'COVID-19 के बहाने जमानत नहीं मांग सकते', पंजाब व हरियाणा हाईकोर्ट ने अभियुक्त को जमानत देने से किया इनकार

Update: 2020-06-13 11:59 GMT

पंजाब व हरियाणा हाईकोर्ट ने हाल ही में एक अभियुक्त को जमानत पर रिहा करने से इंकार करते हुए यह कहा कि कोरोना महामारी ने भारत सहित लगभग पूरी दुनिया को प्रभावित किया है और इसके चलते न्यायालयों का कामकाज भी प्रभावित हुआ है। लेकिन याचिकाकर्ता निश्चित रूप से इस तथ्य का लाभ नहीं उठा सकता है और उक्त कारण के चलते जमानत की मांग नहीं कर सकता है।

न्यायमूर्ति एच. एस. मदान की एकल पीठ ने यह आदेश अभियुक्त संत लाल द्वारा उसे नियमित जमानत देने के लिए दायर उसकी दूसरी याचिका पर दिया। दरअसल, अभियुक्त संत लाल, थाना रतिया, जिला फतेहाबाद में दर्ज एफआईआर नंबर 45 में धारा 396, आईपीसी और धारा 25, आर्म्स एक्ट के तहत आरोपित है।

अभियुक्त पहले भी अदालत से कर चुका है जमानत की मांग दरअसल, याचिकाकर्ता ने इसी तरह की राहत प्राप्त करने के लिए अदालत का दरवाजा पूर्व में भी खटखटाया था, लेकिन उसकी याचिका (सीआरएम-एम -51482-2019) को एक विस्तृत और सुविचारित आदेश के जरिये बीते 5-फरवरी-2020 को हाईकोर्ट द्वारा खारिज कर दिया गया था।

गौरतलब है कि याचिकाकर्ता/अभियुक्त, संत लाल के खिलाफ आरोप/मामला न केवल गंभीर प्रकृति का है बल्कि वह लगातार कानून की पहुंच से स्वयं को दूर रख रहा था और उसे 7-मार्च-2019 के आदेश के जरिये उद्घोषित अपराधी (Proclaimed offender) भी नामित कर दिया गया था। इसके बाद 23-जुलाई-2019 को उसे गिरफ्तार कर लिया गया था।

अदालत ने 5-फरवरी-2020 के अपने आदेश में अभियुक्त को जमानत पर रिहा करने से इंकार करते हुए यह देखा था कि मौजूदा समय में, उसके खिलाफ चल रहा मुकदमा बहस के एक बहुत ही अग्रिम चरण में हैं इसलिए, कोई कारण नहीं है कि याचिकाकर्ता को उसके खिलाफ आरोपों की गंभीरता को ध्यान में रखने के साथ-साथ उसके फरार होने के अतीत के आचरण और उद्घोषित अपराधी नामित होने की परिस्थितितियों के बीच उसे नियमित जमानत दी जाए।

अदालत ने यह भी देखा था कि याचिकाकर्ता का एक लंबा आपराधिक रिकॉर्ड है, और उसका 10 अन्य आपराधिक मामलों में शामिल होना मालूम चलता है, जिसमें आईपीसी के विभिन्न प्रावधानों (हत्या सहित) के साथ एनडीपीएस अधिनियम के प्रावधानों के तहत मामले शामिल हैं।

हाईकोर्ट ने उसे जमानत पर रिहा करने से इनकार करते हुए अंत में अपने आदेश में यह अवलोकन किया था कि,

"जहाँ कई मामलों में, उसे आरोपों से बरी कर दिया गया है, वहीँ कुछ मामलों में उसे दोषी ठहराया गया है, लेकिन 10 आपराधिक मामलों में उसके खिलाफ मुकदमा दर्ज किया जाना, स्पष्ट रूप से उसकी आपराधिक प्रवृत्ति को दर्शाता है।"

'COVID-19 के कारण ट्रायल आगे नहीं बढ़ रहा इसलिए जमानत दी जाए'

मौजूदा याचिका (जोकि जमानत प्राप्त करने के लिए अभियुक्त द्वारा दाखिल उसकी दूसरी याचिका है) में याचिकाकर्ता/अभियुक्त ने उसे नियमित जमानत देने के लिए पूर्व में बताये गए कारणों को आधार बनाते हुए यह भी कहा कि,

"COVID -19 महामारी के कारण परीक्षण (Trial) आगे नहीं बढ़ रहा है और एफआईआर 2011 की है, और इसलिए, याचिकाकर्ता को सलाखों के पीछे रखने के लिए कोई उद्देश्य मौजूद नहीं है।"

इस आधार को जमानत देने का कोई वैध आधार न मानते हुए और पूर्व में अभियुक्त को जमानत देने से इंकार करने के अदालत के आदेश पर गौर करते हुए, अदालत ने अभियुक्त को जमानत पर रिहा करने से इंकार कर दिया।

अदालत ने मुख्य रूप से यह टिपण्णी की कि

"यह कारण/आधार बिलकुल भी ठोस नहीं है और यह याचिकाकर्ता के लिए इस मामले में फिर से नियमित जमानत की मांग करने के लिए एक मामला नहीं बनाता है। कोरोना महामारी ने भारत सहित लगभग पूरी दुनिया को प्रभावित किया है। देश भर में कई महीनों से कर्फ्यू और लॉकडाउन लागू है। इसके चलते न्यायालयों का कामकाज भी प्रभावित हुआ है। मुकदमे के दौरान अभियोजन पक्ष के गवाहों की गैर-जांच के लिए अभियोजन को दोषी नहीं ठहराया जा सकता है।

याचिकाकर्ता निश्चित रूप से इस तथ्य का लाभ नहीं उठा सकता है और उक्त कारण के लिए जमानत मांगना नहीं शुरू कर सकता है।"

आदेश की प्रति डाउनलोड करने के लिए यहां क्लिक करें



Tags:    

Similar News