"अनुच्छेद 16 (2) के जनादेश के विपरीत": उत्तराखंड हाईकोर्ट ने राज्य सिविल सेवाओं में अधिवास वाली महिलाओं के लिए 30% आरक्षण प्रदान करने के आदेश पर रोक लगाई

Update: 2022-08-26 14:03 GMT

उत्तराखंड हाईकोर्ट ने 2006 के एक सरकारी आदेश पर रोक लगा दी है, जिसमें सार्वजनिक रोजगार के मामले में केवल उत्तराखंड में अधिवासी महिला उम्मीदवारों को 30 प्रतिशत क्षैतिज आरक्षण प्रदान करने की मांग की गई थी।

केवल राज्य की महिला उम्मीदवारों को आरक्षण प्रदान करने वाले सरकारी आदेश के संचालन पर रोक लगाते हुए, न्यायालय ने स्पष्ट किया कि आरक्षण महिला उम्मीदवारों के लिए उनके 'अधिवास' या 'निवास स्थान' की परवाह किए बिना एक क्षैतिज आरक्षण रहेगा।

न्यायालय का आदेश उसके प्रथम दृष्टया विचार पर आधारित था कि सरकारी आदेश भारत के संविधान के अनुच्छेद 16(2) के जनादेश के विपरीत है।

यहां यह ध्यान दिया जा सकता है कि अनुच्छेद 16 (2) अनिवार्य रूप से यह प्रावधान करता है कि किसी भी नागरिक राज्य के तहत किसी भी रोजगार या ऑफिस के ल‌िए धर्म, मूलवंश, जाति, लिंग, वंश, जन्म स्थान, निवास या इनमें से किसी के आधार पर अपात्र नहीं होगा या उसके साथ भेदभाव नहीं होगा।

न्यायालय ने स्पष्ट रूप से कहा कि राज्य सरकार, केवल एक सरकारी आदेश जारी करके, राज्य में सार्वजनिक रोजगार के मामले में महिला उम्मीदवारों को उनके अधिवास के आधार पर आरक्षण प्रदान नहीं कर सकती है।

मामला

दरअसल चीफ जस्टिस विपिन सांघी और जस्टिस आरएस खुल्बे की पीठ पवित्रा चौहान, अनन्या अत्री और राज्य के बाहर से अनारक्षित श्रेणी से संबंधित अन्य लोगों द्वारा दायर एक रिट याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जो राज्य सिविल परीक्षा के लिए उपस्थित हुए थे।

उनका मामला था कि राज्य की सिविल परीक्षा की प्रारंभिक परीक्षा में राज्य अधिवास वाली महिला उम्मीदवारों के लिए कट-ऑफ अंक (79) से अधिक अंक हासिल करने के बावजूद, उन्हें मुख्य परीक्षा में बैठने के अधिकार से वंचित कर दिया गया था।

इस प्रकार, उन्होंने दो शासनादेशों को इस आधार पर चुनौती दी कि वे उत्तराखंड राज्य में महिला उम्मीदवारों के 'अधिवास' के आधार पर [उत्तराखंड संयुक्त सेवा, राज्य लोक सेवा आयोग की वरिष्ठ सेवा के पदों के लिए आयोजित परीक्षा में] क्षैतिज आरक्षण प्रदान करते हैं।

उनकी दलील थी कि संविधान के अनुच्छेद 16(1) के अनुसार, राज्य के तहत किसी भी कार्यालय में रोजगार या नियुक्ति से संबंधित मामलों में सभी नागरिकों के लिए अवसर की समानता होनी चाहिए और राज्य केवल अधिवास के आधार पर ऐसा नहीं कर सकता है कि नागरिकों के एक वर्ग को अधिमान्य उपचार प्रदान करें, जैसा कि राज्य सरकार द्वारा करने की मांग की गई थी।

आदेश

सरकारी आदेश के संचालन पर रोक लगाते हुए, जहां तक ​​यह केवल उत्तराखंड की महिला उम्मीदवारों के संबंध में सार्वजनिक रोजगार के मामले में 30 प्रतिशत क्षैतिज आरक्षण प्रदान करने का प्रयास करता है, न्यायालय ने आयोग को निर्देश दिया कि वह याचिकाकर्ताओं को मुख्य परीक्षा में अनंतिम रूप से उपस्थित होने की अनुमति दे।

कोर्ट ने राज्य सरकार के साथ-साथ यूकेपीएससी को भी नोटिस जारी किया और मामले को अंतिम निपटान के लिए 11 अक्टूबर, 2022 को सूचीबद्ध किया जाए।

केस टाइटल- अनन्या अत्री और अन्य बनाम उत्तराखंड राज्य और अन्य और जुड़े हुए मामले


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