COVID19 : निवारक कदम तब तक प्रभावी नहीं होंगे, जब तक कि लोग घरों से बाहर अनावश्यक घूमना बंद नहीं करेंगे : गुजरात हाईकोर्ट
गुजरात हाईकोर्ट ने कहा है कि COVID19 की महामारी को रोकने के लिए निवारक उपाय तब तक सफलतापूर्वक और प्रभावी ढंग से लागू नहीं हो पाएंगे , जब तक कि बड़े पैमाने पर जनता और राज्य के नागरिक , जिन्हें बड़े पैमाने पर खतरे से सचेत रहना है,इनका ठीक से पालन नहीं करेंगे। इसके लिए उनको अपने घरों से अनावश्यक रूप से बाहर निकलना,सभाएं करना,समारोह व पार्टियों में जाना बंद करना होगा या राज्य के अंदर व राज्य से बाहर मौज-मस्ती की यात्राओं पर जाने से बचना होगा।
पीठ ने कहा कि संवेदीकरण या संवेदनशील बनाने के संदर्भ में, जमीनी स्तर पर और अधिक काम करने की आवश्यकता है,विशेषकर जहां पर प्रिंट और डिजिटल मीडिया या सोशल मीडिया की सुविधाएं उपलब्ध नहीं हैं।
मुख्य न्यायाधीश विक्रम नाथ और न्यायमूर्ति आशुतोष शास्त्री की पीठ ने कहा कि
''न्यायालय का यह दृढ़ विचार है कि केंद्र सरकार, राज्य सरकार, सुपीरियर कोर्ट द्वारा उठाए गए सभी उपाय, चाहे वह सर्वोच्च न्यायालय हो या विभिन्न राज्यों के हाईकोर्ट,तब तक COVID19 की महामारी को रोकने में सफलतापूर्वक और प्रभावी ढंग से लागू नहीं हो पाएंगे, जब तक जनता बड़े पैमाने पर राज्य के नागरिक, जिन्हें बड़े पैमाने पर इस खतरे से सचेत रहना है, इनका ठीक से पालन नहीं करेंगे।
इसके लिए उनको अपने घरों से अनावश्यक रूप से बाहर निकलना, सभाएं करना, समारोह व पार्टियों में जाना बंद करना होगा या राज्य के अंदर व राज्य से बाहर मौज-मस्ती की यात्राओं पर जाने से बचना होगा।
लोगों को यह बताने के लिए कि राज्य सरकार,सरकार से जुड़े संगठन या जो सगंठन सरकार से नहीं जुड़े है,प्रिंट और डिजिटल मीडिया व सोशल मीडिया द्वारा व्यापक प्रसार के उपाय किए गए हैं। परंतु फिर भी जमीनी स्तर पर और अधिक किए जाने की आवश्यकता है,विशेषकर ऐसी जगह जहां प्रिंट और डिजिटल मीडिया, या सोशल मीडिया की सुविधाएं उपलब्ध हैं या जो ऐसी सुविधाओं से वंचित हैं।''
कोर्ट कोरोना वायरस के प्रसार से निपटने के उपायों की देखरेख के लिए स्वत संज्ञान लिए गए मामले पर विचार कर रही थी।
पीठ ने कहा कि
''गुजरात सरकार इस महामारी व इससे बचने के लिए उपायों के बारे में उपनगरों, अर्ध-ग्रामीण, ग्रामीण और आदिवासी क्षेत्रों के निवासियों को संवेदनशील बनाने और जागरूक करने के लिए इस तरह के कदम उठा सकती है।''
यह स्वीकार करते हुए कि ''कोरोना वायरस का प्रसार संक्रामक है'' और ''बड़ी संख्या में एकत्रित होने से सख्ती से बचने की जरूरत है।''''
गुजरात हाईकोर्ट ने कहा कि-
''अगर लोग अपनी भावनाओं के कारण पूजा स्थलों पर बड़ी संख्या में इकट्ठा होना जारी रखेंगे तो COVID19 के प्रसार को रोकने के लिए एहतियाती उपाय अपनाने के सारे प्रयास बेकार हो जाएंगे।''इसलिए सभी से आग्रह है कि ''सभी को अपने पूजा के स्थानों पर जाने से बचना चाहिए और इसके स्थान पर घर से ही अपनी प्रार्थना/पूजा/ सेवा करें।''
न्यायालय ने, राज्य सरकार को सभी जिला मजिस्ट्रेट /पुलिस आयुक्त और सभी जिलों के पुलिस अधीक्षकों और गुजरात राज्य के सभी समूहों के लिए आवश्यक परिपत्र या सर्कुलर जारी करने के लिए अधिकृत किया है ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि राज्य के किसी भी पूजा स्थल पर कोई सभा या भीड़ एकत्रित न हो सकें।
