"नागरिक अपने धर्म का प्रचार कर सकते हैं": बॉम्बे हाईकोर्ट ने धर्मांतरण के आरोपी ईसाई युगल के खिलाफ धारा 144 का आदेश रद्द किया
बॉम्बे हाईकोर्ट ने माना है कि किसी व्यक्ति को सीआरपीसी की धारा 144 के तहत एक आदेश के माध्यम से उसी की संपत्ति पर किसी भी धार्मिक गतिविधि करने से रोकना, संविधान के अनुच्छेद 19 (1), अनुच्छेद 25 और 26 में निहित उसके मौलिक अधिकारों का प्रत्यक्ष उल्लंघन होगा।
गोवा स्थित जस्टिस महेश सोनक और जस्टिस वाल्मीकि मेनेजेस की पीठ ने उक्त टिप्पणियों के साथ धर्म परिवर्तन के आरोपी एक ईसाई जोड़े के खिलाफ जिला मजिस्ट्रेट की ओर से सीआरपीसी की धारा 144 के तहत पारित एक आदेश को रद्द कर दिया।
अदालत ने कहा कि याचिकाकर्ता और उसके पति को अपने धर्म का प्रचार करने और किसी भी तरीके से इसे मानने का अधिकार है, खासकर जब यह उनकी अपनी निजी संपत्ति के भीतर हो, और वे कानून की सीमा के भीतर हों।
"हमारी राय है कि संहिता की धारा 144 के तहत क्षेत्राधिकार का प्रयोग करने का दावा करके और याचिकाकर्ता और डोमनिक को सिओलिम में उनकी संपत्ति में किसी भी धार्मिक गतिविधि को करने से रोकना संविधान के अनुच्छेद 19 (1), अनुच्छेद 25 और अनुच्छेद 26 में निहित मौलिक अधिकारों का प्रत्यक्ष उल्लंघन है। यह उन्हें भाषण, अभिव्यक्ति और अंतःकरण की स्वतंत्रता और अपन धर्म को मानने, अभ्यास करने, प्रचार करने या धार्मिक संस्थान बनाने की स्वतंत्रता से वंचित करता है।"
संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत दायर याचिका में जोआन मैस्करेनहास ई डिसूजा ने जिला मजिस्ट्रेट (उत्तर) की ओर से पारित 28 दिसंबर, 2022 के एक आदेश को रद्द करने की मांग की थी, जिसमें उन्हें सिओलिम स्थित उन्हीं की संपत्ति में बने संस्थागत भवन में धार्मिक गतिविधियों को करने से रोक दिया गया था।
मजिस्ट्रेट ने यह कहकर आदेश को सही ठहराया था कि यह धर्म की स्वतंत्रता और नागरिकों की अंतरात्मा को प्रभावित करने वाले प्रलोभन या धोखाधड़ी के माध्यम से धर्म परिवर्तन को रोकने के लिए था।
डिसूजा ने दावा किया कि वह अपने पति के साथ पिछले 23 वर्षों से धार्मिक गतिविधियों को अंजाम दे रही थीं, और पवित्र बाइबिल से धर्मग्रंथों की शिक्षाओं का प्रचार करने में लगी हुई थीं। दोनों ईसा मसीह के अनुयायी थे और भारत के संविधान के अनुच्छेद 25 और 26 के तहत गारंटीकृत अपने मौलिक अधिकारों का प्रयोग करते हुए, उन्होंने अपने धर्म और विश्वास का प्रचार करने के लिए एक समूह का गठन किया था।
याचिकाकर्ता के तर्क से सहमत होते हुए, पीठ ने कहा कि उसे डिसूजा के खिलाफ कोई शिकायत नहीं मिली, जो जनता के किसी भी सदस्य को किसी विशेष धर्म में परिवर्तित करने के लिए बल, जबरदस्ती या धोखे का उपयोग करने के समान हो। मजिस्ट्रेट के आदेश में, कुछ सामग्री के संदर्भ के अलावा याचिकाकर्ता द्वारा जबरन धर्मांतरण की एक भी घटना या विवरण का उल्लेख नहीं किया गया था।
इसके अलावा, अन्य दंडात्मक कानून भी हैं, जो याचिकाकर्ता के खिलाफ ऐसी शिकायतों से निपट सकते हैं, और यह अपने आप में जिला मजिस्ट्रेट के लिए संहिता की धारा 144 के तहत अधिकार क्षेत्र का प्रयोग करने का कारण नहीं हो सकता है।
"यह निष्कर्ष कि याचिकाकर्ता और उसका पति धार्मिक गतिविधियों को अंजाम दे रहे हैं, जिससे गांव में सांप्रदायिक तनाव बढ़ा है या वे प्रलोभन या धोखाधड़ी के माध्यम से धर्म परिवर्तन में शामिल हैं, पूरी तरह से निराधार प्रतीत होता है, रिकॉर्ड पर किसी भी सामग्री पर आधारित नहीं है...।
"याचिकाकर्ता और उसके पति डोमनिक को अपने धर्म का प्रचार करने और किसी भी तरीके से इसे मानने का अधिकार है, हालांकि यह कानून की सीमा के भीतर हों, खासकर जब यह उनकी अपनी निजी संपत्ति के भीतर हो।"
केस नंबर- CRI WP 63 of 2023
केस टाइटल- श्रीमती जोन मैस्करेनहास ई डिसूजा बनाम गोवा राज्य
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