'अनुच्छेद 300A का स्पष्ट उल्लंघन': इलाहाबाद हाईकोर्ट ने मुआवजे में विलंब के लिए एनएचएआई के खिलाफ जांच का निर्देश दिया

Update: 2023-03-09 09:44 GMT

Allahabad High Court

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने पिछले सप्ताह प्रमुख सचिव (राजस्व), उत्तर प्रदेश को भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण (एनएचएआई) के अधिकारियों के खिलाफ जांच करने का निर्देश दिया। उन अधिकारियों पर आरोप था कि उन्होंने हाईवे की परियोजना के लिए नौ गावों की भूमि अधिग्रहित करने के बावजूद मुआवजा देने में देरी की थी।

जस्टिस सुनीता अग्रवाल और जस्टिस मंजीव शुक्ला की पीठ ने यह आदेश दो ऐसे भूस्वामियों ‌की याचिका पर पारित किया, जिनकी जमीन 2016 में अधिग्रहित की गई थी, हालांकि हाईवे का निर्माण हो जाने के बाद भी उन्हें कोई मुआवजा नहीं दिया गया।

अपने आदेश में, न्यायालय ने स्पष्ट रूप से कहा, पीड़ित भू-स्वामियों को उनकी ज़मीन-जायदाद से बेदखल/वंचित कर दिया गया और चूंकि राष्ट्रीय राजमार्ग का निर्माण उन्हें मुआवजे दिए बिना पूरा किया गया, इसलिए यह स्पष्ट रूप से संविधान के अनुच्छेद 300-ए के तहत संवैधानिक आदेश का उल्लंघन है। उक्त टिप्पणी के साथ कोर्ट ने मामले की जांच कराने का आदेश दिया।

कोर्ट ने अपने आदेश में विशेष रूप से कहा कि उक्त जांच में, राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण के अधिकारियों, विशेष रूप से परियोजना निदेशक, परियोजना कार्यान्वयन इकाई, कानपुर, एनएचएआई के साथ-साथ जिला स्तर के अधिकारियों, विशेष रूप से सक्षम प्राधिकारी की संलिप्तता राष्ट्रीय राजमार्ग अधिनियम, 1956 के आलोक में जांच की जाए।

अदालत ने आगे कहा,

"जांच रिपोर्ट को सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय, भारत सरकार, नई दिल्ली के संबंधित मंत्री को भेजा जाए और दोषी अधिकारियों के खिलाफ नागरिक और आपराधिक दोनों पक्षों पर कार्रवाई शुरू की जाए।"

जांच रिपोर्ट और दोषी अधिकारियों के खिलाफ की गई कार्रवाई की अगली तारीख (3 अप्रैल) को अदालत के समक्ष प्रस्तुत करनी होगी।

कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि इस मामले में भूस्वामियों के लिए मुआवजे के निर्धारण में विलंब के कारण अवॉर्ड के तहत निर्धारित राशि पर ब्याज लगाने के कारण राज्य और केंद्र सरकार को यदि कोई वित्तीय हानि हो रही हो तो उसे दोषी अधिकारियों से वसूल किया जाएगा।

मामला

दरअसल, दो लेन की सड़क को चार लेन में चौड़ा करने के लिए वर्ष 2015-26 में भूमि के टुकड़ों का अधिग्रहण किया गया था।

2018 में आपत्तियां आमंत्रित करने के लिए एक नोटिस जारी किया गया। हालांकि याचिकाकर्ताओं (8 अन्य गांवों के लोगों के साथ) ने सक्षम प्राधिकारी से संपर्क किया, लेकिन अधिग्रहित भूमि पर निर्माण पूरा होने के बाद भी उन्हें कोई मुआवजा नहीं ‌दिया गया।

इसलिए, दो याचिकाकर्ताओं ने हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया, जिसमें राज्य ने कहा कि चूंकि परियोजना निदेशक, एनएचएआई, कानपुर द्वारा मूल्यांकन रिपोर्ट उपलब्ध नहीं कराई गई है, इसलिए 9 गांवों के लिए पुरस्कार घोषित नहीं किया जा सका।

अदालती कार्यवाही के दरमियान, पीठ ने कहा कि संबंधित अधिकारी वर्ष 2018 में नोटिस जारी किए जाने के बाद 3 साल से अधिक समय तक इस मामले में सोए रहे और वे केवल तभी एक्टिव हुए जब वर्तमान रिट याचिका दायर की गई।

न्यायालय ने यह भी कहा कि संबंधित अधिकारी जो अवॉर्ड तैयार करने और भूस्वामियों को मुआवजा देने के लिए जिम्मेदार थे, एक दूसरे पर दोष मढ़ रहे थे। अदालत ने आदेश दिया कि नौ गांवों में भूस्वामियों को दिए जाने वाले मुआवजे के निर्धारण की प्रक्रिया पूरी की जाए।

केस टाइटलः राजेश चंद्र @ राकेश एवं अन्य बनाम यूपी राज्य और 2 अन्य

केस साइटेशन: 2023 लाइवलॉ (एबी) 87

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