हत्यारे भ्रष्ट अधिकारी, क्रूर, रक्त पिपासु भेड़ियों जैसे हैं, उनसे कड़ाई से निपटा जाना चाहिएः मद्रास हाईकोर्ट
मद्रास हाईकोर्ट ने पिछले सप्ताह COVID 19 महामारी के बीच अधिकारियों को रिश्वत देकर ई-पास खरीदने के मामलों को भष्टाचार का क्लासिक केस कहा है। हाईकोर्ट ने नाराज़गी जाहिर करते हुए कहा, "ये मामले दिखाते हैं कि सरकारी कर्मचारी किसी भी स्थिति का उपयोग अवैध लाभ कमाने के लिए कैसे करते हैं।"
जस्टिस एन किरुबाकरन और वीएम वेलुमणि ने कहा, "दुनिया सबसे बुरी महामारी से प्रभावित है। लोगों को दो महीने तक अपने घरों में रहना पड़ा। अब धीरे-धीरे लॉकडाउन खुल रहा है।"
पीठ ने कहा, "आपात स्थितियों में यात्राओं के लिए, प्रतिबंध में ढील देते हुए, ई-पास की व्यवस्था की गई है।"
पीठ ने कहा, पूरे राज्य में, ये आरोप हैं कि ई-पास दिलाने के लिए दलाल उपलब्ध हो चुके हैं। जिन्होंने ई-पास के लिए उचित तरीके से आवेदन किया है, मगर वह पास पाने में असमर्थ हैं। उन्हें ऐसे दलाल 500 रुपए से 2000 रुपए तक लेकर ई-पास दिला रहे हैं।
डिवीजन बेंच ने निर्देश दिया कि मीडिया ने व्यापक रूप से अधिकारियों को पैसे देकर ई-पास प्राप्त करने की रिपोर्ट दी है। सरकार को इस पहलू को गंभीरता से देखना चाहिए।
पीठ ने कहा कि यद्यपि वर्तमान स्थिति के लिए सरकार जिम्मेदार नहीं है, लेकिन कुछ भ्रष्ट अधिकारी, जो ई-पास जारी करने में शामिल हैं, "इस खराब समय में भी लूट पर आमादा हैं"।
बेंच ने अपनी नाराज़गी प्रकट करते हुए कहा, " ऐसी घटनाओं और सिस्टम में घुसे ऐसे प्राणलेवा भ्रष्ट अधिकारियों के बारे में जानकर बहुत ही हैरानी होती है। वे क्रूर रक्त पिपासु भेड़ियों की तरह हैं। उनका निपटारा कठोरता से किया जाना चाहिए।"
डिवीजन बेंच सूत कताई की एक कंपनी में महामारी के दरमियान काम करने के लिए लाए गए लगभग 200 किशोर बच्चों के संबंध में दायर बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका पर सुनवाई कर रही थी। अदालत ने कंपनी से पूछा था कि कैसे वे उचित ई-पास के बिना अलग-अलग जिलों के बच्चों को अपने परिसर में काम करने के लिए लेकर आए।
पीठ ने कहा "उन बच्चों की कहानियां सुनना वास्तव में दयनीय है, जो अपने परिवार के लिए, बिना स्कूल गए भी काम पर आए हैं।"
पीठ ने कहा कि माता-पिता को अपने बच्चों की देखभाल करनी चाहिए। वे अपनी असहायता के कारण, अपने बच्चों को काम करने के लिए न भेजें, जबकि सरकार मुफ्त शिक्षा और मुफ्त भोजन दे रही है।
पीठ ने कहा, "माता-पिता को सरकार द्वारा प्रदान किए गए प्रोत्साहन और सुविधाओं का भरपूर उपयोग करना चाहिए, बजाय इसके कि वे अपने बच्चों को शिक्षा के अधिकार और उज्ज्वल भविष्य से वंचित रखें।"
पीठ ने कहा कि जो घटना उत्तरदाता कंपनी में घटित हो रही है, वह केवल एक हिमशैल का सिरा भर है क्योंकि ऐसी सैकड़ों कंपनियां तिरुप्पुर, कोयम्बटूर और इरोड जिलों में स्थित हैं, और यह कहा जा रहा है कि इनमें बड़े पैमाने पर बाल श्रम हो रहा है, और जिन परिस्थितियों में बच्चों से काम करवाया जा रहा है, वो ठीक नहीं हैं।
पीठ ने इन जिलों के पुलिस अधिकारियों, श्रम विभाग और बाल कल्याण समितियों को सतर्क रहने और बाल श्रम के उन्मूलन के लिए नियमित रूप से छापेमारी करने का निर्देश दिया।
पीठ ने कहा, "जब तक, अधिकारी सतर्क और सावधान नहीं होंगे, तब तक ऐसी समस्या पर रोक नहीं लग सकती है। यह पूरे समाज को प्रभावित करने वाला सामाजिक खतरा है और इस मुद्दे को एक साथ संबोधित किया जाना है"।
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