माता-पिता के प्रतिस्पर्धी अधिकार बच्चे के हित के अधीन : दिल्ली हाईकोर्ट ने कथित पिता को बच्चे से रोजाना मिलने के आदेश पर रोक लगाई
दिल्ली हाईकोर्ट ने हाल ही में एक फैमिली कोर्ट के उस आदेश पर रोक लगा दी, जिसमें ढाई साल के बच्चे के कथित पिता को रोजाना मुलाकात का अधिकार दिया गया था।
जस्टिस यशवंत वर्मा ने कहा,
"पारित आदेश के तहत अंततः ढाई साल के प्रतिवादी को नाबालिग बच्चे को रोजाना 2 घंटे के लिए घर से बाहर ले जाना पड़ेगा। प्रधान न्यायाधीश स्पष्ट रूप से इससे पड़ने वाले हानिकारक प्रभाव पर विचार करने में विफल रहे हैं।"
बेंच ने कहा,
"यह स्पष्ट है कि अदालत माता-पिता के प्रतिस्पर्धी अधिकारों पर विचार करने और मूल्यांकन करने के लिए गलत रास्ते पर आगे बढ़ी और/या मुलाकात के अधिकार दिए गए। प्रतिस्पर्धी माता-पिता द्वारा उठाए गए उपरोक्त दावों को अनिवार्य रूप से बच्चे के हित के अधीन होने के रूप में पहचाना जाना चाहिए, जिसे हमेशा और लगातार सर्वोपरि माना गया है।"
कोर्ट ने यह टिप्पणियां फैमिली कोर्ट के आदेश के खिलाफ बच्चे की मां द्वारा दायर किए गए एक सिविल मिसलेनियस मेन में की, जिसमें प्रतिवादी-पिता को प्रतिदिन शाम 6 बजे और रात 8 बजे के दौरान बच्चे को मां की देखभाल से बाहर ले जाने की अनुमति दी गई थी। फैमिली कोर्ट ने इस बात का संज्ञान लिया था कि याचिकाकर्ता और प्रतिवादी दोनों एक ही इमारत में रह रहे थे।
हालांकि याचिकाकर्ता-मां ने इस तथ्य से इनकार करते हुए हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया और दलील दी कि प्रतिवादी कई महीनों से वहां नहीं रह रहा है और आक्षेपित आदेश के बल पर 2 साल के बच्चे को अलग-अलग अंजानी और अज्ञात जगहों पर ले जा रहा है, जो नाबालिग बच्चे के लिए हानिकारक साबित हो रहा है।
उन्होंने आगे कहा कि हिंदू अप्राप्तवयता और संरक्षकता अधिनियम, 1956 के तहत एक कथित पिता जैविक पिता के समान नहीं है और मां और बच्चे की दिनचर्या को इस तरह के सख्त, कठिन और अनुचित शासन के अधीन नहीं किया जा सकता है।
फैमिली कोर्ट के समक्ष याचिकाकर्ता ने तर्क दिया था कि चूंकि प्रतिवादी-पिता ने शादी से इनकार कर दिया है, इसलिए बच्चा नाजायज है और हिंदू अप्राप्तवयता और संरक्षकता अधिनियम, 1956 की धारा 6 के अनुसार वह बच्चे की कस्टडी का हकदार नहीं है और इसलिए, प्रतिवादी को मुलाकात का अधिकार भी नहीं दिया जा सकता है।
दूसरी ओर प्रतिवादी ने बच्चे के जन्म को स्वीकार किया, हालांकि उसने कहा कि उसके और याचिकाकर्ता के बीच कोई वैध विवाह नहीं हुआ था। इस प्रकार, उसने बच्चे के पितृत्व से इनकार नहीं किया था और आवेदन में स्वीकार किया था कि बच्चा उसी का है।
यह कहते हुए कि मामले पर विचार करने की आवश्यकता है हाईकोर्ट ने मामले को 7 जनवरी, 2022 को सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किया है। कोर्ट ने कहा कि सुनवाई की अगली तारीख तक 28 अक्टूबर, 2021 के आदेश पर रोक रहेगी।
याचिकाकर्ता का प्रतिनिधित्व वरिष्ठ अधिवक्ता गीता लूथरा ने किया, जिन्हें अधिवक्ता शिवानी लूथरा लोहिया, नितिन सलूजा, अस्मिता नरूला, अनुभव सिंह और प्रियंका प्रशांत ने सहयोग दिया। प्रतिवादी का प्रतिनिधित्व वरिष्ठ अधिवक्ता संदीप सेठी ने अधिवक्ता सौरव उपाध्याय, गार्गी तुली, अनुज धीर और हार्दिक के साथ किया।
केस शीर्षक: किनरी धीर बनाम वीर सिंह
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