इस्तेमाल न हो सकी कोर्ट फीस कोर्ट आदेश के बिना रिफंड की जाएगी : दिल्ली हाईकोर्ट

Update: 2020-12-16 12:00 GMT

दिल्ली हाईकोर्ट ने व्यवस्था दी है कि यदि कोर्ट फीस का इस्तेमाल नहीं किया गया है तो सरकार उसे वापस करने के लिए बाध्य है और इसके लिए कोर्ट आदेश की प्रति जमा कराने पर जोर नहीं दिया जाना चाहिए।

कोर्ट का मानना है कि कोर्ट फीस के भुगतान के लिए स्टांप स्वीकृत माध्यम है और यह प्रक्रिया तभी पूरी होती है जब दस्तावेज फाइल हो जाते हैं। महज स्टांप खरीद लेने से यह निष्कर्ष नहीं निकाला जा सकता कि भुगतान प्रक्रिया पूरी हो गई।

कोर्ट ने यह भी व्यवस्था दी कि फीस रिफंड के लिए कोर्ट आदेश को जमा करने की पूर्व शर्त खत्म की जानी चाहिए तथा कोर्ट फीस का इस्तेमाल नहीं होने की बात से संतुष्ट होकर उसके रिफंड की प्रक्रिया शुरू कर देनी चाहिए।

याचिकाकर्ता ने एक रिट याचिका दायर करके सात लाख 45 हजार रुपये रिफंड करने की मांग की थी। उसकी दलील थी कि वह रिफंड का हकदार है, क्योंकि मुकदमा दायर नहीं किया गया और ऐसी स्थिति में कोर्ट फीस का इस्तेमाल नहीं हुआ। याचिकाकर्ता ने 31 अक्टूबर 2017 को स्टॉक होल्डिंग कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड (एसएचसीआईएल) से कोर्ट फीस चुकायी थी। हालांकि, जब मुकदमा दायर नहीं हुआ, तो 22 फरवरी 2018 को रोहिणी सब-डिविजनल मजिस्ट्रेट के समक्ष रिफंड के लिए अर्जी दी गयी थी। कोर्ट ने 27 अगस्त 2019 को आदेश जारी करके याचिकाकर्ता को फीस रिफंड के लिए कोर्ट आदेश की प्रति जमा कराने को कहा था। उसके बाद रिफंड वापस लेने के दिशानिर्देश जारी करने की मांग को लेकर याचिका दायर की गयी थी।

न्यायमूर्ति नवीन चावला की बेंच ने धारा 30 की व्याख्या पर भरोसा जताया जिसमें कहा गया है कि स्टांप की आवश्यकता वाले किसी भी दस्तावेज को अदालत या कार्यालय की किसी भी कार्यवाही में तब तक दायर या उस पर कार्रवाई नहीं करनी चाहिए जब तक कि इसे रद्द नहीं किया जाता है।

एकल बेंच ने व्यवस्था दी कि,

"उपरोक्त प्रावधान में यह स्पष्ट रूप से इंगित किया गया है कि दस्तावेज फाइल करने के वक्त कोर्ट फीस के भुगतान का माध्यम स्टाम्प ही है। इस तरह की फीस का भुगतान दस्तावेज फाइल करने के लिए किया जाता है, न कि केवल खरीद हेतु।"

ऐसा करते हुए न्यायमूर्ति चावला ने 'सचिव, मद्रास गवर्नमेंट एवं अन्य बनाम जेनिथ लैम्प एवं अन्य (1973)' मामले में सुप्रीम कोर्ट द्ववारा तथा 'आया सिंह त्रिलोक सिंह बनाम मुंशी राम आत्मा राम, (1968)' एवं 'डॉ. पूर्णिमा आडवाणी एवं अन्य बनाम दिल्ली सरकार एवं अन्य (2018)' के मामले में दिल्ली हाईकोर्ट द्वारा दिये गये फैसलों पर भरोसा जताया, जिनमें इन अदालतों ने व्यवस्था दी थी कि सरकार कानूनी प्राधिकार के बगैर पैसा नहीं रोक सकती। प्रभार शुल्क का इस्तेमाल नहीं होने की स्थिति में इसे नहीं रोका जा सकता।

कोर्ट ने मुकदमा न दायर होने की स्थिति में इस्तेमाल न हो सकी कोर्ट फीस रिफंड करने का सरकार को निर्देश दिया।

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