बिना स्थापित अपराध के आरोपियों के खिलाफ कार्यवाही जारी रखना कानून की प्रक्रिया का दुरुपयोग: झारखंड हाईकोर्ट
झारखंड हाईकोर्ट ने हाल के फैसले में फैसला सुनाया कि यदि आपराधिकता स्थापित नहीं हुई तो आपराधिक कार्यवाही जारी रखने की अनुमति देना कानून की प्रक्रिया का दुरुपयोग है।
जस्टिस संजय कुमार द्विवेदी ने कहा,
“संपत्ति के सह-हिस्सेदार में से एक द्वारा दायर दो विभाजन मुकदमों की लंबितता को देखते हुए, जिसमें याचिकाकर्ता और शिकायतकर्ता भी उन विभाजन मुकदमों में पक्षकार हैं, ऐसा प्रतीत होता है कि नागरिक गलती के लिए याचिकाकर्ताओं के खिलाफ आपराधिक कार्यवाही शुरू कर दी गई है।”
जस्टिस द्विवेदी ने कहा,
“इसमें कोई संदेह नहीं है कि यदि आपराधिक मामला बनता है तो आपराधिक और नागरिक दोनों मामले एक साथ चल सकते हैं। हालांकि, अगर आपराधिक मामला नहीं बनता है तो कार्यवाही जारी रखने की अनुमति देना, कानून की प्रक्रिया का दुरुपयोग होगा। इस न्यायालय ने पाया कि नागरिक गलती के लिए याचिकाकर्ताओं के खिलाफ आपराधिक मामला शुरू किया गया।”
यह फैसला आपराधिक कार्यवाही रद्द करने और गिरिडीह के न्यायिक मजिस्ट्रेट, प्रथम श्रेणी की अदालत में लंबित शिकायत मामले में संज्ञान लेने की मांग वाली याचिका के जवाब में आया।
शिकायतकर्ता दिवंगत जगत नारायण प्रसाद की बेटियों में से एक ने शुरू में एफआईआर दर्ज की, जिसके बाद पुलिस जांच हुई और निष्कर्ष निकला कि मामला नागरिक प्रकृति का है। हालांकि, शिकायतकर्ता ने विरोध शिकायत मामले को आगे बढ़ाया, जिसमें उसके भाइयों द्वारा विरासत में मिली संपत्तियों के फर्जी बंटवारे और बिक्री का आरोप लगाया गया। पुलिस ने पहले मामले को नागरिक विवाद के रूप में वर्गीकृत करते हुए फाइनल रिपोर्ट प्रस्तुत की।
याचिकाकर्ताओं के वकील ने तर्क दिया कि 25.12.2004 के पार्टिशन डीड में याचिकाकर्ताओं के पिता के नहीं, बल्कि दादा के कानूनी उत्तराधिकारियों के बीच पार्टिशन का संकेत दिया गया। याचिकाकर्ताओं और शिकायतकर्ता को पक्षकार के रूप में शामिल करने वाले दो लंबित विभाजन मुकदमों पर जोर देते हुए वकील ने तर्क दिया कि कार्यवाही जारी रखने की अनुमति देना कानूनी प्रक्रिया का दुरुपयोग होगा।
शिकायतकर्ता का प्रतिनिधित्व कर रहे सुधीर सहाय ने तर्क दिया कि विवादित भूमि की बिक्री से आपराधिकता स्थापित हो गई। उन्होंने कहा कि यदि आपराधिकता स्थापित हो जाती है तो नागरिक और आपराधिक मामले एक साथ चल सकते हैं।
राज्य के वकील प्रभु दयाल अग्रवाल ने अदालत को सूचित किया कि पुलिस ने फाइनल रिपोर्ट प्रस्तुत की थी। इसके बावजूद, अदालत ने विरोध याचिका के आधार पर याचिकाकर्ताओं के खिलाफ संज्ञान लिया।
अदालत ने शिकायत मामले की सामग्री पर विचार करने और उसी संपत्ति से जुड़े चल रहे विभाजन के मुकदमों पर ध्यान देने के बाद पाया कि पुलिस ने मामले को दीवानी के रूप में वर्गीकृत किया। इसके बावजूद कोर्ट ने विरोध याचिका पर याचिकाकर्ताओं के खिलाफ संज्ञान लिया।
इन तथ्यों के आलोक में झारखंड हाईकोर्ट ने याचिका स्वीकार करते हुए न्यायिक दंडाधिकारी की अदालत में लंबित शिकायत मामले में संज्ञान लेने के आदेश सहित संपूर्ण आपराधिक कार्यवाही रद्द कर दिया।
याचिकाकर्ताओं के लिए वकील: हिमांशु कुमार मेहता, मंजुश्री पात्रा और श्रेष्ठा मेहता और राज्य के लिए वकील: प्रभु दयाल अग्रवाल, एस.पी.पी. और ओपी नंबर 2 के लिए वकील: सुधीर सहाय।
केस नंबर: सी.आर.एम.पी. 2014 का नंबर 2939
केस टाइटल: नवीन कुमार सिन्हा एवं अन्य बनाम झारखंड राज्य एवं अन्य
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