"यह निश्चित रूप से मॉब-लिंचिंग का मामला है": उत्तराखंड हाईकोर्ट ने आरोपियों को जमानत देने से इनकार किया, मृतक को चिकित्सा सहायता प्रदान नहीं करने पर पुलिस के खिलाफ जांच के निर्देश दिए

Update: 2021-07-26 08:25 GMT

Uttarakhand High Court

उत्तराखंड हाईकोर्ट ने 'मॉब लिंचिंग' का दुर्भाग्यपूर्ण मामला बताते हुए आरोपी द्वारा अपनी महिला मित्र के साथ कथित तौर पर देखे जाने पर एक युवा लड़के की बेरहमी से पिटाई करने और हत्या करने के आरोपियों (पांच आरोपी) को जमानत देने से इनकार किया।

न्यायमूर्ति रवींद्र मैथानी की खंडपीठ ने थाने के प्रभारी के खिलाफ भी जांच का निर्देश दिया, जिन्होंने सीएचसी के एक डॉक्टर की चिकित्सा सलाह को आगे बढ़ाने के बजाय मृतक को पुलिस थाने में बंद रखा था।

संक्षेप में तथ्य

प्राथमिकी के अनुसार मृतक सह-आरोपी 'डी' (नाम गुप्त रखा गया है) के साथ रिश्ते में था, जिसने उसे अपने गांव बुलाया था। वह साक्षी कैलाश और एक ललित सिंह के साथ वहां गया और जब वह 'डी' के साथ बैठा था, तो उसे ग्रामीणों ने देखा और फिर उसकी पिटाई की।

मतृक का दोस्त कैलाश पूरी घटना का चश्मदीद गवाह है, जिसने स्पष्ट रूप से बताया कि उस तारीख को क्या हुआ था और जांच अधिकारी को बताया कि भीड़ जमा हो गई और उन्हें बेरहमी से पीटा।

गौरतलब है कि कुछ लोग घटना का वीडियो बना रहे थे, जिसे कोर्ट रूम में भी चलाया गया और जब घटना का वीडियो गवाह कैलाश सिंह को दिखाया गया तो उसने प्रत्येक आवेदक की स्पष्ट पहचान की और जांच अधिकारी को इसके बारे में बताया।

कथित तौर पर ग्रामीणों की एक समूह द्वारा उसे बेरहमी से पीटे जाने के बाद उसको पुलिस को सौंप दिया। पुलिस ने उसका चिकित्सकीय जांच किया, लेकिन इलाज नहीं कराया और मामले की जांच करने के लिए भी नहीं गए।

न्यायालय की टिप्पणियां

कोर्ट ने पांचों आरोपियों को जमानत देने से इनकार करते हुए कहा कि,

"आवेदकों और सह-आरोपियों द्वारा एक युवा लड़के को कथित तौर पर बेरहमी से पीटा गया है। गवाहों ने कहा है कि आवेदकों ने मृतक और घायल कैलाश के साथ भी बेरहमी से मारपीट की। गवाहों ने वीडियो क्लिपिंग की जांच करके इसकी पुष्टि की है। इस तरह के अपराध के लिए जमानत की कोई जगह नहीं है। यह एक जघन्य अपराध है। इसलिए, सभी आवेदकों की जमानत याचिका खारिज किए जाने योग्य है।"

अदालत ने अल्मोड़ा के वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक को इस पहलू पर गौर करने का निर्देश दिया कि कैसे और किसके डिवाइस से वीडियो क्लिपिंग प्राप्त की गई और मामले की जांच किसी ऐसे वरिष्ठ अधिकारी को सौंपी जाए जो वैज्ञानिक साक्ष्य और उत्पादन के संग्रह से परिचित हो।

कोर्ट ने टिप्पणी की कि,

"वीडियो किसने तैयार किया? इसका स्रोत क्या है? सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में डॉक्टर द्वारा सुझाए गए अनुसार मृतक को उच्च केंद्र या जांच के लिए क्यों नहीं भेजा गया, धौलादेवी मामले हैं, जो निश्चित रूप से बाद के किसी चरण में उठाए जाएंगे। लेकिन, यह निश्चित रूप से मॉब लिंचिंग का मामला है।"

कोर्ट ने थाना प्रभारी पुलिस अधिकारियों की भूमिका के संबंध में पूछा कि उनकी भूमिका की जांच क्यों नहीं की गई।

भूमिका की जांच विशेष रूप से निम्नलिखित बिंदुओं पर करने का निर्देश दिया गया है:-

1. 28 अप्रैल, 2021 को मृतक की सीएचसी में जांच की गई। धौलादेवी और डॉक्टर ने एक्स-रे की सलाह दी। एक्स-रे क्यों नहीं कराया गया?

2. सीएचसी के डॉक्टर धौलादेवी ने मृतक की जांच के बाद कोई निर्णायक राय नहीं दी, यह जांच का विषय है। डॉक्टर के सुझाव के अनुसार आगे की जांच के बिना मृतक भुवन चंद्र को पुलिस स्टेशन में क्यों रखा गया?

आदेश की कॉपी यहां पढ़ें:



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