COVID-19: "जीवन से अधिक महत्वपूर्ण नहीं है शिक्षा", दसवीं कक्षा के छात्र ने बॉम्बे हाईकोर्ट में अपील दायर कर एसएससी बोर्ड की परीक्षा रद्द करने के राज्य सरकार के फैसले को ना बदलने का आग्रह किया

Update: 2021-05-28 05:16 GMT

पुणे के दसवीं कक्षा के एक छात्र ने बॉम्बे हाईकोर्ट में अपील दायर कर एसएससी बोर्ड की परीक्षा रद्द करने के राज्य सरकार के फैसले को ना बदलने का आग्रह किया है।

आवेदक रिशन असीम सरोदे की ओर से दायर एक हस्तक्षेप आवेदन में आदेश की तारीख से 7 दिनों की विशिष्ट समय सीमा के साथ परीक्षा आयोजित किए बिना छात्रों के मूल्यांकन की प्रक्रिया तैयार करने के लिए बोर्ड को निर्देश देने की मांग की गई है।

सा‌थ ही, आवेदक ने अदालत से बाल मनोवैज्ञानिक और मनोचिकित्सक जैसे मानसिक स्वास्थ्य देखभाल कर्मचारियों की राय लेने का आग्रह किया है ताकि यह समझा जा सके कि निर्णयों में बदलाव से बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य पर क्या प्रभाव पड़ेगा।

आवेदन में कहा गया है, "महामारी के कारण इस वर्ष को असाधारण वर्ष माना जाना चाहिए। शिक्षा महत्वपूर्ण है, हालांकि यह बच्चों, शिक्षकों, अन्य कर्मचारियों और बच्चों के माता-पिता के जीवन से अधिक महत्वपूर्ण नहीं हो सकती है...।"

मार्च 2021 में तय एसएससी परीक्षाओं को रद्द करने के राज्य सरकार के फैसले के खिलाफ दायर जनहित याचिका में हस्तक्षेप के लिए आवेदन दायर किया गया है। याचिका उच्च न्यायालय के समक्ष लंबित है।

आवेदक ने कहा है कि एक 61 वर्षीय बुजुर्ग ने राज्य सरकार के फैसले को बदलने के लिए याचिका दायर की है, जबकि उसने इस बात पर विचार नहीं किया है कि ऐसी अनिश्चितताओं के बीच बच्चे कैसी मानसिक और भावनात्मक स्‍थ‌ितियों से गुजर रहे हैं, और ऐसे मामलों में बाल अधिकारों का दृष्टिकोण महत्वपूर्ण है।

अधिवक्ता असीम सरोदे और अजिंक्य उडाने की ओर से दायर वर्तमान आवेदन में राज्य एसएससी बोर्ड द्वारा निर्णय लेने में निरंतर अनिश्चितता के कारण छात्रों के 'भावनात्मक दबाव, मनोवैज्ञानिक प्रभावों' की ओर अदालत का ध्यान आकर्षित करने की मांग की गई है।

आवेदक ने तर्क दिया है कि परीक्षा आयोजित करने पर जोर देकर बच्चों के जीवन को खतरे में डाला जा रहा है, क्योंकि विभिन्न प्रकार के वायरस आने के कारण यह कहना अभी भी सुरक्षित नहीं है कि बच्चे प्रभावित नहीं होंगे, और विशेषज्ञों के अनुसार तीसरा स्ट्रेन बच्चों को प्रभावित कर सकता है।

कक्षा 12वीं और 10वीं के लिए आवश्यक मूल्यांकन के बीच अंतर का उल्लेख करते हुए, आवेदक ने कहा है कि कक्षा 12वीं के छात्रों के लिए मूल्यांकन के कुछ रूप आवश्यक हो जाते हैं क्योंकि 12वीं के बाद एक पेशेवर पाठ्यक्रम का चयन किया जाता है, जबकि 10वीं कक्षा के मामले में ऐसा नहीं है...।

आवेदक ने कहा है कि बोर्ड छात्रों के जीवन को आकार देने में महत्वपूर्ण हैं, परीक्षा रद्द करने के निर्णय के बाद छात्रों और अभिभावकों को राहत हुई है, लेकिन फैसले के पलटने से छात्रों का अध्ययन में वापस जाना मानसिक रूप से तनावपूर्ण होगा।

आवेदक ने तर्क दिया कि ग्रामीण क्षेत्रों के छात्रों, जो सामाजिक और आर्थिक रूप से पिछड़े वर्गों के छात्रों हैं, जिनकी ऑनलाइन कक्षाओं तक पहुंच नहीं थी, उनका आकलन बोर्ड परीक्षा आयोजित करके करना अनुचित होगा।

महामारी के संबंध में मौजूद अनिश्चितता की ओर इशारा करते हुए, आवेदक ने तर्क दिया है कि यह कहना गलत होगा कि छात्र परीक्षा देने के इच्छुक नहीं है, क्योंकि जिन स्कूलों की ऑनलाइन कक्षाओं तक पहुंच थी, वे छात्रों की पढ़ाई कराते थे और समय-समय पर उनका मूल्यांकन करते थे।

आवेदक के अनुसार, 10वीं और 12वीं की परीक्षा में लगभग 30 लाख छात्र शामिल होंगे, यह देखते हुए 10वीं की परीक्षा रद्द करने से 16 लाख छात्रों और 32 लाख अभिभावकों के लिए जोखिम कम हो जाएगा।

यह ध्यान दिया जा सकता है कि दसवीं कक्षा की माध्यमिक विद्यालय प्रमाणपत्र परीक्षा रद्द करने के फैसले पर 20 मई को बॉम्बे हाईकोर्ट ने महाराष्ट्र सरकार को फटकार लगाई थी, जिसके बाद वर्तमान आवेदन दायर किया गया है।

जस्टिस एसजे खथावाला और एसपी तावड़े की खंडपीठ ने मौख‌िक रूप से कहा था, "महामारी के नाम पर हम अपने बच्चों का करियर और भविष्य खराब नहीं कर सकते। शिक्षा नीति के निर्माताओं को यह पता होना चाहिए कि राज्य में यह बिल्कुल भी स्वीकार्य नहीं है।" 

Tags:    

Similar News