पुरुष-प्रधान समाज में कुछ लालची पुरुषों और महिलाओं द्वारा चरित्र हनन करना आम बात है;जो व्यक्तियों को प्रभावित करता हैः मद्रास हाईकोर्ट
मद्रास हाईकोर्ट ने सोमवार (09 नवंबर) को कहा है कि ''पुरुष-प्रधान समुदाय में चरित्र का हनन आम या सामान्य है। इतना ही नहीं हमारे देश में समान लिंग के बीच भी चरित्र हनन प्रचलित है।''
न्यायमूर्ति एस एम सुब्रमण्यम की खंडपीठ याचिकाकर्ता/एकमात्र अभियुक्त की जमानत याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसे प्रतिवादी पुलिस ने आईपीसी की धारा 306 के तहत दंडनीय अपराध के लिए गिरफ्तार किया गया था और उसके बाद उसे न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया था।
याचिकाकर्ता के खिलाफ मामला
यह आरोप लगाया गया था कि याचिकाकर्ता उस मृतक महिला का रिश्तेदार है, जिसने आत्महत्या कर ली थी। याचिकाकर्ता के खिलाफ इस आधार पर मामला दर्ज किया गया था कि वह मृतक का रिश्तेदार था और अक्सर मृतक महिला के चरित्र का हनन करता था और इस तरह के निरंतर उत्पीड़न के कारण, मृतक ने खुद को आग लगाकर आत्महत्या कर ली थी।
याचिकाकर्ता/ अभियुक्त को इस आपराधिक मामले में मुख्य रूप से इस आधार पर आरोपी बनाया गया है कि वह बार-बार चरित्र हनन करके मृतक को परेशान करता था।
न्यायालय का अवलोकन
मरने के अधिकार के बारे में, न्यायालय ने कहा कि,
"हमारे महान राष्ट्र के नागरिकों को मृत्यु का अधिकार उपलब्ध नहीं कराया गया है। हालाँकि, कुछ विचारकों का मत है कि जीवन के अधिकार में मरने का अधिकार भी शामिल है। यह निहित अधिकार भारत के संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत प्रदान किया गया है। यहां तक कि भारतीय दंड संहिता के तहत, वह व्यक्ति जो इस तरह की आत्महत्या करने में सफल हो जाता है, निश्चित रूप से उसे दंडित नहीं किया जा सकता है, क्योंकि आत्महत्या एक आत्म मृत्यु है।''
कोर्ट ने आगे यह भी कहा कि,
''मृतक को आत्महत्या के लिए उकसाने वाले व्यक्तियों पर अकेले इस आरोप में मुकदमा चलाया जाता है। हालांकि आत्महत्या के लिए उकसाने के संबंध में एक निष्कर्ष पर पहुंचने के लिए यह एक बड़ा मुद्दा/ बड़ी रेखा है। अभियोजन पक्ष के लिए यह साबित करना बहुत मुश्किल होगा, और कुछ परिस्थितियों के आधार पर, न्यायालय भी इस निष्कर्ष पर पहुंचते हैं कि मामले में एक उकसाहट है। हालांकि, यह प्रत्येक मामले के तथ्यों और परिस्थितियों पर निर्भर करता है।''
न्यायालय ने यह भी कहा कि चरित्र हनन और चरित्र को लेकर गपशप करना कुछ ऐसे स्वरूप हैं,जिन्हें ''कुछ लालची पुरुषों और महिलाओं द्वारा विकसित किया गया है और कुछ अवसरों पर गैर-इरादतन चरित्र हनन भी व्यक्ति पर एक निश्चित प्रभाव डालता है।''
वर्तमान मामले के संबंध में, न्यायालय ने कहा कि इस निष्कर्ष पर नहीं पहुंचा जा सकता है कि केवल चरित्र हनन के कारण; आत्महत्या का कृत्य किया गया था या आत्महत्या की गई थी।
हालांकि, कोर्ट ने कहा कि इन सभी संभावनाओं और अनुमान की जांच की जानी चाहिए और ट्रायल के दौरान सच्चाई का पता किया जाना चाहिए।
अंत में, मामले के तथ्यों और परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए और जेल में बिताई गई अवधि को भी ध्यान में रखते हुए, अदालत ने याचिकाकर्ता को न्यायिक मजिस्ट्रेट की संतुष्टि के लिए 10,000 रुपये - (केवल दस हजार रुपये) का बांड प्रस्तुत करने व दो जमानतदार पेश करे की शर्त पर जमानत दे दी।
महत्वपूर्ण रूप से, न्यायालय ने उल्लेख किया कि,
''इस निष्कर्ष पर पहुंचने के लिए कि क्या आत्महत्या को अपराध या जीवन के अधिकार के रूप में बनाया जा सकता है,जिसमें मरने का निहित अधिकार भी शामिल हो, इसके लिए कानून निर्माताओं को विशेषज्ञों और शिक्षाविदों की सहायता से एक बड़ा अध्ययन करवाकर इन मुद्दों पर बहस आयोजित करवानी होगी?''
केस का शीर्षक - बालासुब्रमण्यम बनाम राज्य (सीआरएल ओपी (एमडी) नंबर 12606/ 2020)
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