COVID-19 मृतकों को अनुच्छेद 21 और 25 के तहत धर्म अनुसार अंतिम संस्‍कार का अधिकार, कलकत्ता हाईकोर्ट ने जारी किए दिशानिर्देश

Update: 2020-09-19 05:27 GMT

Calcutta High Court

यह कहते हुए कि भारत के संविधान के अनुच्छेद 25 में उचित अंतिम संस्कार के अधिकार ‌को ढूंढ़ा जा सकता है, कलकत्ता हाईकोर्ट ने बुधवार को फैसला सुनाया कि COVID-19 पीड़ितों के परिजनों को मृतक व्यक्ति के अंतिम संस्कार की अनुमति दी जाए। उन्हें घातक वायरस, जिससे दुनिया भर में अनगिनत लोगों की जान चली गई, से संक्रमित होने के जोखिम को खत्म करने/ कम करने के लिए कुछ एहतियाती दिशानिर्देशों का पालन करना चाहिए।

न्यायालय का दृढ़ मत था कि मृत व्यक्ति के पर‌िजनों द्वारा उसके अंतिम संस्‍कार का अधिकार संविधान के अनुच्छेद 21 के अंतर्गत मौलिक अधिकार है। चीफ जस्टिस थोट्टाथिल बी राधाकृष्णन और जस्टिस अरिजीत बनर्जी ने एक जनहित याचिका पर यह फैसला सुनाया, जिसमें निम्न मुद्दे उठाए गए थे-

i) COVID-19 पीड़‌ित व्यक्ति के अवशेष/ शवों का ‌निस्‍तारण प्रशासन द्वारा अनौपचा‌रिक और असम्‍माननीय ढंग से किया जा रहा है, यहां तक ​​कि मृतक के अवशेषों का सम्मान भी नहीं नहीं किया जा रहा है।

ii) COVID-19 के कारण अस्पतालों में भर्ती व्यक्तियों के परिजनों और दोस्तों या जिन व्यक्तियों को अन्य बीमारियों के उपचार के लिए अस्पतालों में भर्ती कराया गया था, मगर वहां COVID-19 के संपर्क में आ गए और उनकी मृत्यु हो गई, ऐसे व्यक्तियों के शवों को अंतिम बार देखने की अनुमति नहीं दी जा रही है या मृत व्यक्ति के अवशेषों को अंतिम सम्मान देने और अंतिम संस्कार करने क अनुमति नहीं दी जा रही है।

डिवीजन बेंच ने कहा कि इसमें संदेह की कोई गुंजाइश नहीं है कि अनुच्छेद 21 में निहित जीवन के अधिकार में गरिमा के साथ जीवन का अधिकार शामिल है, याचिकाकर्ता की प्रस्तुत‌‌ियों के साथ सहमत‌ि है कि गरिमा के साथ रहना न केवल एक जीवित व्यक्ति का अधिकार है, बल्‍कि मृत्यु के बाद भी यह अधिकार लागू होता है।

बेंच ने कहा, "अनुच्छेद 21 के तहत गरिमा और उचित व्यवहार का अधिकार न केवल जीवित व्यक्ति के लिए उपलब्ध है, बल्कि यह मृत्यु के बाद भी बना रहता है। मानव शरीर का निस्तारण, चाहे वह COVID-19 से मरा हो या नहीं, चाहे दफन किया जाए या जलाया जाए, सम्मान और निष्ठा के साथ किया जाना चाहिए।" बेंच ने सहमति व्यक्त की कि मृतक के निकट और प्रिय व्यक्तियों को मृतक के अवशेषों पर अंतिम रूप से देखने का अवसर दिया जाना चाहिए था। उन्हें दिवंगत आत्मा को अंतिम सम्मान और श्रद्धांजलि अर्पित करने का अध‌िकार दिया जाना चाहिए था।" 

पीठ ने कहा कि परंपराएं और सांस्कृतिक पक्ष किसी व्यक्ति के मृत शरीर के अंतिम संस्कार में अंतर्निहित हैं, और उच‌ित अंतिम संस्कार के अधिकार को संविधान के अनुच्छेद 25 में भी ढूंढ़ा जा जा सकता है। पीठ का विचार था कि गरिमापूर्ण जीवन का अधिकार मृत्यु व गरिमापूर्ण प्रक्रिया सहित मृत्यु तक फैला हुआ है।

"हम मृतक के अवशेषों के गरिमापूर्ण निस्तारण को शामिल करने के लिए "मौत की गरिमामयी प्रक्रिया" वाक्यांश को विस्तार से व्याख्या करने के इच्छुक हैं। हम बिना हिचक मानते हैं कि मृतक के अवशेषों के साथ सम्मानपूर्ण बर्ताव किया जाना चाहिए और धर्म के अनुसार उनका अंतिम संस्कार किया जाना चाहिए है....।

दूसरा मुद्दा, अर्थात्, COVID-19 पीड़ितों के रिश्तेदारों और दोस्तों को मृतक का अंतिम संस्कार करने या अंतिम बार देखने की अनुमति नहीं है; और, उसकी अनुमति दी जानी चाहिए, के सबंध में पीठ ने उल्लेख किया कि सरकार की 6 जून, 2020 को जारी अधिसूचना के तहत मृतक के परिजनों को शव को देखने और उन्हें अंतिम सम्मान देने का अवसर द‌िए जाने की अनुमति दी गई है। पीठ ने कहा, "हमारे विचार में, परिवार के सदस्यों को मृतक का अंतिम संस्कार करने की अनुमति दी जानी चाहिए, भले ही मृतक COVID-19 से संक्रमित रहा हो।"

