POCSO अधिनियम के तहत दोषी के पैरोल मांगने पर रोक नहीं, 'विशेष परिस्थितियों' के तहत सक्षम प्राधिकारी के पास इसे देने का 'विवेक': दिल्ली हाईकोर्ट

Update: 2022-05-07 10:10 GMT

दिल्ली हाईकोर्ट

दिल्ली हाईकोर्ट ने दोहराया है कि यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण अधिनियम, 2012 के तहत एक दोषी को पैरोल मांगने से रोक नहीं है। सक्षम प्राधिकारी के पास ऐसे दोषी को "विशेष परिस्थितियों" में पैरोल देने का विवेक मौजूद है।

जस्टिस आशा मेनन ने कहा कि इसमें कोई संदेह नहीं है कि कानूनी सेवा प्राधिकरण जेल में बंद लोगों को सभी स्तरों पर उत्कृष्ट कानूनी सहायता प्रदान करने का प्रयास करते हैं, हालांकि अपराधी को अन्य वकील के साथ जुड़ने, ताकि वह स्वतंत्र रूप से तय कर सके कि वह किसके साथ जुड़ना चाहता है, का अवसर देने से इनकार करना, उसके कानूनी प्रतिनिधित्व के संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन करेगा।

अदालत विशेष अनुमति याचिका दायर करने के आधार पर याचिकाकर्ता को आठ सप्ताह की अवधि के लिए पैरोल पर रिहा करने की मांग वाली याचिका पर विचार कर रही थी।

याचिकाकर्ता की ओर से यह प्रस्तुत किया गया था कि उसे यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण अधिनियम, 2012 की धारा 6 के तहत 19 दिसंबर, 2019 को दिए गए फैसले के तहत दोषी ठहराया गया था। 18 जनवरी, 2020 को दिए गए सजा के आदेश के तहत उसे 14 साल की अवधि के कठोर कारावास की सजा सुनाई गई थी।

दोषसिद्धि को हाईकोर्ट के समक्ष चुनौती दी गई थी। हालांकि, इसे 10 अगस्त, 2021 के फैसले के तहत खारिज कर दिया गया था।

यह तर्क दिया गया कि याचिकाकर्ता केंद्रीय जेल संख्या 5, तिहाड़ में बंद था और पहले ही 14 साल के कठोर कारावास और जुर्माने में से लगभग 8 साल की कैद की सजा काट चुका था। यह प्रस्तुत किया गया कि वह एक एसएलपी दायर करना चाहता था, जिसके लिए उसने पैरोल मांगी और परिवार के साथ सामाजिक संबंध बनाए रखने के आधार पर भी पैरोल मांगी।

हालांकि, 19 अगस्त, 2021 को गृह विभाग, दिल्ली सरकार के समक्ष दायर पैरोल के लिए उक्त आवेदन को 18 जनवरी, 2022 को यह देखते हुए खारिज कर दिया गया था कि पैरोल देने के लिए कोई विशेष परिस्थितियां मौजूद नहीं थीं क्योंकि दोषी जेल से ही एसएलपी दायर कर सकता था, जहां सभी कैदियों को मुफ्त कानूनी सहायता उपलब्ध थी।

दूसरी ओर, राज्य की ओर से यह तर्क दिया गया कि रद्द करने का कारण बहुत स्पष्ट था और पैरोल नियमों का पालन किया गया है। यह प्रस्तुत किया गया कि पैरोल से इनकार करना मनमाना नहीं था और इसे दोष नहीं दिया जा सकता था।

न्यायालय का विचार था कि जबकि आक्षेपित आदेश कमजोर था, अधिक गंभीर आपत्ति को आधार (1) में शामिल किया गया था, यनि नियम स्वयं POCSO अधिनियम के तहत दोषी कैदी को पैरोल की अनुमति नहीं देते हैं।

कोर्ट ने कहा,

" लेकिन यह प्रतिबंध पूर्ण नहीं है, क्योंकि सक्षम प्राधिकारी को ऐसे मामलों में भी पैरोल देने के लिए "विवेक" का इस्तेमाल करने का अधिकार दिया गया है, बशर्ते कि विशेष परिस्थितियां हों। यह स्पष्ट है कि आक्षेपित आदेश "विशेष परिस्थितियों" का उल्लेख नहीं करता है, जिन पर विचार करने की आवश्यकता थी और पैरोल देने के लिए अपर्याप्त पाए गए थे। बल्कि, यह स्पष्ट है कि "विशेष परिस्थितियों" या उनकी अनुपस्थिति को केवल एक एसएलपी दाखिल करने के संबंध में संदर्भित किया गया है, बल्‍कि राज्य कारागार नियमों के नियम 1211 (VII) के तहत पैरोल के लिए आवेदक की पात्रता के लिए नहीं....।"

कोर्ट ने कहा कि प्रत्येक मामले के तथ्य पैरोल के लिए "विशेष परिस्थितियों" को प्रकट करेंगे और सक्षम प्राधिकारी को जेल नियमों के नियम 1200 में सूचीबद्ध पैरोल के उद्देश्य को ध्यान में रखना चाहिए।

यह कहा गया कि पैरोल की सिफारिश या आवेदन को खारिज करते समय दोनों को संतुलित करना प्रतिवादी विभाग की अपेक्षित कवायद होगी। यह देखते हुए कि नियम 1200 में सूचीबद्ध सभी उद्देश्य याचिकाकर्ता पर लागू होते हैं, कोर्ट ने यह भी कहा कि जेल में उसने हर समय अच्छा आचरण और अनुशासन बनाए रखा था।

तद्नुसार, याचिका को अनुमति देते हुए संबंधित जेल अधीक्षक को निर्देश दिया गया कि वह याचिकाकर्ता को 10,000 रुपये के निजी मुचलके और जमानत पर आठ सप्ताह की अवधि के लिए पैरोल पर रिहा करे।

केस शीर्षक: राकेश @दीवान बनाम एनसीटी ऑफ दिल्ली

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