संपत्तियों को आधार नंबर से जोड़ने की मांग को लेकर याचिका दायर, हाईकोर्ट ने केंद्र और दिल्ली सरकार से तीन महीने में जवाब दाखिल करने के लिए कहा

Update: 2023-12-21 07:14 GMT

दिल्ली हाईकोर्ट ने गुरुवार को केंद्र और दिल्ली सरकार से संपत्ति दस्तावेजों को आधार से जोड़ने की मांग करने वाली जनहित याचिका को अभ्यावेदन मानकर तीन महीने के भीतर फैसला करने को कहा।

जस्टिस राजीव शकधर और जस्टिस गिरीश कठपालिया की खंडपीठ ने भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) नेता और एडवोकेट अश्विनी कुमार उपाध्याय द्वारा दायर याचिका का निपटारा करते हुए कहा कि यह नीतिगत मुद्दा है, जिसे संबंधित अधिकारियों द्वारा तय किया जाना है।

अदालत ने कहा कि यदि किसी सहायता की आवश्यकता हो तो वह अधिकारियों को उपाध्याय से संपर्क करने की स्वतंत्रता देगी।

अदालत ने उपाध्याय से कहा,

“हम इस तरह की नीति नहीं बना सकते। हम नहीं जानते कि यह कैसे समाप्त होता है, यह कहां समाप्त होता है। यह आयामों का मुद्दा है।”

खंडपीठ ने कहा,

“अदालत को उन्हें बताने का अधिकार कैसे है? यह नीतिगत निर्णय है... प्रथम दृष्टया, जो मुझे समझ में नहीं आता वह यह है कि ये ऐसे क्षेत्र हैं, जिनके बारे में हमारे पास पूरी तस्वीर या डेटा नहीं है, कौन से विभिन्न पहलू सामने आ सकते हैं.... सबसे अच्छा तो यह है कि उन्हें इसे ऐसे ही मानने दिया जाए अभ्यावेदन और उन्हें निर्णय लेने दीजिए।”

अदालत ने यह भी कहा कि वह "इस तरह की चीजों" में परमादेश जारी नहीं करने जा रही है और उचित निर्णय लेने के लिए सरकार को याचिका भेजेगी।

अदालत ने कहा,

“समस्या अनुभवजन्य साक्ष्य की है, हमें अध्ययन करना होगा और फिर दोनों को जोड़ने के लाभों को देखना होगा। बेनामी कानून लागू है, सही है? इसके परिणाम हैं...''

इसमें आगे टिप्पणी की गई,

"आपने बहुत सारी याचिकाएं दायर की हैं, जिससे जनता के हित में प्रगति हुई है, लेकिन यह ऐसा है... इसमें चार साल और लगेंगे और यह ऐसे ही पड़ा रहेगा।"

याचिका में भारत संघ और दिल्ली सरकार को "भ्रष्टाचार, काले धन और बेनामी लेनदेन पर अंकुश लगाने" के लिए नागरिकों की चल और अचल संपत्ति के दस्तावेजों को उनके आधार नंबर से जोड़ने के लिए कदम उठाने का निर्देश देने की मांग की गई।

याचिका में उपाध्याय ने कहा कि भारत के संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत गारंटीकृत जीवन का अधिकार सुरक्षित नहीं किया जा सकता। प्रस्तावना में निर्धारित "स्वर्णिम लक्ष्यों" को भ्रष्टाचार और बेनामी लेनदेन पर अंकुश लगाए बिना हासिल नहीं किया जा सकता।

याचिका में कहा गया,

"इसलिए यह राज्य का कर्तव्य है कि वह भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाने और बेनामी संपत्तियों को जब्त करने के लिए उचित कदम उठाए।"

यह उपाध्याय का मामला है कि संपत्ति दस्तावेजों को आधार नंबर के साथ जोड़ने से भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाने में मदद मिलेगी, क्योंकि काले धन धारकों को अपनी गैर-लेखापरीक्षित चल और अचल संपत्तियों की घोषणा करने के लिए मजबूर किया जाएगा।

याचिका में ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल जैसे विभिन्न संगठनों की रिपोर्टों का हवाला देते हुए दिखाया गया कि कैसे बेनामी लेनदेन से बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार होता है और प्रभावी सार्वजनिक वितरण प्रणाली खत्म हो जाती है।

याचिका में कहा गया,

"आज की तारीख में हमारे देश के प्रत्येक नागरिक के पास आधार नंबर है, उन्हें इसे अपनी संपत्ति के दस्तावेजों से जोड़ने के लिए कहना बेहतर विकल्प है। इस रणनीति का मुख्य लाभ यह है कि टैक्स अधिकारियों को 'कानूनी मालिकों' के बारे में तुरंत विवरण मिल जाएगा।"

इसमें कहा गया कि एक बार आधार लिंक होने के बाद टैक्स अधिकारी "कानूनी मालिकों" से संपर्क कर सकते हैं और अगर "कानूनी मालिक" अनजान हैं या स्वामित्व के बारे में जानकारी से इनकार करते हैं तो इसे बेनामी संपत्ति माना जा सकता है।

याचिका में कहा गया कि भले ही कानूनी मालिक जिम्मेदारी लेता है और दावा करता है कि यह उसकी संपत्ति है, उसे उस संपत्ति को खरीदने के लिए 'आय का स्रोत' दिखाना होगा।

केस टाइटल: अश्विनी कुमार उपाध्याय बनाम भारत संघ एवं अन्य।

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