मुख्यमंत्री जन संवाद प्रकोष्ठ को पुलिस को प्राथमिकी दर्ज करने के निर्देश देने का अधिकार नहीं : झारखंड हाईकोर्ट
झारखंड हाईकोर्ट ने मुख्यमंत्री जन संवाद प्रकोष्ठ द्वारा पुलिस अधिकारियों पर प्राथमिकी दर्ज करने के लिए दबाव बनाने के चलन को हाल ही में अनुचित ठहराया है।
न्यायमूर्ति आनंद सेन की एकल पीठ ने कहा,
" मुख्यमंत्री जन संवाद केंद्र का दरवाजा खटखटाने का कोई कानूनी प्रावधान नहीं है, क्योंकि न तो यह एक सांविधिक निकाय है और न ही दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) के तहत उसे कोई अधिकार प्राप्त है। इतना ही नहीं, तथाकथित 'मुख्यमंत्री जन संवाद केंद' को न तो पुलिस अधिकारियों को प्राथमिकी दर्ज करने के निर्देश देने का अधिकार है और न ही इसकी निगरानी करने का।"
कोर्ट की यह टिप्पणी उस अर्जी पर आयी है, जिसमें इस आधार पर प्राथमिकी खारिज करने का अनुरोध किया गया था कि कथित प्राथमिकी 'मुख्यमंत्री जन संवाद केंद्र' के नाम से प्रचलित प्रकोष्ठ के दबाव में आकर दर्ज की गयी थी।
आरोपों के अनुसार, पुलिस ने प्राथमिकी दर्ज करने के निजी प्रतिवादी के आग्रह को ठुकरा दिया था क्योंकि शिकायतकर्ता की ओर से उपलब्ध करायी गयी सूचना से किसी संज्ञेय अपराध का कोई संकेत नहीं मिला था। इसके बावजूद प्रतिवादी ने मुख्यमंत्री जन संवाद प्रकोष्ठ का रुख किया था, जिसने प्राथमिकी दर्ज करने के लिए पुलिस पर दबाव बनाया था।
बेंच ने कहा,
"मैंने पाया कि प्राथमिकी 'मुख्यमंत्री जन संवाद केंद्र' (मुख्यमंत्री जन संवाद प्रकोष्ठ) के निर्देश पर दर्ज की गयी थी, क्योंकि शिकायतकर्ता ने प्राथमिकी दर्ज न होने की स्थिति में मुख्यमंत्री जन संवाद प्रकोष्ठ से शिकायत की थी। यह दस्तावेज प्राथमिकी का हिस्सा है और इसके अवलोकन के बाद मैंने पाया कि प्रकोष्ठ ने 25 दिसम्बर 2017 को पुलिस को प्राथमिकी दर्ज करने के निर्देश दिये थे। उसके बाद भी प्रकोष्ठ की ओर से कई दिशानिर्देश दिये गये थे, जो प्राथमिकी के पृष्ठ संख्या 26, 27 और 28 से स्पष्ट पता चलता है। न केवल दिशानिर्देश दिया गया, बल्कि कथित प्रकोष्ठ ने मामले की निगरानी भी की थी।"
कोर्ट ने इस तरह से अनधिकृत शक्ति के इस्तेमाल को हतोत्साहित करते हुए कहा,
"यदि पुलिस अधिकारी के समक्ष लिखित शिकायत की जाती है, जिसमें संज्ञेय अपराध के आरोप हैं, तो पुलिस अधिकारी उस शिकायत के आधार पर प्राथमिकी दर्ज करने से इनकार नहीं कर सकता। पुलिस यदि प्राथमिकी दर्ज करने से इनकार करती है या लापरवाही बरतती है तो दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) के तहत उपाय मौजूद है। शिकायतकर्ता/सूचनाप्रदाता पुलिस अधीक्षक या उससे भी बड़े अधिकारी से शिकायत कर सकता है और प्राथमिकी दर्ज करने का अनुरोध कर सकता है। उस व्यक्ति के पास सक्षम अधिकार क्षेत्र वाले कोर्ट में शिकायत दर्ज करने का भी विकल्प होता है। कानून के तहत 'मुख्यमंत्री जन संवाद केंद्र' के समक्ष शिकायत करने का कोई प्रावधान नहीं है।"
कोर्ट ने कहा कि इस मामले में, कोई संज्ञेय अपराध नहीं बन रहा था और शिकायकर्ता ने आपस में चल रहे कारोबारी लेनदेन के आधार पर सामान्य तौर पर राशि का दावा किया था। उसने इस मामले को आपराधिक मुकदमे का रंग दे दिया था, "जो कानूनी प्रक्रिया के दुरुपयोग के अलावा कुछ और नहीं था।
कोर्ट ने 'बिनोद कुमार एवं अन्य बनाम बिहार सरकार एवं अन्य (2014) 10 एससीसी 663' के मामले का उल्लेख करते हुए कहा कि दीवानी दायित्व को आपराधिक दायित्व में तब्दील नहीं किया जा सकता। इसके साथ ही कोर्ट ने प्राथमिकी निरस्त कर दी।
केस का ब्योरा :
केस का शीर्षक : संजय कुमार शारदा बनाम झारखंड सरकार एवं अन्य
केस नं. : रिट याचिका (क्रिमिनल) नं. 395/2019
कोरम : न्यायमूर्ति आनंद सेन
वकील : एडवोकेट राहुल कुमार (याचिकाकर्ता के लिए) , सरकारी वकील नवीन कुमार सिंह (राज्य सरकार के लिए) और एडवोकेट चांदना कुमारी (निजी प्रतिवादी के लिए)
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