हिंदू दत्तक और भरण-पोषण अधिनियम, 1956, के तहत गोद लेने की प्रक्रिया में तलाक के बिना पति से अलग रही पत्नी की सहमति आवश्यकः इलाहाबाद उच्च न्यायालय
इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने बुधवार को कहा कि एक व्यक्ति, जो अपनी पत्नी से तलाक के बिना अलग रह रहा है, को हिंदू दत्तक और भरण-पोषण अधिनियम, 1956 के तहत एक बच्चे को गोद लेने के लिए, अलग रह रही पत्नी की सहमति की आवश्यकता होती है।
जस्टिस जेजे मुनीर की खंडपीठ ने कहा, "पति से अलग रहने वाली एक पत्नी, तब भी एक पत्नी होती है, जब तक कि दोनों पक्षों के बीच वैवाहिक बंधन में तलाक के आदेश या विवाह को शून्य घोषित किए जाने से से समाप्त नहीं हो जाता है।"
पृष्ठभूमि
न्यायालय भानु प्रताप सिंह की रिट याचिका पर सुनवाई कर रहा था, जो उत्तर प्रदेश रिक्रूटमेंट ऑफ डिपेडेंट्स ऑफ गवर्नमेंट सर्वेंट्स डाइंग-इन-हार्नेस रूल्स, 1974 के तहत अपने दिवंगत चाचा राजेंद्र सिंह के स्थान पर नियुक्ति की मांग कर रहे थे।
याचिकाकर्ता ने प्रस्तुत किया कि संतान न होने के कारण, मृतक ने 2001 में उन्हे हिंदू संस्कारों के अनुसार गोद लिया था। हालांकि, गोद लेने का का दस्तावेज बहुत बाद में, दिसंबर 2009 में निष्पादित किया गया।
आदेश में दर्ज तथ्यों के अनुसार, राजेंद्र सिंह ने दत्तक दस्तावेज में की खुद को एक अविवाहित व्यक्ति के रूप में दर्ज किया था। ऐसा इसलिए किया गया था कि उनकी पत्नी श्रीमती फूलमती उनसे अलग रहती थीं।
इस प्रकार, न्यायालय के विचार के लिए सवाल उठा कि क्या हिंदू दत्तक और भरण-पोषण अधिनियम, 1956 की धारा 7 में आया वाक्य "यदि उसकी पत्नी जीवित है" के तहत पति से अलग रहने रही पत्नी, जिनका तलाक नहीं हुआ है, को भी शामिल किया जाता है?
अधिनियम की धारा 7 में यह प्रावधान है कि किसी भी पुरुष हिंदू (वयस्क और मानसिक रूप से स्वस्थ) को बेटा या बेटी गोद लेने का अधिकार है, बशर्ते, अगर उसके पत्नी जीवित है, तो वह उसकी सहमति के बिना गोद नहीं लेगा, जब तक कि पत्नी पूरी तरह से और अंततः दुनिया का त्याग नहीं कर देती है या हिंदू नहीं रह गई है या सक्षम न्यायालय मानसिक रूप से अस्वस्थ दिमाग होने की घोषणा की गई है।
यह ध्यान दिया जा सकता है कि वन विभाग ने याचिकाकर्ता के दावे का खंडन करते हुए कहा था कि गोद लेने की प्रक्रिया हिंदू दत्तक और भरण-पोषण अधिनियम, 1956 के अनुसार नहीं की गई है और इसलिए, मान्य नहीं है। इसलिए, मौजूदा कार्यवाही शुरू की गई।
जांच - परिणाम
सिंगल बेंच ने इस आधार पर याचिका खारिज कर दी कि गोद लेने की प्रक्रिया कानूनी तरीके से नहीं की गई है क्योंकि हिंदू दत्तक और भरण-पोषण अधिनियम, 1956 की धारा 7 का अनुपालन नहीं किया गया है।
न्यायालय ने पाया कि 1956 अधिनियम में स्पष्ट प्रावधान हैं, जिसके अनुसार एक हिंदू पुरुष को बच्चे को गोद लेने के लिए अपनी पत्नी की सहमति की आवश्यकता होती है, सिवाय उन परिस्थितियों के जिसमें पत्नी की मृत्यु हो गई है, वह हिंदू नहीं रह गई है या सक्षम न्यायालय द्वारा मानसिक रूप से अस्वस्थ घोषित की गई हो।
इस मामले में, न्यायालय ने कहा, इसमें कोई संदेह नहीं है कि श्रीमती फूलमती स्वर्गीय राजेंद्र सिंह की जीवनपर्यंत पत्नी रहीं। दोनों में कभी भी तलाक नहीं हुआ था, चाहे अलग ही क्यों न रहते रहे हों।
कोर्ट ने कहा, "कानून के अनुसार, पति और पत्नी वैवाहिक संबंधों में विच्छेद के बिना, जो तलाक के आदेश, पत्नी की मृत्यु या विवाह की समाप्ति से हो सकता है, यदि अलग-अलग रह रहे हों... तो गोद लेने के लिए पत्नी की सहमति की आवश्यकता है।"
याचिकाकर्ता ने दावा किया कि उसे उसके चाचा ने चाची से अलग रहते हुए उसे गोद लिया था। हालांकि, कोर्ट ने जोर दिया कि याचिकाकर्ता के गोद लेने के दौरान, उसके चाचा और चाची ने विवाहित थे।
कोर्ट ने कहा, "कानूनी प्रावधान एक हिंदू पुरुष के लिए अनिवार्य बनाता है कि वह गोद लेने के लिए पत्नी की सहमति प्राप्त करे, जब तक कि पूरी तरह से और दुनिया को त्याग न चुकी हो, या हिंदू नहीं रह गई हो, या सक्षम न्यायालय द्वारा मानसिक रूप से अस्वस्थ घोषित नहीं कर दी गई हो। चौथे अपवाद, यानी अलग रह रही पत्नी को छोड़कर, इन तीन अपवादों में कुछ में कुछ भी ऐसा नहीं है, जो अदालत को कानून में पढ़ने के लिए प्रेरित कर सकता है।"
केस टाइटिल: भानु प्रताप सिंह बनाम उत्तर प्रदेश और अन्य।
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