COVID- अफसोस है कि लोग ऑक्सीजन की कमी के कारण मर रहे हैं, कोई कारण नहीं है कि सरकार, सभी जिलों में ऑक्सीजन संयंत्र स्थापित नहीं कर सकती, मध्य प्रदेश सरकार को हाईकोर्ट की फटकार

Update: 2021-05-02 10:24 GMT

सभी को ऑक्सीजन की नियमित आपूर्ति सुनिश्चित करने के लिए राज्य सरकार को दिए पूर्व निर्देशों को दोहराते हुए, मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय ने शुक्रवार को मध्य प्रदेश सरकार को सभी हितधारकों के साथ रेमडेसिवीर इंजेक्शन की "वितरण नीति को फिर से देखने" के लिए कहा, ताकि यह आम आदमी को भी उचित मूल्य पर उपलब्ध हो सके।

चीफ जस्टिस मोहम्मद रफीक और जस्टिस अतुल श्रीधरन की खंडपीठ ने कहा, "


COVID 19 रोगी को दवा के रूप में  रेमडेसिवीरका सेवन करने की आवश्यकता है या नहीं, यह इलाज करने वाले डॉक्टरों के विवेक पर छोड़ दिया जाना चाहिए और यह कार्यकारी के आदेश द्वारा तय नहीं किया जाना चाहिए। हम  रेमडेसिवीर प्रदान करने के लिए इस आग्रह का कोई औचित्य नहीं देखते हैं यह केवल ऐसे रोगियों को दिया जाए, जो ऑक्सीजन पर हैं, खासकर जब ऑक्सीजन, एक कमोडिटी के रूप में, खुद दुर्लभ हो गई है। इस नीति के पीछे कोई तर्क नहीं है।"

रेमडेसिवीर की उपलब्धता और ब्लैक मार्केटिंग का मुद्दा

मामले में एमिकस क्यूरी नमन नागरथ ने अदालत को ब्लैक मार्केटिंग और ऊंचे दामों के कारण रेमडेसिवीर की उपलब्धता के मुद्दे के बारे में अवगत कराया।

यह देखते हुए कि राज्य सरकार ने इस प्रकार के कदाचार पर अंकुश लगाने के लिए कोई कदम नहीं उठाया है, खंडपीठ ने कहा,

"अधिकांश निजी अस्पतालों  COVID 19 रोगियों को यह दवा खुद खरीदने के लिए कह रहे हैं। बेड की उपलब्धता के संबंध में अस्पष्टता के मद्देनजर रोगी एक अस्पताल से दूसरे अस्पताल का चक्कर लगा रहे हैं। राज्य सरकार को ग्रामीण क्षेत्रों में स्वास्थ्य सुविधाओं को मजबूत करने के लिए तत्काल ध्यान देने की आवश्यकता है...। न्यायालय द्वारा उपचार के लिए निर्धारित दरों से अधिक शुल्क नहीं लेने के निर्देश के बावजूद, निजी अस्पताल अत्यधिक शुल्क ले रहे हैं।"

इसके अलावा, न्यायालय ने यह भी कहा कि यह उपचार कर रहे डॉक्टरों को तय करना चाहिए कि किसी मरीज को रेमडेसिवीर इंजेक्शन दिया जाना है और एक बार निर्धारित करने के बाद यह सुनिश्चित करना राज्य का कर्तव्य है कि यह जल्द से जल्द उपलब्ध हो।

यह नोट करना उचित है कि न्यायालय ने राज्य को यह सुनिश्चित करने के लिए निर्देश दिया था कि मरीजों या परिचारकों से अत्यधिक कीमत वसूल कर, उनका शोषण नहीं किया जाए और राज्य केवल सरकारी अस्पतालों को ही नहीं बल्कि निजी अस्पतालों/नर्सिंग होम्स को भी रेमडेसिवीर की निरंतर आपूर्ति सुनिश्चित करेगा और विनियमित करेगा।

राज्य की ओर से पेश एडवोकेट जनरल ने अदालत को बताया कि सात घरेलू निर्माताओं से आपूर्ति सुनिश्चित करने के बाद 21 से 30 अप्रैल तक 10 दिनों के लिए रेमडेसिवीर का अंतरिम आवंटन सुनिश्चित किया गया है।

इसके अलावा, यह बताया गया कि राज्य को 30.04.2021 से पहले रेमडेसिवीर के 95000 शीशियों का आवंटन किया गया है, जिनमें से केवल 45,000 शीशियों को सरकारी अस्पतालों में उपयोग के लिए रखा गया था और निजी अस्पतालों में आपूर्ति करने के लिए 50,000 शीशियां आवंटित की गई थी, लेकिन यह शर्त थी कि वे आईसूयी/एचडीयू / ऑक्सीजन सपोर्टेड बेड पर भर्ती COVID 19 रोग‌ियों की संख्या के आधार पर निजी अस्पतालों में भर्ती COVID 19  रोगियों के उपचार के लिए दवा की समान बिक्री / उपलब्धता सुनिश्चित करेंगे।

अतिरिक्त मुख्य सचिव स्वास्थ्य सेवाएं द्वारा यह प्रस्तुत किया गया कि सरकारी अस्पतालों में केवल 5 से 6% COVID 19 रोगियों को ही उक्त इंजेक्शन निर्धारित किया जा रहा था, हालांकि निजी अस्पतालों द्वारा अंधाधुंध तरीके से इसकी मांग बढ़ रही थी।

