय (एमईए) से अबू धाबी में अधिकारियों से व्यक्ति से संबंधित सभी प्रासंगिक जानकारी प्राप्त करने को कहा।

यह 54 वर्षीय जाकिर हुसैन का मामला है कि उनके और साथ ही भारतीय अधिकारियों द्वारा बार-बार प्रयास किए जाने के बावजूद उनके बेटे को हिरासत में लेने के कारणों के बारे में कोई कारण या जानकारी साझा नहीं की गई। याचिका के अनुसार उनका बेटा एक सॉफ्टवेयर इंजीनियर है। वह 20-21 जुलाई, 2019 की दरम्यानी रात को लापता हो गया था।

सुनवाई के दौरान यूनियन ऑफ इंडिया की ओर से पेश वकील ने कहा कि सरकार इस मामले को आगे बढ़ा रही है और याचिकाकर्ता के बेटे को संयुक्त अरब अमीरात की संघीय अदालत ने 10 साल कैद की सजा सुनाई है।

वकील ने कहा, "हमने बार-बार कांसुलर एक्सेस के लिए अनुरोध किया है, और हम फैसले की प्रति भी मांग रहे हैं।"

अदालत के इस सवाल पर कि याचिकाकर्ता के बेटे को कांसुलर एक्सेस क्यों नहीं दिया गया, वकील ने कहा, "मुझे इसकी पुष्टि करनी होगी, लेकिन मुझे बताया गया है कि दूतावास के अधिकारी याचिकाकर्ता के बेटे से अब तक तीन बार मिल चुके हैं, तीन बार से ज्यादा।"

वकील ने यह भी कहा कि अबू धाबी में भारतीय दूतावास वहां के अधिकारियों के साथ लगातार संपर्क में है और लगातार जानकारी मांग रहा है। हालांकि अभी पूरी जानकारी दूतावास को नहीं दी गई है।

अदालत ने याचिका में नोटिस जारी करते हुए अबू धाबी में भारतीय दूतावास को स्थानीय वकीलों के साथ समन्वय करने और किसी भी मामले का विवरण प्राप्त करने के लिए कहा।

याचिकाकर्ता की ओर से पेश एडवोकेट शाहरुख आलम ने कहा कि भारत का संयुक्त अरब अमीरात के साथ सजायाफ्ता व्यक्तियों के हस्तांतरण के लिए एक समझौता है और इस प्रकार समझौते के तहत बेटे की सूचना और प्रत्यावर्तन के लिए विदेश मंत्रालय द्वारा कदम उठाए जाने चाहिए।

पक्षकारों की सुनवाई करते हुए अदालत ने विदेश मंत्रालय या अबू धाबी में भारतीय दूतावास के अधिकारियों को याचिकाकर्ता को किसी भी जानकारी के बारे में सूचित करने का निर्देश दिया, जिसे वे या तो संयुक्त अरब अमीरात के अधिकारियों से या भारत सरकार द्वारा नियुक्त कानूनी फर्म से प्राप्त कर सकते हैं।

अब इस मामले की सुनवाई मार्च में होगी।

अपनी याचिका में 54 वर्षीय व्यक्ति ने प्रस्तुत किया है कि जबकि उनके बेटे को सप्ताह में दो बार लगभग 5 से 8 मिनट के लिए अपने परिवार को फोन करने की अनुमति है, उसे केवल अंग्रेजी भाषा में बात करने का निर्देश दिया गया है। उन्होंने बताया कि उसकी नजरबंदी का आज तक कोई कारण नहीं बताया गया है।

यह प्रस्तुत किया गया है कि जानकारी की कमी न केवल गहराई से परेशान कर रही है बल्कि याचिकाकर्ता को आगे कानूनी उपायों का सहारा लेने से भी रोक रही है और सक्रिय रूप से उसे अपने बेटे को कैदियों के प्रत्यावर्तन अधिनियम, 2003 के तहत भारत वापस लाने के लिए कोई कानूनी कार्रवाई करने से रोक रही है।

याचिका एडवोकेट शाहरुख आलम, आकृति चौबे, शांतनु के माध्यम से दायर की गई है।

केस टाइटल : जाकिर हुसैन बनाम भारत संघ

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