डीसीपीसीआर ने 6 साल की बच्ची के कथित यौन उत्पीड़न की सीबीआई जांच की मांग को लेकर हाईकोर्ट का रुख किया, दिल्ली पुलिस पर 'पक्षपातपूर्ण' जांच करने का आरोप लगाया
दिल्ली हाईकोर्ट में दिल्ली बाल अधिकार संरक्षण आयोग (डीसीपीसीआर) ने 2018 में एक 6 साल की बच्ची के कथित यौन उत्पीड़न के मामले में केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) द्वारा फिर से जांच की मांग को लेकर याचिका दायर की। इस बच्ची की बाद में इलाज के दौरान अस्पताल में मौत हो गई थी।
एडवोकेट आरएचए सिकंदर के माध्यम से याचिका दायर की गई। सिकंदर का तर्क है कि दिल्ली पुलिस ने कथित अपराध में शामिल "अपराधियों को बचाने" के लिए "घटिया, लापरवाह और पक्षपातपूर्ण जांच" की। पुलिस ने मामले में अक्टूबर 2018 में ट्रायल कोर्ट के समक्ष रद्द करने की रिपोर्ट दायर की।
याचिका के अनुसार, छह वर्षीय ने 29 जनवरी, 2018 को बीमारी की शिकायत की और उसे इलाज के लिए विभिन्न अस्पतालों में ले जाया गया। 1 फरवरी, 2018 को गंगा राम अस्पताल के डॉक्टरों ने उसके निजी अंगों पर चोटों को देखा और एमएलसी रिपोर्ट दर्ज की। दो फरवरी, 2018 को इलाज के दौरान नाबालिग की मौत हो गई।
याचिका के अनुसार, पीड़िता की पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट में बाहरी के साथ-साथ आंतरिक चोटों को ध्यान में रखते हुए कहा गया कि बिना एफएसएल रिपोर्ट के मौत के कारण और तरीके को निश्चित नहीं किया जा सकता। इसने आगे कहा कि यौन उत्पीड़न की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता।
उसके बाद भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 376(2)(i), 376A और पॉक्सो अधिनियम (POCSO Act) की धारा 6 के तहत एफआईआर दर्ज की गई।
याचिका में कहा गया कि पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट में राय के बावजूद, डॉक्टर की बाद की राय में कहा गया कि पीड़िता की मौत प्राकृतिक कारणों से हुई और इस तरह इस मामले में यौन उत्पीड़न से इनकार किया गया।
याचिका के अनुसार, शहर के डीडीयू अस्पताल के फॉरेंसिक मेडिसिन विभाग के प्रमुख ने यह निष्कर्ष निकाला कि नाबालिग की मौत का कारण "द्विपक्षीय ब्रोन्कोपमोनिया" था और यह मौत का स्वाभाविक कारण था। इसलिए मामले में यौन उत्पीड़न से इनकार किया गया।
आयोग ने पहले नाबालिग की मौत पर टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट का स्वत: संज्ञान लिया, जांच शुरू की और संबंधित एसएचओ को नोटिस जारी किया, जिससे उन्हें मामले की जांच करने और कार्रवाई रिपोर्ट जमा करने का निर्देश दिया गया।
अदालत द्वारा रद्द करने की रिपोर्ट को स्वीकार किए जाने के बाद डीसीपीसीआर ने पीड़िता की मौत के वास्तविक कारण का पता लगाने के लिए मेडिकल बोर्ड के गठन के लिए स्वास्थ्य सेवा महानिदेशक को लिखा।
याचिका में दावा किया गया कि पुलिस ने इस मामले में "ढीली, धीमी, घटिया, लापरवाह, गलत और पक्षपातपूर्ण जांच" की और यहां तक कि नाबालिग पीड़िता की मां और चाचा के बयान भी दर्ज नहीं किए।
याचिका में कहा गया,
"....वर्तमान मामले में पुलिस की कार्रवाई भारत के संविधान में निहित कानून के शासन की अवधारणा के विपरीत है, जिसमें अनुच्छेद 21 भी शामिल है... मामले की स्वतंत्र जांच किए जाने तक मामले की सच्चाई का पता नहीं लगाया जा सकता है और पीड़िता के साथ न्याय नहीं किया जा सकता।"
केस टाइटल: दिल्ली बाल अधिकार संरक्षण आयोग (डीसीपीसीआर) बनाम एनसीटी दिल्ली सरकार और अन्य