पीठ ने स्पष्ट किया कि-
''हालांकि इससे हमारा यह मतलब नहीं है कि प्रतिदिन होने वाली पूजा /आरती/ सेवा/ प्रार्थना (नमाज) को ऐसे स्थानों पर रोक दी जाए,लेकिन सभी धार्मिक स्थलों के प्रबंधक, इसे सार्वजनिक तौर पर खोले बिना कर सकते हैं या आम जनता को इसमें आने की अनुमति न दी जाए।''
इसके अलावा, हाईकोर्ट ने कहा कि गुजरात राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण, सभी जिला विधिक सेवा प्राधिकरणों को निर्देश जारी करें कि वह विभिन्न कार्यक्रमों का आयोजन कर सभी को संवदेनशील बनाने व जागरूक करने का काम करें।
अंत में, अदालत ने यह भी उम्मीद भी की है कि राज्य COVID19 के प्रभावित या संदिग्ध व्यक्तियों की जांच, रोकथाम, नियंत्रण और इलाज के लिए अपने प्रयास कड़ाई से जारी रखेगा और 27 मार्च तक अपनी स्थिति रिपोर्ट कोर्ट में दाखिल कर देंगे।
अदालत ने रजिस्ट्री को निर्देश दिया है कि इस आदेश की प्रति सभी संबंधित विभागों या लोगों को प्रिंट और डिजिटल मीडिया जैसे फैक्स ईमेल, व्हाट्सएप या स्पेशल मैसेंजर के माध्यम से भेज दें।
अदालत ने वरिष्ठ अधिवक्ता और जीएचएए के अध्यक्ष यतिन ओझा के उस बयान की भी सराहना की है जिसमें अदालत को बताया गया था कि बार रूम, टी रूम और हाईकोर्ट की लाइब्रेरी को पूरी तरह से बंद कर दिया गया है और सभी समूहों के अधिवक्ताओं को यह संदेश दिया गया है कि जब तक उनके मामलों में अत्यधिक आवश्यक न हो वह कोर्ट न आएं।
गुजरात हाईकोर्ट ने शुक्रवार को उस मांग पर भी विचार किया,जिसमें कहा गया था कि गुजरात रियल एस्टेट रेगुलेटरी अथॉरिटी और गुजरात रियल एस्टेट अपीलेट ट्रिब्यूनल 31 मार्च, 2020 तक अत्यधिक जरूरी मामलों को छोड़कर बाकी मामलों की सुनवाई को टाल दें।
राज्य के महाधिवक्ता ने आश्वासन दिया कि अदालत को इस बात से निश्चिंत रहना चाहिए है। रेरा या उसके अपीलीय न्यायाधिकरण किसी भी तरह से अदालत के 13 मार्च के आदेश में दिए गए उन निर्देश के अर्थ व भावना का उल्लंघन नहीं करेंगे,जो नोवेल COVID19 से उत्पन्न नश्वर खतरे का मुकाबला करने के लिए के लिए दी गई थी।
हाईकोर्ट ने उन दो तरह की राहतों की भी अनुमति दे दी है,जिसमें कहा गया था कि राज्य सरकार अपने अधिकार क्षेत्र में कोरोना वायरस से संक्रमित और इसके संदिग्ध लोगों को निदान की सारी सेवाएं, प्रयोगशाला विश्लेषण और उपचार की सभी सेवाएं मुफ्त में प्रदान करें। वही आईडीएसपी रिपोर्ट के आधार पर हर रोज राज्य स्तर की मौजूदा स्थिति के बारे में सार्वजनिक डोमेन में सूचनाएं ड़ाली जाएं और इसके लिए राज्य एक प्रेस विज्ञप्ति जारी करें।
खंडपीठ ने उल्लेख किया कि अहमदाबाद और पूरे राज्य में पहुंचने वाले यात्रियों की उन रेलवे स्टेशनों पर चेकिंग 19 मार्च से शुरू हो चुकी है, जहां अंतर-राज्यीय ट्रेनें आ रही हैं। वही प्रभावित या संदिग्ध व्यक्तियों की जांच, प्रयोगशाला परीक्षण और उपचार राज्य के खर्चे पर किया जा रहा है और इस तरह के प्रभावित या संदिग्ध व्यक्तियों से कोई पैसा नहीं लिया जा रहा है।
इसके अलावा, सोशल मीडिया या डिजिटल मीडिया या प्रिंट मीडिया में किसी भी तरह की फर्जी खबर को प्रकाशित या प्रसारित होने से बचाने के लिए, भारत सरकार ने COVID19 नाम का एक ऐप पहले ही बना दिया है, जिस पर पूरे देश से संबंधित सभी प्रासंगिक जानकारी लगातार अपडेट की जा रही है।