राज्य सरकार की ऑक्सीजन पर जीवित मरीजों को ही रेमेडिसविर प्रदान करने की नीति को अतार्किक मानते हुए न्यायालय ने कहा, ".. हम पाते हैं कि इस दवा के वितरण की नीति के औचित्य के संबंध में न केवल निजी अस्पतालों और नर्सिंग होम में असंतोष है, बल्कि रेमेडिसविर इंजेक्शन के वितरण की नीति के संबंध में रोगियों और उनके परिचारकों/परिवार के सदस्यों में बहुत रोष है, जिसका नतीजा है कि काला-बाज़ारी फल-फूल रही है। यह कभी-कभी ऐसे अस्पतालों में बहुत अराजक स्थिति पैदा करता है, जिससे कानून और व्यवस्था की स्थिति बन जाती है।

हम इन सभी मुद्दों के ‌विस्तार में नहीं जाना चाहते हैं लेकिन इस संबंध में अपनाई गई नीति की प्रभावकारिता पर लगे गंभीर प्रश्नचिह्न को देखते हुए राज्य सरकार को अपनी वितरण नीति पर फिर से विचार करना चाहिए ताकि सभी हितधारकों के परामर्श से इसे तर्कसंगत बनाया जा सके...।"

ऑक्सीजन की आपूर्ति में कमी पर

एमिकस क्यूरी ने कोर्ट को बताया कि लगातार ऑक्सीजन की आपूर्ति सुनिश्चित करने के लिए न्यायालय के विस्तृत निर्देशों के बावजूद, राज्य व‌िफल रहा है, और ऑक्सीजन की कमी के कारण राज्य में लगभग 60 मौतें हुईं।

अदालत को बताया गया कि केंद्र सरकार द्वारा पीएम केयर फंड के तहत राज्य के लिए आवंटित 8 प्रेसर स्विंग एब्जॉर्प्शन (पीएसए) ऑक्सीजन प्लांटों में से केवल पांच प्लांट स्थापित किए गए हैं और वे भी आधे से कम क्षमता पर कार्य कर रहे हैं।

कोर्ट ने कहा, "मध्य प्रदेश राज्य में 52 जिले हैं, जिनमें जिला अस्पताल हैं। कोई कारण नहीं है कि वह 50 करोड़ रुपये की राशि का निवेश नहीं कर सकता है, ताकि उनमें से प्रत्येक अस्पताल में एक पीएसए ऑक्सीजन प्लांट स्थापित किया जा सके। पूरे राज्य में कोई लिक्विड ऑक्सीजन निर्माण संयंत्र नहीं है।"

यह देखते हुए कि राज्य सरकार की ओर से पेश "एक्शन रिपोर्ट में बताई गई स्‍थ‌िति की तुलना में जमीन पर हालात पूरी तरह अलग हैं ", अदालत ने समाचार पत्रों की रिपोर्ट को गंभीरता से लिया, जिसमें ऑक्सीजन की आपूर्ति में कमी के कारण विभिन्न मौतें के बारे में जानकारी दी गई थी और कहा, "यहां तक ​​कि राज्य ने भी ऑक्सीजन की अनुपलब्धता के कारण अस्पतालों में हुई कथित मौतों की सत्यता पर सवाल उठाने का कोई गंभीर प्रयास नहीं किया है। इतनी बड़ी संख्या में नागरिकों की मृत्यु वास्तव में हृदय-विदारक है। अफ़सोस कि लोग ऑक्सीजन की कमी के कारण अस्पतालों में मर रहे हैं।"

यह देखते हुए कि जीवन का अधिकार तब तक निरर्थक है, जब तक कि "स्वास्थ्य के अधिकार सहित कुछ सहवर्ती अधिकारों की गारंटी नहीं दी जाती है", न्यायालय ने यह माना की नागरिकों को स्वास्थ्य का अधिकार केवल तभी सुनिश्‍चित किया जा सकता है, जब तक कि राज्य उनकी भलाई, उपचार, स्वास्थ्य देखभाल के पर्याप्त व्यवस्‍था नहीं करता है और उन्हें कोरोनावायरस जैसी आपदाओं से बचाकर उनकी देखभाल नहीं करता।

"स्वास्थ्य की सामाजिक न्याय और समानता के लिए अपनी पूर्वापेक्षाएं हैं और यह सभी के लिए सुलभ होना चाहिए। इसमें स्वास्थ्य विकारों, बीमारियों, अन्य स्वास्थ्य प्रभावों की रोकथाम, निदान, उपचार और प्रबंधन सहित सभी प्रकार की स्वास्थ्य सेवाओं को प्राप्त करने की क्षमता शामिल है।"

पूर्व में जारी किए गए निर्देशों को दोहराते हुए, न्यायालय ने कहा कि जो अस्पताल सरकारी योजनाओं के तहत कैशलेस उपचार प्रदान करने के लिए अनुमोदित हैं, "वे संबंधित रोगियों को उपचार प्रदान करने से इनकार नहीं करेंगे और यदि इस संबंध में कोई शिकायत मिलती है, तो राज्य सरकार उनके खिलाफ उचित कार्रवाई करेगी।"

6 मई को मामले की आगे की सुनवाई के लिए पोस्टिंग करते हुए, अदालत ने राज्य और इसके अधिकारियों को निर्देश दिया कि वे 19 अप्रैल के पहले के आदेश में कोर्ट द्वारा जारी दिशा-निर्देश लागू करने के लिए प्रयास करें।

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