'कोर्ट मेंं पहले ही कार्य-सूची ओवरफ्लो है' : पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने एक जैसी कार्रवाई के लिए कई रिट याचिकाएं दाखिल करने पर प्रतिबंध लगाया
पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट ने पिछले सप्ताह कार्यवाही के समान कार्य के संबंध में कई रिट याचिकाएं दायर करने की प्रथा को प्रतिबंधित कर दिया।
यह देखते हुए कि ''न्यायालयों की कार्य-सूची पहले से मामलों से भरी पड़ी है'' न्यायमूर्ति अनिल क्षेत्रपाल ने कहा कि कई याचिकाओं को दाखिल करना ''न तो न्याय के हित में है और न ही न्यायिक संस्था के हित में है।''
एकल पीठ ने अपना विचार व्यक्त करते हुए कहा कि ''इससे संस्थान का मूल्यवान समय नष्ट होता है''जिसके लिए ''बार और बेंच समान रूप से सहभागी हैं।''
अदालत ने कहा कि ''इस संस्थान की स्थापना इसलिए की गई है ताकि यह सभी वादकारियों को न्याय दिलाने के लिए ईमानदारी से प्रयास करें। इस लक्ष्य को हासिल करने के लिए यह आवश्यक है कि किसी भी तरह की अनावश्यक याचिकाओं को दायर करने से रोका जाए या हतोत्साहित किया जाए।''
एकल पीठ इस मामले में पंजाब राज्य और अन्य प्रतिवादियों के खिलाफ एक श्रमिक संघ द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई कर रही थी।
पीठ ने कहा कि
''शुरुआत में, यह नोट करना महत्वपूर्ण है कि रिट याचिकाकर्ता ने पहले एक सिविल रिट याचिका दायर की थी, जिसमें 24 जून 2020 को प्रस्ताव का नोटिस जारी किया गया था और वह रिट 20 जुलाई 2020 के लिए लंबित थी। पिछली रिट याचिका और वर्तमान रिट याचिका के पक्षकार लगभग एक समान ही हैं।''
पीठ ने कहा कि-
'' जिस सवाल का जवाब यह अदालत देना चाहती है वो यह है कि ' क्या कार्रवाई के समान कारण के संबंध में एक समान पक्षकारों के बीच कई रिट याचिकाएं दायर करने की अनुमति दी जानी चाहिए या नहीं?''
न्यायमूर्ति क्षेत्रपाल ने कहा कि हाईकोर्ट ने रिट याचिकाओं की फाइलिंग को विनियमित करने के लिए, रिट क्षेत्राधिकार (पंजाब और हरियाणा) नियम, 1976 को अधिसूचित किया है। जारी प्रारूप के अनुसार, याचिका के सूचीपत्र में ही इस बात का खुलासा करने की आवश्यकता होती है कि क्या कोई अन्य समान मामला लंबित है या नहीं।
इसके अलावा, पीठ ने कहा कि रूल्स 1976 के नियम 32 में यह प्रावधान है कि उन सभी मामलों में जिनके लिए इन नियमों में कोई प्रावधान नहीं किया गया है, उन पर कोड आॅफ सिविल प्रोसिजर 1908 के प्रावधान यथोचित परिवर्तनों सहित लागू होंगे क्योंकि अब तक यह प्रावधान इन नियमों के साथ असंगत नहीं हैं या इनके विरूद्ध नहीं हैं।
एकल न्यायाधीश ने इस बात की सराहना करते कहा कि सीपीसी के आदेश 2 नियम 2 में कहा गया है कि याचिका या मुकदमा दायर करते समय, उस पूरे दावे को जोड़ना आवश्यक है, जिसके लिए कार्रवाई के कारण के संबंध में वादी या याचिकाकर्ता हकदार है। ऐसा करने में विफल रहने पर वह बाद में छूट गए या त्याग दिए गए भाग के संबंध में मुकदमा करने का हकदार नहीं होगा।
इसी तरह, पीठ ने कहा कि सीपीसी की धारा 11 के स्पष्टीकरण प्ट में यह भी बताया गया है कि कोई भी मुद्दा या दलील, जिसे अनुच्छेद 226 के तहत इस तरह के पूर्व में दायर मुकदमे या याचिका में बचाव या हमले का आधार बनाया गया हो, उसे इस तरह के सूट या कार्यवाही में सीधे या काफी हद तक एक मुद्दा माना जाएगा।
पीठ ने कहा कि-
''सीपीसी के आदेश 2 नियम 2 उस समय विशेष रूप से लागू होते हैं, जब रूल्स 1976 में , सीपीसी के आदेश 2 नियम 2 के प्रावधानों के विरूद्ध कोई प्रावधान न हो।''
यह देखते हुए कि सीपीसी की धारा 141 में विविध या मिश्रित कार्यवाहियों के बारे में बताया गया है और स्पष्टीकरण में कहा गया है कि अभिव्यक्ति ''कार्यवाही'' में संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत की जाने वाली कोई कार्यवाही शामिल नहीं होगी।
न्यायालय ने, हालांकि यह विचार दिया है कि रूल्स 1976 के तहत विशिष्ट प्रावधान बनाए गए है। इसलिए सीपीसी में निर्धारित प्रक्रिया तब तक ही लागू होगी,जब तक कि इसके प्रावधान रूल्स 1976 के प्रावधानों के विरूद्ध न हो।
पीठ ने कहा कि-
''माननीय सर्वोच्च न्यायालय भी कई अवसरों पर एक ही जैसी कार्रवाई के कारण कई रिट याचिकाएं दायर करने की प्रथा की निंदा कर चुका है या अनुचित ठहरा चुका है।''
न्यायमूर्ति क्षेत्रपाल ने दोहराया कि रिट याचिका दायर करते समय याचिकाकर्ता को सूचकांक और संबंधित पैरा में यह बताने की आवश्यकता है कि क्या इसी तरह की कोई याचिका सुप्रीम कोर्ट/हाईकोर्ट/ किसी अन्य कोर्ट में लंबित है या उस पर पहले कोई निर्णय हो चुका है। अगर कोई ऐसा कारण है,जो दोनों रिट याचिकाओं में अंतर करता है तो रिट याचिकाकर्ता को कार्रवाई के कारण के उस अंतर का खुलासा भी करना होगा। इसके बावजूद भी रिट याचिकाकर्ता को उस कारण का खुलासा भी करना होगा जिसके चलते वर्तमान में दायर याचिका में मांगी गई राहत या दावे को पहले से दायर याचिका में शामिल नहीं किया जा सका था।
अदालत ने कहा, ''ये टिप्पणियां/ दिशानिर्देश जारी किए जा रहे हैं क्योंकि कई रिट याचिकाओं को दायर करने से बचना चाहिए।''
वर्तमान मामले में सवाल ये है कि ''क्या इस अदालत को दूसरी याचिका पर विचार करना चाहिए?'' एकल न्यायाधीश ने इस सवाल का जवाब नकारात्मक दिया। ।
इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए कि वर्कर्स यूनियन की तरफ वर्तमान रिट याचिका दायर की गई है, अदालत ने ''कोई भी कठोर आदेश पारित नहीं किया''। इसी के साथ याचिका का निपटारा कर दिया गया।