यह भारत सरकार ने अनैतिक और गैर-जिम्मेदार व्यक्तियों द्वारा प्रसारित नकली और गलत संदेशों के कारण होने वाली अनावश्यक घबराहट से बचाने के लिए किया है।
इसके अलावा, अन्य राहतें जिसमें मांग की है कि 31 मार्च तक एसएआरएफएईएसआई की धारा 14 के तहत जिला मजिस्ट्रेट और ममलाटर्डस द्वारा नीलामियों को निलंबित किया जाए। वहीं गुजरात राज्य में संचालित बैंकों और वित्तीय संस्थान को उचित निर्देश दिए जाएं कि वह 31 मार्च तक एसएआरएफएईएसआई के तहत नीलामी/रिकवरी के लिए कदम न उठाएं। इस संबंध में, अदालत इस बात से संतुष्ट थी कि राज्य की तरफ से इस दिशा में 31 मार्च तक कोई कार्रवाई न करने के लिए निर्देश जारी किए जाएंगे, क्योंकि इस तरह के एहतियाती उपाय केवल 31 मार्च तक लागू किए गए हैं।
हालाँकि, जहां तक बैंकों और वित्तीय संस्थानों का संबंध है, कोर्ट का इस तरह की राहत देने के लिए कोई झुकाव नहीं था। चूंकि कोर्ट ने पाया कि इलाहाबाद और केरल हाईकोर्ट के इस तरह के आदेशों पर सर्वोच्च न्यायालय ने रोक लगा दी है।
हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया कि इस पर केंद्र सरकार के वित्त मंत्रालय को विचार करना होगा। इसलिए व्यापक आदेश नहीं दिया जा सकता है।
31 मार्च तक किसी भी कानून के तहत बेदखली/विध्वंस नहीं करने की प्रार्थना के संबंध में, महाधिवक्ता ने कहा कि इस पहलू के लिए भी राज्य सरकार द्वारा उचित निर्देश जारी किए गए हैं।
केंद्र सरकार की ओर से पेश अधिवक्ताओं ने बताया कि ऋण वसूली ट्रिब्यूनल या डेब्ट रिकवरी ट्रिब्यूनल और उसके अपीलीय न्यायाधिकरण 23 मार्च से दैनिक बोर्ड को प्रकाशित नहीं करेंगे और 31 मार्च तक सभी मामलों की सुनवाई टाल देंगे,बस मेंशन या उल्लेख किए गए अतिआवश्यक मामलों की ही सुनवाई की जाएगी।
अदालत के ध्यान में यह भी लाया गया था कि एनसीएलटी, अहमदाबाद मामलों की सुनवाई कर रही है और वकीलों की अनुपस्थिति में प्रतिकूल आदेश पारित कर रही है। वहीं सत्र न्यायालय, अहमदाबाद शहर भी उन मामलों में साक्ष्य दर्ज कर रहा है ,जहां गवाह मौजूद हैं। अहमदाबाद में ऋण वसूली न्यायाधिकरण या डीआरटी भी कार्य रही है। वहीं एसएआरएफएईएसआई की धारा 14 के तहत जिला मजिस्ट्रेट/मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट भी आदेश पारित कर रहे हैं। वहीं बैंकों और वित्तीय संस्थानों द्वारा भी संपत्तियों की ई-नीलामी की जा रही है।
केंद्र सरकार की ओर से पेश वकील ने आश्वासन दिया कि एनसीएलटी, अहमदाबाद 23 मार्च से मामलों की सूची जारी नहीं करेगा और उल्लेख या मेंशन करने के बाद केवल अत्यंत आवश्यक मामलों पर सुनवाई की जाएगी।
जहां तक विशेष सचिव, राजस्व विभाग और डिप्टी कलेक्टरों का संबंध है, महाधिवक्ता ने बताया कि पहले ही उचित कदम उठाए जा चुके हैं।
वहीं जहां तक चैरिटी कमिश्नर कार्यालय के कामकाज की बात है तो यदि पहले से ही बंद नहीं किया गया है, तो राज्य इसके लिए उचित कदम उठाएगा और निर्देश जारी करेगा कि उस सिद्धांत का पालन किया जाए,जो सर्वोच्च न्यायालय, हाईकोर्ट और जिला न्यायालयों द्वारा अपनाया जा रहा है।
पीठ ने कहा कि
''सत्र न्यायालय, अहमदाबाद, किसी-किसी मामले में साक्ष्य दर्ज कर रहा हैं क्योंकि हम इस तथ्य के प्रति भी सचेत हैं कि सभी प्रमुख जिला न्यायाधीशों और प्रधान न्यायाधीशों को परिपत्र या सर्कुलर जारी किया गया है कि केवल जरूरी मामलों की ही सुनवाई करें।''