मृतक कर्मचारी की दूसरी पत्नी से पैदा हुआ बच्चा अनुकंपा नियुक्ति पाने के योग्यः राजस्थान हाईकोर्ट

Update: 2022-11-20 13:15 GMT

Rajasthan High Court

राजस्थान हाईकोर्ट (जोधपुर बेंच) ने माना है कि मृतक कर्मचारी की दूसरी पत्नी से पैदा हुआ बच्चा अनुकंपा नियुक्ति पाने के लिए योग्य है।

इस निष्कर्ष पर पहुंचने के लिए जस्टिस संदीप मेहता और जस्टिस कुलदीप माथुर की पीठ ने मुकेश कुमार बनाम भारत संघ 2022 लाइव लॉ (एससी) 205 के मामले में सुप्रीम कोर्ट के हालिया फैसले पर भरोसा किया, जिसमें यह माना गया है कि अनुकंपा नियुक्ति नीति मृतक कर्मचारी के बच्चों को वैध और नाजायज के रूप में वर्गीकृत करके केवल वंश के आधार पर किसी व्यक्ति के खिलाफ भेदभाव नहीं कर सकती है।

कोर्ट के समक्ष मामला

कोर्ट ने हेमेंद्र पुरी द्वारा दायर एक इंट्रा-कोर्ट अपील पर विचार करते हुए उक्त टिप्पणी की। इस अपील में एकल न्यायाधीश के उस आदेश को चुनौती दी गई थी,जिसमें याचिकाकर्ता के दिवंगत पिता के स्थान पर जय नारायण व्यास यूनिवर्सिटी में अनुकंपा नियुक्ति की मांग करने वाली उसकी रिट याचिका को खारिज कर दिया गया था।

अपीलकर्ता के पिता की मृत्यु दिसंबर 2004 में जय नारायण व्यास यूनिवर्सिटी के साथ 'तबला वादक' के रूप में काम करने के दौरान हुई थी। अपीलकर्ता और प्रतिवादी संख्या-4 (मृतक की दूसरी पत्नी के माध्यम से पैदा हुआ बच्चा) ने अनुकंपा के आधार पर नियुक्ति के लिए आवेदन किया था।

प्रतिवादी यूनिवर्सिटी ने राजस्थान के मृत सरकारी कर्मचारियों के आश्रितों को अनुकंपात्मक नियुक्ति नियम, 1996 और अगस्त 2005 के प्रावधानों को ध्यान में रखते हुए दोनों आवेदनों पर विचार किया और प्रतिवादी संख्या-4 के पक्ष में अनुकंपा नियुक्ति का निर्णय दे दिया।

इससे व्यथित होकर अपीलार्थी ने एक रिट याचिका दायर की जिसे अप्रैल 2018 में खारिज कर दिया गया। इसलिए, यह विशेष अपील यह तर्क देते हुए दायर की गई थी कि मृतक कर्मचारी की प्रतिवादी संख्या-4 की मां के साथ दूसरी शादी संदिग्ध थी और इसलिए, अनुकंपा नियुक्ति उसे नहीं दी जा सकती थी।

यह भी तर्क दिया गया कि अपीलकर्ता मृतक कर्मचारी के स्थान पर अनुकंपा नियुक्ति के लिए पूरी तरह से योग्य और हकदार था, हालांकि, अनुकंपा नियुक्ति का दावा करने के उसके अधिकार को अवैध रूप से अनदेखा करते हुए, प्रतिवादी संख्या- 4 को नियुक्त कर दिया गया।

हाईकोर्ट की टिप्पणियां

शुरुआत में, कोर्ट ने मुकेश कुमार (सुप्रा) के मामले में सुप्रीम कोर्ट के हालिया फैसले का हवाला देते हुए कहा कि अनुकंपा नियुक्ति की नीति, जिसमें कानून का बल है, को अनुच्छेद 16(2) में उल्लिखित किसी भी आधार पर भेदभाव नहीं करना चाहिए,जिसमें वंश भी शामिल है।

इसके अलावा, कोर्ट ने राजस्थान के मृत सरकारी कर्मचारियों के आश्रितों को अनुकंपात्मक नियुक्ति नियम, 1996 पर भी ध्यान दिया, यह निष्कर्ष निकालने के लिए कि प्रतिवादी संख्या-4 द्वारा अनुकंपा नियुक्ति के लिए प्रस्तुत आवेदन को केवल इस आधार पर प्रतिवादी यूनिवर्सिटी द्वारा खारिज नहीं किया जा सकता था कि वह दूसरी पत्नी से पैदा हुआ बच्चा है।

कोर्ट ने एकल न्यायाधीश के आदेश को बरकरार रखते हुए आगे कहा कि,

''1996 के नियमों के नियम 10(2) के अनुसार यदि एक से अधिक आश्रित अनुकंपा के आधार पर रोजगार का दावा करते हैं तो विभागाध्यक्ष परिवार के समग्र हित और कल्याण को ध्यान में रखते हुए अनुकंपा नियुक्ति के आवेदनों का निर्णय करने के लिए सक्षम है । उपरोक्त तथ्यों को ध्यान में रखते हुए, हमारा दृढ़ मत है कि सक्षम प्राधिकारी अर्थात विभागाध्यक्ष ने प्रस्तुत किए गए आवेदन को 1996 के नियमों के अनुरूप मानकर सही किया था  और उसके पक्ष में नियुक्ति का प्रस्ताव जारी किया था।''

परिणामस्वरूप, विशेष अपील योग्यता से रहित होने के कारण खारिज कर दी गई।

केस टाइटल - हेमेंद्र पुरी बनाम जय नारायण व्यास यूनिवर्सिटी व अन्य,डी.बी. विशेष आवेदन रिट नंबर 1565/2018

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