कोर्ट उस अपराध की सुनवाई कर रहा है जो उचित चरण में पहले से तय किए गए आरोपों को बदलने या संशोधित करने के लिए सबसे उपयुक्त है: मध्य प्रदेश हाईकोर्ट

Update: 2023-10-27 07:18 GMT

मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने कहा कि ट्रायल कोर्ट उचित स्तर पर आरोपों को बदलने या संशोधित करने के लिए सबसे अच्छी स्थिति में है। इसके साथ ही कोर्ट ने ट्रायल कोर्ट के उस आदेश में हस्तक्षेप करने से इनकार कर दिया, जिसमें आरोपी के खिलाफ भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 304-ए के बजाय धारा 304 के तहत आरोप तय किए गए।

एडिशनल सेशन जज द्वारा आरोपी की कथित तेज और लापरवाही से गाड़ी चलाने से दो व्यक्तियों की मौत के लिए आरोप तय किए गए।

जस्टिस प्रणय वर्मा की एकल-न्यायाधीश पीठ ने कहा कि याचिकाकर्ता/अभियुक्त पर सिर्फ इसलिए कोई पूर्वाग्रह नहीं डाला जाएगा, क्योंकि उसके खिलाफ आईपीसी की धारा 304 भाग II के तहत शुरू में आरोप तय किया गया। हाईकोर्ट के अनुसार, भले ही ट्रायल कोर्ट बाद में आरोप को आईपीसी की धारा 304 ए में बदलने का फैसला करता है, याचिकाकर्ता/अभियुक्त पर प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ेगा।

हाईकोर्ट ने कहा,

“…. यदि मुकदमे के दौरान, यह निष्कर्ष निकलता है कि प्रस्तुत साक्ष्य याचिकाकर्ता के खिलाफ लगाए गए आरोपों की तुलना में कम अपराध का मामला बनता है तो इसके पहले पेश किए गए सबूतों के आधार पर याचिकाकर्ता को कम अपराध के लिए दोषी ठहराने का विकल्प हमेशा खुला रहेगा। ...यदि आईपीसी की धारा 304-ए के तहत उनके खिलाफ आरोप तय किया गया तो आरोप की सुनवाई करने वाला मंच अलग हो सकता है, जिससे हालांकि उनके लिए कोई पूर्वाग्रह नहीं होगा।”

जस्टिस प्रणय वर्मा ने यह कहते हुए कहा कि प्रस्तुत सामग्री ट्रायल स्टेज में साक्ष्य का तरीका ऐसे किसी भी परिदृश्य में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा।

6th एडिशनल सेशन जज, इंदौर के समक्ष एसटी क्रमांक 65/2022 की कार्यवाही के तहत आरोपी द्वारा आपराधिक पुनर्विचार याचिका दायर की गई। उन पर मप्र उत्पाद शुल्क अधिनियम, 1915 की धारा 34(2) और भारतीय दंड संहिता की धारा 304, 308 के दायरे में आने वाले अपराध करने का आरोप है। आरोपी ने कथित तौर पर रिहायशी इलाके में तेजी और लापरवाही से मोटर वाहन चलाया, जिससे दो व्यक्तियों की मौत हो गई। अभियोजन पक्ष के अनुसार, कथित तौर पर वाहन का चालक आरोपी तुरंत घटनास्थल से भाग गया।

याचिकाकर्ता के वकील ने तर्क दिया कि भले ही मामले के अभियोजन पक्ष के एडिशन को सच मान लिया जाए, फिर भी याचिकाकर्ता/अभियुक्त के पास 'किसी भी तरह की शारीरिक क्षति पहुंचाने का इरादा या ज्ञान' का अभाव है, क्योंकि दुर्घटना अचानक हुई थी। आईपीसी की धारा 304 भाग II और धारा 308 के तहत लगाए गए आरोप प्रभावी नहीं होंगे, क्योंकि उन धाराओं में शामिल अपराधों के आवश्यक तत्व इस मामले में नहीं बनाए गए हैं; याचिकाकर्ता के वकील ने तर्क दिया कि आरोप अधिक से अधिक धारा 304-ए के तहत तय किया जाना चाहिए।

महाराष्ट्र राज्य बनाम सलमान सलीम खान और अन्य (2004) 1 एससीसी 525 पर भरोसा करते हुए एकल-न्यायाधीश पीठ ने कहा कि अपराध की सुनवाई करने वाली अदालत यह निर्धारित करने के लिए उपयुक्त मंच है कि पहले से तय किए गए आरोपों को बदला जाना चाहिए या नहीं। सलमान सलीम खान मामले में सुप्रीम कोर्ट ने यह भी पुष्टि की कि जहां तक कार्यवाही का संबंध है, आईपीसी की धारा 304-ए या धारा 304 भाग II के तहत आरोप तय करने से पार्टियों पर कोई पूर्वाग्रह नहीं पड़ता है। पक्षकारों के लिए एकमात्र निहितार्थ यह होगा कि आरोप की सुनवाई करने वाला मंच अलग हो सकता है, जो अपने आप में कोई पूर्वाग्रह पैदा नहीं करेगा।

हाईकोर्ट ने सेशन जज द्वारा आरोप तय करने का आदेश रद्द करने से इनकार कर दिया।

हाईकोर्ट ने निष्कर्ष निकाला:

“…ट्रायल कोर्ट सुप्रीम कोर्ट द्वारा पूर्वोक्त रूप से निर्धारित कानून के अनुसार मुकदमे को आगे बढ़ाएगा। हालांकि यह स्पष्ट किया गया कि इस न्यायालय ने रिकॉर्ड पर उपलब्ध सामग्री की स्वीकार्यता या अन्यथा के बारे में कोई टिप्पणी नहीं की है और न ही मामले की सुनवाई योग्यता पर कोई राय व्यक्त की। यहां दी गई टिप्पणियां पूरी तरह से इस याचिका के निपटान के उद्देश्य से हैं।

केस टाइटल: राजेंद्र पुत्र श्री सीताराम कुशवाह बनाम मध्य प्रदेश राज्य

केस नंबर: क्रिमिनल रिवीजन नंबर 2461/2023

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