स्वतंत्र पत्रकारों को वार्षिक पास नहीं जारी करना, बोलने की आज़ादी का उल्लंघन है या नहीं : दिल्ली हाईकोर्ट ने राज्यसभा की मीडिया परामर्श समिति से पूछा

Update: 2020-05-23 02:00 GMT

दिल्ली हाईकोर्ट ने राज्यसभा की मीडिया परामर्श समिति से पूछा है कि स्वतंत्र पत्रकारों को वार्षिक पास नहीं जारी करना संविधान के अनुच्छेद 19(1) के तहत उनके बोलने की आज़ादी का उल्लंघन है कि नहीं।

इस याचिका को निपटाते हुए न्यायमूर्ति नवीन चावला की एकल पीठ ने कहा कि यहाँ पर दो परस्पर विरोधी हितों में संतुलन बनाए जाने और सामानुपातिकता के सिद्धांत के आधार पर इसकी जाँच की ज़रूरत है।

वर्तमान रिट याचिका में राज्य सभा की मीडिया परामर्श समिति के 06/07/17 के आदेश को चुनौती दी गई है जिसमें स्वतंत्र पत्रकारों को सिर्फ़ सत्रों के लिए पास दिए जाने की बात कही गई है और इस तरह इस श्रेणी के पत्रकारों को वार्षिक पास जारी करने की परंपरा को समाप्त कर दिया है।

इसके अलावा, याचिकाकर्ता ने अदालत से इस समिति को उसे स्थाई पास जारी करने का निर्देश देने का अनुरोध किया है ताकि वह राज्य सभा की कार्यवाही को कवर कर सके।

याचिकाकर्ता ने कहा कि वह 1991 से राज्यसभा की कार्यवाही को कवर करता आ रहा है और उसके पास इस नए आदेश के आने तक स्थाई पास हुआ करता था।

याचिका में कहा गया है कि समिति का यह कदम संविधान के अनुच्छेद 19(1) के तहत मिले अधिकारों का उल्लंघन है। यह भी कहा गया है कि ऐसा करके स्वतंत्र पत्रकारों और किसी मीडिया हाउज़ेज़ या न्यूज़ एजेंसियों से जुड़े पत्रकारों में अंतर किया गया है।

प्रतिवादी ने कहा कि एमएसी की एक उपसमिति ने भी कहा था कि पेशेवर रूप से समान स्वतंत्र पत्रकारों को दो तरह के पास जारी करना भेदभावपूर्ण है और उसने इन्हें इस श्रेणी के अन्य पत्रकारों की तरह सिर्फ़ सत्रवार पास जारी करने की अनुशंसा की और इस वजह से नया आदेश मौलिक अधिकारों का किसी तरह उल्लंघन नहीं करता।

अनुराधा भसीन बनाम भारत संघ और श्रेय सिंघल बनाम भारत संघ मामलों में सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले पर ग़ौर करते हुए अदालत ने कहा कि कोई भी व्यक्ति भले ही वह पत्रकार हो या कोई अन्य, सांसद परिसर में खुले तौर पर प्रवेश पाने का दावा नहीं कर सकता। अदालत ने इस बारे में संसद पर हुए हमले का ज़िक्र किया।

अदालत ने कहा कि विभिन्न श्रेणियों में अंतर करना भेदभावपूर्ण नहीं है और इसलिए अदलत ने इस मामले को आगे बढ़ाने से मना कर दिया। हालाँकि, कोर्ट ने कहा कि प्रतिवादी को पास जारी करने के लिए अपने नियमों और दिशानिर्देशों पर ग़ौर करना चाहिए। 



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