डेटिंग साइट्स किसी के गुणों पर फैसला लेने का संकेत नहीं है: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने झूठे शादी के वादे पर संबंध बनाने के कथित मामले में कहा
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने हाल ही में एक रेप आरोपी को अग्रिम जमानत देने से इनकार कर दिया। उसने कथित रूप से शादी का झूठा वादा करके पीड़िता के साथ शारीरिक संबंध स्थापित किया था। कोर्ट ने कहा कि डेटिंग साइट किसी के गुणों बारे में फैसला करने के लिए संकेत नहीं हैं।
जस्टिस विवेक अग्रवाल की खंडपीठ ने यह टिप्पणी याचिकाकर्ता/आरोपी के वकील की ओर से पेश तर्क के जवाब में की। वकील ने सहमति से सबंध के सिद्धांत को स्थापित करने की कोशिश करते हुए पीड़िता/महिला के कामुकतपूर्ण व्यवहार का अनुमान लगाने का प्रयास किया था।
कोर्ट सुप्रीम कोर्ट द्वारा दी गई छूट के संदर्भ में आवेदक द्वारा दायर तीसरे अग्रिम जमानत आवेदन पर सुनवाई कर रहा थी। सुप्रीम कोर्ट ने यह देखते हुए छूट दी थी कि हाईकोर्ट द्वारा योग्यता के आधार पर तथ्यों की सराहना नहीं की गई, जिन पर विचार के लिए याचिकाकर्ता दबाव बनाना चाहता था।
पृष्ठभूमि
मौजूदा मामले में पीड़िता और आरोपी डेटिंग पर मिले थे और कथित तौर पर शादी करने के झूठे वादे पर, आरोपी ने पीड़िता साथ यौन संबंध बनाए और उसके बाद वह अपने वादे से मुकर गया, जिसके बाद पीड़िता ने मौजूदा मामला मामला दर्ज कराया था।
याचिकाकर्ता के वकील ने कहा कि पीड़िता और आरोपी की मुलाकात 28 जुलाई 2019 को डेटिंग साइट पर हुई थी और 2 अगस्त 2019 को पीड़िता पहली बार आवेदक से मिली थी। इसके अलावा, 04 अगस्त, 2019 को, आवेदक उसे नोएडा के एक होटल में ले गया, शादी के बारे में चर्चा की और उसके साथ शारीरिक संबंध बनाए।
वकील की ओर से पेश किया गया कि मुलाकात के चार दिनों के भीतर पीड़िता द्वारा शारीरिक संबंध स्थापित करना यह प्रदर्शित करता है कि यह सहमति से सेक्स का मामला है। यह भी तर्क दिया गया कि दोनों के बीच शादी की कोई बात नहीं थी और इसलिए, शादी के प्रस्ताव के नाम पर उन्होंने शारीरिक संबंध बनाने का आरोप नहीं लगाया।
अवलोकन
आवेदक के वकील के प्राथमिक तर्क को खारिज करते हुए कि यह सहमति से सेक्स का मामला था, अदालत ने शुरुआत में कहा,
"डेटिंग साइट्स किसी के गुणों पर फैसला लेने का संकेत नहीं हैं। केवल दो वयस्क डेटिंग साइट पर मिलते हैं और मिलने के तीसरे दिन बातचीत यह विश्वास दिलाती है कि दूसरा पक्ष शादी करने के लिए तैयार है और विवाह के नाम पर यदि शारीरिक संबंध की मांग की जाती है तो यह पीड़िता को कामुक के रूप में चित्रित करने के बराबर नहीं होगी, जिसने किसी उकसावे जैसे कि शादी का वादा के बिना शारीरिक संबंध के लिए सहमति दी।
"इसके अलावा, 28 जुलाई, 2019 की चैट का जिक्र करते हुए कोर्ट ने कहा कि आवेदक की पारिवारिक स्थिति और फिर जन्मतिथि आदि के बारे में पूछताछ करना, साथ ही व्यक्तिगत आदतों जैसे धूम्रपान और शराब आदि के बारे में पूछताछ करना पर्याप्त संकेत हैं कि पीड़िता के मन में शारीरिक संबंध के अलावा भी कुछ था।
कोर्ट ने कहा, " ... यह सच है कि शादी के प्रस्ताव का कोई सीधा संदर्भ नहीं है, लेकिन चैट में शादी का जिक्र किए बिना नए मिले जोड़े के लिए प्रेम और प्रशंसा के शब्दों के आदान-प्रदान का मतलब यह नहीं है कि बिना शादी का वादा किए फेवर मांगने के आरोप का अंदाजा मोबाइल चैट से लगाया जा सकता है..।
अंत में यह देखते हुए कि एक कोऑर्डिनेट बेंच ने केवल चार्जशीट दाखिल करने तक अग्रिम जमानत का लाभ बढ़ाया था, और इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए कि आवेदक अपने पक्ष में विस्तारित अंतरिम सुरक्षा की समाप्ति के बाद आत्मसमर्पण करने में विफल रहा, अदालत ने उसकी जमानत से इनकार कर दिया।
याचिकाकर्ता की ओर से सीनियर एडवोकेट गोपाल स्वरूप चतुर्वेदी ने मामले की पैरवी की, जिनकी सहायता वकील सौम्या चतुर्वेदी ने की।
केस शीर्षक - अभय चोपड़ा बनाम यूपी राज्य और अन्य