COVID-19 : बॉम्बे हाईकोर्ट ने राज्य से श्रमिकों/प्रवासियों को ज़रूरी बुनियादी सुविधाएं सुनिश्चित करने को कहा

Update: 2020-04-03 03:45 GMT

बॉम्बे हाईकोर्ट की नागपुर पीठ ने राज्य के अथॉरिटीज़ से कहा है कि वे COVID-19 महामारी को देखते हुए राज्य में सभी श्रमिकों और प्रवासी मज़दूरों को बुनियादी सुविधाएँ सुनिश्चित करने के लिए तत्काल क़दम उठाएँ।

देश भर में COVID-19 महामारी के कारण हुए लॉकडाउन के कारण श्रमिकों को उनका काम बंद हो जाने के कारण हुए "अकल्पनीय मुश्किलों" पर ग़ौर करते हुए न्यायमूर्ति सुनील बी शुक्रे की एकल पीठ ने कहा,

"इस परिस्थिति में ज़रूरी बात है कि इन श्रमिकों को कपड़ा, दवा और स्वास्थ्य सुविधाएँ मुहैया कराए जाने के अलावा इन्हें सुरक्षा का भरोसा दिलाए जाने की ज़रूरत है…इसलिए यह अदालत महाराष्ट्र राज्य को इन प्रवासी मज़दूरों सहित कामगारों, श्रमिकों के ठहरने, भोजन, इनकी स्वच्छता, कपड़े और स्वास्थ्य की देखभाल का प्रबंध करने का निर्देश देता है जिनको इनकी ज़रूरत है।"

देशव्यापी लॉकडाउन के कारण हर गतिविधि बंद हो गई है, सिर्फ़ आवश्यक सेवाएँ ही चल रही हैं जिसकी वजह से शहरी क्षेत्रों में रह रहे श्रमिकों को अपने घर वापस जाने कि लिए बाध्य होना पड़ रहा है। इस स्थिति पर चिंता जताते हुए अदालत ने कहा, "श्रमिकों के इस बड़े पैमाने पर आवाजाही से कोविड-19 के और फैलने की आशंका बढ़ गई है। दैनिक आय के स्रोत के बंद हो जाने के कारण जिस तरह की मुश्किलों को उन्हें झेलना पड़ रहा है, यह उसके अलावा है"।

अदालत ने कहा कि वे इस बात को जानते हैं कि आर्थिक तंगी इस काम के आड़े आएगी। इसे देखते हुए उन्होंने सुझाव दिया कि सार्वजनिक न्यास अधिनियम या वक़्फ़ अधिनियम के तहत पंजीकृत धर्मार्थ संस्थाओं को आम लोगों की मदद कर अपने दायित्व के निर्वाह के लिए कहा जा सकता है।

अदालत ने स्पष्ट किया कि राज्य सरकार के सभी विभाग वित्त 2019-20 के दौरान हुए खर्चे से संबंधित अपने बिल ज़िला ट्रेज़री और उप ट्रेज़री को निर्धारित 1 अप्रैल 2020 की सीमा के बाद भी जमा कर सकते हैं। ऐसा देशव्यापी लॉकडाउन को देखाए हुए किया गया है। इस मामले पर अगली सुनवाई अब 8 अप्रैल को होगी।

यह आदेश उड़ीसा हाईकोर्ट के अनुरूप है जिसने स्वतः संज्ञान लेते हुए श्रमिकों के शहर से भारी संख्या में पलायन को देखते हुए उनके लिए उपयुक्त इंतज़ाम के आदेश दिए थे। इन श्रमिकों की मेडिकल जाँच के आदेश भी अदालत ने दिए थे।

इसी तरह के आदेश केरल और राजस्थान हाईकोर्ट भी दे चुकी है।

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