पीठ ने विचार किया समान्यतः आस्तिक हो या नास्तिक, विवेक और स्वतंत्र पेशे की स्वतंत्रता और धर्म का अभ्यास संविधान के अनुच्छेद 25 के खंड (1) के तहत संरक्षित है। उस खण्ड में "धर्म" शब्द को किसी विशेष धर्म से जोड़ने की आवश्यकता नहीं है क्योंकि इसे धार्मिक संज्ञा के रूप में समझा जाता है। यह विश्वास और अपने विवेक का विषय है, जो किसी व्यक्ति विशेष के लिए धर्म विस्तृत अर्थों में हो पेशे और अभ्यास को बढ़ावा दे सकता है।

इस अवधारणा को ध्यान में रखते हुए, पीठ ने कहा कि इस बात को चित्रित करने की आवश्यकता है कि यह विभिन्न धार्मिक संप्रदायों की धार्मिक प्रथाएं नहीं हैं जो इस प्रकार के मामलों में मायने रखती हैं। यह उस व्यक्ति के साथ संपर्क का विषय है, जिसकी मृत्यु हो चुकी है और निकट संबंधियों के संबंध में है, जिनका कोई भी स्तर हो सकता है। मूल रूप से, माता-पिता और बच्चे, पति और पत्नी, दादा-दादी और पोते, आदि के बीच मानवीय संबंध किसी भी सामान्य सिद्धांत पर आधारित नहीं है। यह प्रत्येक व्यक्ति के विश्वास और विवेक की बात है।

पीठ ने कहा, "हमारे देश में पारंपरिक विश्वास यह है कि दफन/ दाह से पहले जब तक अंतिम संस्कार नहीं किया जाता है, तब तक मृतक की आत्मा को शांति नहीं मिलती। यह विश्वास हमारे देश में गहरा है। इसका भावनात्मक और भावुक पहलू भी है।" पीठ ने कहा कि परिजनों को मृतक के अंतिम संस्कार के अधिकार से वंचित नहीं किया जाना चाहिए...।

सार्वजनिक आदेश, नैतिकता और स्वास्थ्य से संबंधित विभिन्न पहलुओं और COVID-19 या कोमोर्बिडिटी के दुर्भाग्यपूर्ण पीड़ितों के प्रिय और निकटवर्ती की आवश्यकताओं के बीच संतुलन स्‍थाप‌ित करते हुए पीठ ने ‌निम्नलिख‌ित दिशानिर्देश जारी करने का प्रस्ताव दिया-

i) जब मृत शरीर के पोस्टमार्टम की आवश्यकता न हो तो अस्पताल की औपचारिकताएं पूरी करने के बाद, मृतक को बिल्कुल करीबी परिजन, माता-पिता/जीवित पति या पत्नी / बच्चों सौंप दिया जाए। शरीर को एक बॉडी बैग में सुरक्षित रखा जाए, जिसका चेहरा पारदर्शी हो और जिसके बाहरी हिस्से को उचित रूप से सैनेटाइज़ किया गया हो ताकि शव को ले जाने वाले लोगों के लिए जोखिम को कम किया जा सके।

ii) मृत शरीर को संभालने वाले लोग मानक सावधानी बरतेंगे, जैसे, सर्जिकल मास्क, दस्ताने, आदि यदि उपलब्ध हो और संभव हो, तो पीपीई का उपयोग किया जाना चाहिए।

iii) शव को श्मशान / कब्रिस्तान पर ले जाने वाले वाहन को उपयुक्त रूप से सैनैटाइज़ किया जाएगा।

iv) श्मशान / कब्रिस्तान के कर्मचारियों को यह समझाना चाहिए कि COVID-19 अतिरिक्त जोखिम पैदा नहीं करता है। वे मानक सावधानी बरतेंगे।

v) बॉडी बैग के चेहरे के छोर को कर्मचारियों द्वारा अंतिम समय तक शव को देखने की अनुमति देने के लिए श्मशान / कब्रिस्तान में उतार दिया जा सकता है। इस समय, धार्मिक अनुष्ठानों, जैसे धार्मिक लिपियों को पढ़ना, पवित्र जल छिड़कना, अनाज की पेशकश और ऐसे अन्य अंतिम संस्कार, जिन्हें शरीर को छूने की आवश्यकता नहीं है, की अनुमति दी जानी चाहिए।

vi) श्मशान / अंत्येष्टि के बाद परिवार के सदस्यों और श्मशान / कब्रिस्तान के कर्मचारियों को उचित रूप से खुद की सफाई करनी चाहिए।

vii) सामाजिक दूरी बरतते हुए, श्मशान/ कब्रिस्तान पर भीड़ से बचा जाना चाहिए।

viii) शव को संभालने वाले व्यक्ति अस्पतालों से सीधे श्मशान / कब्रिस्तान पर जाएंगे, जैसा कि मामला हो सकता है, और मृतक के घर सहित कहीं और नहीं जहां वह अंतिम निवास करता था।

ix) यदि एक COVID-19 संक्रमित मृतक का शरीर लावारिस है, तो राज्य के खर्च से अंतिम संस्कार किया जा सकता है।

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