बलात्कार के आरोपी पर पीड़िता से शादी करने या जमानत लेने का दबाव बनाने के लिए अदालतों का इस्तेमाल ‘‘वैवाहिक सुविधा प्रदाता’’ के रूप में नहीं किया जा सकताः दिल्ली हाईकोर्ट

Update: 2023-09-04 15:45 GMT

Delhi High Court 

दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा है कि अदालतों का यौन उत्पीड़न के मामलों में आरोपी पर पीड़िता से शादी करने का दबाव बनाने या जमानत देने से इनकार करने के लिए ‘‘वैवाहिक सुविधा प्रदाता’’ के रूप में इस्तेमाल नहीं किया जा सकता है।

जस्टिस स्वर्ण कांता शर्मा ने यह भी कहा कि आरोपी द्वारा (शिकायतकर्ता को अदालत में पेश होने के लिए कहना और यह बयान दिलवाना कि वह उससे शादी करने के लिए तैयार है) जमानत प्राप्त करने के लिए भी अदालतों का उपयोग नहीं किया जा सकता है।

कोर्ट ने कहा,“कानून की अदालतों को विवाह को सुविधाजनक बनाने के उद्देश्य से एक मंच के रूप में और दुष्कर्म का आरोप लगाते हुए पहले एक एफआईआर दर्ज करवाकर विवाह सुविधा प्रदाता के रूप में इस्तेमाल नहीं किया जा सकता है। एफआईआर में आरोप लगाया गया कि आरोपी ने शारीरिक संबंध स्थापित करने के बाद पीड़िता से शादी करने से इनकार कर दिया था और बाद में जमानत देने की मांग करते हुए वह अदालत में पेश हो गई,जिसका वे कई महीनों से विरोध कर रहे थे।’’

जस्टिस शर्मा ने शादी का झांसा देकर एक महिला से बलात्कार करने के आरोपी एक व्यक्ति को जमानत देने से इनकार करते हुए यह टिप्पणी की है।

आरोपी की ओर से पेश वकील ने कहा कि पीड़िता या शिकायतकर्ता उसे जमानत देने के अनुरोध के साथ अदालत में पेश हो रही है, क्योंकि अब वह उससे शादी करने के लिए तैयार है।

याचिका को खारिज करते हुए, अदालत ने कहा कि निचली अदालत ने आरोपी की पहली अग्रिम जमानत याचिका खारिज कर दी थी और उस समय, न तो शिकायतकर्ता न्यायाधीश के सामने पेश हुई और न ही उसने यह तर्क दिया कि वह जमानत याचिका का विरोध नहीं करेगी क्योंकि आरोपी उससे शादी करना चाहता है।

हाईकोर्ट ने कहा,“इसलिए, यह अदालत नोट करती है कि 02.08.2023 तक, और उसके बाद 10.08.2023 को जब जमानत याचिका इस अदालत के समक्ष सुनवाई के लिए आई और कुछ तर्कों के बाद वापस ले ली गई, तो यह सुझाव देने के लिए कुछ भी नहीं था कि आरोपी और शिकायतकर्ता शादी करने पर विचार कर रहे हैं या आरोपी ने पीड़िता के साथ सहमति से संबंध बनाने की बात स्वीकार की है। यहां तक कि उक्त तारीख पर भी दलीलें दी गई कि आरोपी को वर्तमान मामले में झूठा फंसाया गया है।’’

जस्टिस शर्मा ने कहा पीड़िता, पुलिस और मजिस्ट्रेट को दिए गए उसके बयान के अनुसार, हमेशा आरोपी से शादी करने को तैयार थी, हालांकि, आरोपी ने हमेशा उससे शादी का वादा करने या उसके साथ शादी करने के बहाने शारीरिक संबंध स्थापित करने के आरोप से इनकार किया था।

‘‘...यह स्पष्ट है कि आरोपी के साथ-साथ शिकायतकर्ता ने भी न्यायिक प्रणाली और जांच एजेंसियों को धोखा दिया है और विभिन्न तरीकों से अपने लाभ के लिए न्यायिक प्रणाली में हेरफेर करने की कोशिश कर रहे हैं। इनमें से एक तो अब तक अग्रिम जमानत की मांग कर रहा है,जबकि उसके खिलाफ गैर जमानती वारंट जारी हो चुके हैं क्योंकि वह फरार चल रहा है और शिकायतकर्ता उससे शादी करना चाहती है।’’

यह ध्यान दिया गया कि शिकायतकर्ता ने सबसे पहले एफआईआर दर्ज कराई थी और आरोपी के खिलाफ बयान दिया था कि शादी के झूठे बहाने पर यौन संबंध बनाए गए थे, इस आरोप को उसने मजिस्ट्रेट के सामने दर्ज किए गए अपने बयान में भी दोहराया था।

कोर्ट ने कहा,“इसके बाद, 22.08.2023 को, शिकायतकर्ता एएसजे की अदालत में पेश हुई और कहा कि वह चाहती है कि आरोपी को जमानत पर रिहा किया जाए, क्योंकि अब वे दोनों शादी करना चाहते हैं। एक बार जब यह तर्क एएसजे के समक्ष उनके पक्ष में नहीं गया, तो आरोपी ने इसी तरह की याचिका के साथ इस अदालत का दरवाजा खटखटाया। शिकायतकर्ता इस अदालत के समक्ष भी पेश हुई और कहा कि अब वह जमानत याचिका का विरोध नहीं करना चाहती है और आरोपी को अग्रिम जमानत दे दी जाए।’’

जस्टिस शर्मा ने कहा कि यह दोनों पक्षों द्वारा अपने आचरण और अदालतों व जांच एजेंसी के समक्ष अपनाए गए अलग-अलग रुख के माध्यम से न्यायिक प्रणाली और जांच एजेंसी को धोखा देने से कम नहीं है।

अदालत ने कहा, ‘‘न्यायिक प्रणाली और जांच एजेंसी ने समय और संसाधनों का निवेश किया है जिसके लिए राज्य और न्यायिक प्रणाली द्वारा वित्त और मानव संसाधनों का निवेश करने की आवश्यकता होती है।’’

जस्टिस शर्मा ने कहा कि न्यायिक प्रणाली का उपयोग पक्षों के बीच हिसाब-किताब तय करने या किसी भी पक्ष पर अपने लक्ष्य तक पहुंचने के लिए एक विशेष तरीके से कार्य करने के लिए दबाव डालने के लिए नहीं किया जा सकता है।

हाईकोर्ट ने कहा,

“मामले के समग्र तथ्यों और परिस्थितियों पर विचार करते हुए, यह अदालत इसे अग्रिम जमानत देने के लिए उपयुक्त मामला नहीं पाती है क्योंकि मामला एफआईआर दर्ज करने के बिंदु से जांच के वर्तमान बिंदु तक पहुंच चुका है। आरोपों की जांच करके सच्चाई सामने लानी होगी और सच्चाई तक पहुंचने के लिए शिकायतकर्ता का भी आरोपी से आमना-सामना कराने के लिए आरोपी से हिरासत में पूछताछ करने की आवश्यकता हो सकती है।’’

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