एलजी वीके सक्सेना के खिलाफ मानहानि मामले में नया गवाह पेश करने की मेधा पाटकर की याचिका खारिज

Update: 2025-03-19 04:34 GMT
एलजी वीके सक्सेना के खिलाफ मानहानि मामले में नया गवाह पेश करने की मेधा पाटकर की याचिका खारिज

दिल्ली कोर्ट ने मंगलवार को नर्मदा बचाओ आंदोलन की नेता और एक्टिविस्ट मेधा पाटकर द्वारा दायर आवेदन खारिज कर दिया, जिसमें उन्होंने दिल्ली के उपराज्यपाल (Delhi LG) विनय कुमार सक्सेना के खिलाफ दर्ज मानहानि के मामले को साबित करने के लिए अतिरिक्त गवाह पेश करने और उसकी जांच करने की मांग की थी।

साकेत कोर्ट के जेएमएफसी राघव शर्मा ने कहा कि यह आवेदन वास्तविक आवश्यकता के बजाय ट्रायल में देरी करने का जानबूझकर किया गया प्रयास है।

कोर्ट ने कहा कि "उचित औचित्य के बिना" ऐसे आवेदनों को अनुमति देना खतरनाक मिसाल कायम करेगा। इसने कहा कि न तो पाटकर और न ही उनके किसी गवाह ने ट्रायल के किसी भी चरण में नए गवाह का उल्लेख किया। यदि उक्त गवाह वास्तव में प्रासंगिक था तो पिछले 24 वर्षों की कार्यवाही के दौरान किसी बिंदु पर मामले में उसका नाम या भूमिका का उल्लेख किया गया होगा।

जज ने कहा कि यदि पक्षकारों को इतनी देर से मनमाने ढंग से नए गवाह पेश करने की अनुमति दी जाती है तो मुकदमे कभी खत्म नहीं होंगे, क्योंकि वादी जब चाहें नए गवाह पेश कर सकते हैं, जिससे कार्यवाही अनिश्चित काल तक खिंच सकती है।

न्यायालय ने कहा,

"न्यायिक प्रक्रिया को इस तरह की चालों के आगे बंधक नहीं बनाया जा सकता, खासकर ऐसे मामले में जो पहले से ही दो दशकों से लंबित है।"

सक्सेना वर्तमान में Delhi LG हैं। वह अहमदाबाद स्थित गैर सरकारी संगठन "काउंसिल फॉर सिविल लिबर्टीज" के प्रमुख थे, जिसका नाम 2000 में पाटकर ने उनके और नर्मदा बचाओ आंदोलन के खिलाफ विज्ञापन प्रकाशित करने के लिए उनके खिलाफ मानहानि का मुकदमा दायर किया था।

दूसरी ओर, सक्सेना ने भी 25 नवंबर, 2000 को "देशभक्त का असली चेहरा" शीर्षक से प्रेस नोट में उन्हें बदनाम करने के लिए पाटकर के खिलाफ मानहानि का मुकदमा दायर किया। पाटकर ने कथित तौर पर कहा कि सक्सेना कायर हैं, देशभक्त नहीं। उस मामले में पाटकर को पिछले साल 5 महीने के साधारण कारावास की सजा सुनाई गई थी। बाद में सजा निलंबित कर दी गई और उन्हें जमानत दे दी गई।

सक्सेना के खिलाफ मानहानि के मामले में पाटकर ने नया गवाह पेश करने के लिए आवेदन दिया। तर्क दिया कि CrPC की धारा 254(1) के तहत अपने मामले को साबित करने के लिए किसी भी गवाह से पूछताछ करना उनके अधिकार के भीतर है। इस तरह के अधिकार पर कोई प्रतिबंध नहीं है।

आवेदन खारिज करते हुए अदालत ने कहा कि मामला 24 साल से लंबित है। पाटकर ने शिकायत दर्ज करने के समय शुरू में सूचीबद्ध सभी गवाहों से पहले ही पूछताछ कर ली है।

अदालत ने कहा,

“उन्होंने पहले CrPC की धारा 254(2) के तहत अतिरिक्त गवाहों को बुलाने के लिए आवेदन दायर किया था। फिर भी उन्होंने उस आवेदन में वर्तमान गवाह का उल्लेख नहीं किया। यदि यह गवाह वास्तव में उनके मामले के लिए महत्वपूर्ण था तो उन्होंने या तो उन्हें गवाहों की मूल सूची में शामिल किया होता या कम से कम अतिरिक्त गवाह के लिए पहले के आवेदन में उनका उल्लेख किया होता।”

इसमें आगे कहा गया:

"यह तथ्य कि यह गवाह अब सामने आया, जब शिकायतकर्ता के सभी गवाहों की जांच हो चुकी है। इस अनुरोध की वास्तविकता के बारे में गंभीर संदेह पैदा करता है।"

जज ने आगे कहा कि संबंधित गवाह के किसी भी संदर्भ की पूर्ण अनुपस्थिति से पता चलता है कि यह बाद में सोचा गया, संभवतः पाटकर के मामले को कृत्रिम रूप से मजबूत करने के लिए पेश किया गया।

अदालत ने कहा,

"शिकायतकर्ता ने इस बारे में कोई स्पष्टीकरण नहीं दिया कि उसे इस गवाह के बारे में कब, कैसे या किन परिस्थितियों में पता चला। अगर वह शुरू से ही गवाह के बारे में जानती थी तो उसने उन्हें बुलाने में इतनी देरी के लिए कोई औचित्य नहीं दिया। इसके विपरीत अगर वह दावा करती है कि उसने हाल ही में गवाह को खोजा है तो उसने यह नहीं बताया कि यह खोज कैसे हुई। स्पष्टीकरण की यह कमी उसके अनुरोध की विश्वसनीयता को और कमज़ोर करती है।"

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