दादरी लिंचिंग मामला: अख़लाक की पत्नी ने आरोपियों पर से मुकदमा वापस लेने के यूपी सरकार के फैसले को हाईकोर्ट में दी चुनौती

Update: 2025-12-23 11:12 GMT

दादरी लिंचिंग कांड के पीड़ित मोहम्मद अख़लाक की पत्नी ने उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा आरोपियों के खिलाफ मुकदमा वापस लेने के प्रस्ताव के खिलाफ इलाहाबाद हाईकोर्ट का रुख किया।

याचिका में राज्य सरकार के फैसले के साथ-साथ गौतम बुद्ध नगर की ट्रायल कोर्ट में अभियोजन की ओर से दायर वापसी आवेदन को भी चुनौती दी गई।

गौरतलब है कि वर्ष 2015 में गौतम बुद्ध नगर के दादरी क्षेत्र में कथित तौर पर बीफ खाने और घर में रखने के आरोपों को लेकर अख़लाक की भीड़ द्वारा पीट-पीटकर हत्या कर दी गई थी।

इस घटना ने देशभर में व्यापक आक्रोश पैदा किया था। पुलिस ने मामले में भारतीय दंड संहिता की विभिन्न धाराओं, जिनमें हत्या की धारा भी शामिल थी, के तहत प्राथमिकी दर्ज की थी।

इस मामले में कुल 18 आरोपियों को गिरफ्तार किया गया, जिनमें तीन नाबालिग थे। एक आरोपी की वर्ष 2016 में मृत्यु हो गई, जबकि शेष 14 आरोपी वर्तमान में जमानत पर हैं।

हाल ही में उत्तर प्रदेश सरकार ने इस मामले में अभियोजन वापस लेने का निर्णय लिया। इसके तहत सहायक जिला सरकारी अधिवक्ता (अपराध) द्वारा दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 321 के तहत ट्रायल कोर्ट में आवेदन दाखिल किया गया।

धारा 321 के अनुसार अभियोजन को वापस लेने के लिए लोक अभियोजक या सहायक लोक अभियोजक को न्यायालय की अनुमति प्राप्त करना अनिवार्य होता है। अदालत को यह तय करना होता है कि क्या ऐसा करना न्यायहित में है या इससे न्याय में विघ्न उत्पन्न होगा।

पीड़ित परिवार ने इस आवेदन का ट्रायल कोर्ट में औपचारिक रूप से विरोध किया। इस पर आज सुनवाई प्रस्तावित है। इसी बीच अख़लाक की पत्नी ने हाईकोर्ट में रिट याचिका दाखिल कर राज्य सरकार और प्रशासन द्वारा जारी उन सभी आदेशों को रद्द करने की मांग की, जिनके आधार पर अभियोजन वापस लेने की प्रक्रिया शुरू की गई।

याचिका में विशेष रूप से 26 अगस्त 2025 का सरकारी आदेश 10 सितंबर 2025 को अपर जिलाधिकारी (प्रशासन) द्वारा संयुक्त निदेशक अभियोजन को भेजा गया पत्र, 12 सितंबर का अभियोजन आदेश, 16 सितंबर को जिला सरकारी वकील द्वारा जारी निर्देश तथा 15 अक्टूबर को दायर वापसी आवेदन को चुनौती दी गई।

अख़लाक की पत्नी की ओर से अधिवक्ता उमर ज़मीन ने दलील दी कि सरकार द्वारा अभियोजन वापस लेने का फैसला संविधान और कानून के मूल सिद्धांतों के विरुद्ध है।

याचिका में यह भी आग्रह किया गया कि उत्तर प्रदेश सरकार को निर्देश दिया जाए कि वह अपने विवेकाधीन अधिकारों का प्रयोग संविधान के सख्त प्रावधानों के अनुरूप ही करे।

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