COVID19 पीड़ितों को मुआवजाः आपदा प्रबंधन अधिनियम के तहत योजना बनाने का निर्देश देने की मांग, इलाहाबाद हाईकोर्ट में याचिका

Update: 2021-05-11 09:30 GMT

कोरोना महामारी में जान गंवाने वाले पीड़ितों के परिजनों को मुआवजा दिए जाने की मांग करते हुए इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ खंडपीठ के समक्ष एक जनहित याचिका दायर की गई है। याचिका में मांग की गई है कि आपदा प्रबंधन अधिनियम, 2005 के तहत इस योजना के कार्यान्वयन के लिए केंद्र और राज्य सरकार को दिशा-निर्देश दिए जाएं।

याचिका में राज्य राहत कोष से अस्पताल में भर्ती होने के दौरान इलाज में आए खर्च को भी वापिस दिलाए जाने की मांग की गई है।

खुद को सामाजिक कार्यकर्ता बताने वाले एक डॉ संदीप पांडे ने अधिवक्ता रजत राजन सिंह के माध्यम से यह याचिका दायर की है। उन्होंने ध्यान दिलाया है कि आपदा प्रबंधन अधिनियम की धारा 12 के तहत आपदा से प्रभावित व्यक्ति को मुआवजा राशि का भुगतान करना अनिवार्य है।

याचिका में कहा गया है कि,

''कोरोना महामारी की दूसरी लहर में स्वास्थ्य देखभाल प्रणाली पूरी तरह से विफल हो रही है ... लोग मर रहे हैं क्योंकि उनको वह चिकित्सा देखभाल प्राप्त नहीं हो रही है जो इस देश के नागरिक के रूप में उनको मिलनी चाहिए और इसके लिए सरकार पूरी तरह उत्तरदायी है। इसलिए क्षतिपूर्ति के उपाय के तौर पर और पीड़ितों के परिवारों को कुछ राहत देने के लिए राज्य सरकार को ऐसी योजना तैयार करनी चाहिए जिसके तहत कोरोना महामारी में जान गंवाने वाले व्यक्तियों के परिजनों को मुआवजे के तौर कुछ राशि का भुगतान किया जा सके।''

याचिकाकर्ता ने यह भी बताया है कि मार्च 2020 में कोरोना महामारी को एक आपदा के रूप में घोषित करने के एक साल बाद भी, वायरस के प्रसार को रोकने के लिए प्रभावी कदमों को शामिल करने के लिए राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन की न तो समीक्षा की गई और न ही इसमें संशोधन किया गया।

यह भी आरोप लगाया गया कि जहां तक महामारी का संबंध है तो वर्तमान राष्ट्रीय नीति एक अपूर्ण ढांचा है।

याचिका में कहा गया है कि,''राज्य आपदा प्रबंधन योजना की समीक्षा/अपडेशन न करना वर्तमान संकट का एक कारण है। वायरस के बारे में जानने के बावजूद, सरकार ने COVID19 के लिए समर्पित कोई बुनियादी ढांचा तैयार नहीं किया, ताकि अगर दूसरी लहर आए तो सरकार तैयार रहे और लोगों को कम से कम भर्ती होने के लिए अस्पतालों में बेड मिल सके।''

कहा गया कि सरकार की ऐसी कार्रवाई/निष्क्रियता, भारत के संविधान के आर्टिकल 21 के तहत मिले जीवन के अधिकार और स्वास्थ्य की गारंटी का पूर्ण उल्लंघन है।

नीलाबती बेहरा उर्फ ललिता बेहरा बनाम उड़ीसा राज्य, (1993) 2 एससी 746 के मामले दिए गए फैसले का हवाला भी दिया गया, जहां सुप्रीम कोर्ट ने माना था कि मानवाधिकारों और संविधान के तहत मिली मौलिक स्वतंत्रता, संरक्षण के उल्लंघन के मामले में मुआवजे के लिए सार्वजनिक कानून के तहत दावा करना, ऐसे अधिकारों को लागू करने और संरक्षण के लिए एक स्वीकृत उपाय है।

याचिकाकर्ता ने पैरेंट्स पैट्रिए के सिद्धांत का हवाला देते हुए कहा कि सरकार अपने नागरिकों के लिए एक अभिभावक की तरह काम करे और इसलिए नागरिकों के प्रत्यावर्तन, पुनर्वास और कल्याण के सभी उपाय सरकार द्वारा किए जाने चाहिए।

सोमवार को जस्टिस रितु राज अवस्थी और जस्टिस मनीष माथुर की एक डिवीजन बेंच ने इस मामले की सुनवाई की।

खंडपीठ ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट पहले ही COVID प्रबंधन से संबंधित एक स्वत संज्ञान मामले में केंद्र सरकार को पीड़ितों को मुआवजे आदि का भुगतान करने पर विचार करने का सुझाव दे चुकी है।

इसके अलावा, इलाहाबाद हाईकोर्ट की प्रधान पीठ भी एक जनहित याचिका पर विचार कर रही है,जिसमें कोरोना महामारी संबंधी समस्याओं को संबोधित किया गया है।

इसलिए खंडपीठ ने मामले को जुलाई तक के लिए स्थगित कर दिया। साथ ही यह भी कहा कि इस बीच, इस संबंध में कोई भी निर्णय सर्वोच्च न्यायालय या इलाहाबाद की इस अदालत द्वारा लिया जाता है, तो उसे रिकॉर्ड पर लाया जा सकता है।

केस का शीर्षकः डॉ संदीप पांडे बनाम भारत संघ व अन्य

ऑर्डर डाउनलोड करने के लिए यहां क्लिक करें



Tags:    

Similar News