केंद्र ने नागालैंड को 'अशांत क्षेत्र'घोषित किया, AFSPA छह माह के लिए बढ़ाया
केंद्र सरकार ने संपूर्ण नागालैंड को 'अशांत क्षेत्र' घोषित कर दिया है और राज्य में सशस्त्र बल (विशेष अधिकार) अधिनियम (एएफएसपीए - आफ्सपा) को छह महीने के लिए और बढ़ा दिया है, जो 30 जून 2020 से लागू हो गया है।
इस विषय में अधिसूचना जारी कर दी गई है। केंद्र का कहना है कि संपूर्ण नागालैंड अशांत क्षेत्र है इसलिए वहां नागरिक व्यवस्था को सशस्त्र बल की मदद की ज़रूरत है।
एएफएसपीए की धारा 3 के अनुसार, अगर राज्य या केंद्र शासित प्रदेश के प्रशासक को यह लगता है कि पूरे राज्य में या उसके कुछ हिस्से में अशांति है और वहां स्थिति ख़तरनाक है और वहां सशस्त्र बलों की तैनाती आवश्यक है, तो राज्य का राज्यपाल या केंद्र शासित प्रदेश का प्रशासक या केंद्र सरकार राज्य के पूरे क्षेत्र या उसके एक हिस्से को अशांत क्षेत्र घोषित कर सकते हैं।
एएफएसपीए की पृष्ठभूमि
राज्य में पिछले छह दशक से एएफएसपीए लगा है। इस अधिनियम की धारा 5 के तहत किसी भी कमीशंड अधिकारी, वारंट अधिकारी, ग़ैर कमीशंड अधिकारी या इस रैंक के किसी भी सैन्य अधिकारी को अधिकार है कि वह
· पांच या इससे अधिक लोगों को एक जगह जमा होने से रोक सकता है और इसके लिए किसी भी व्यक्ति के ख़िलाफ़ बल प्रयोग कर सकता है भले ही इसमें किसी की जान ही क्यों न चली जाए, अगर उसको लगे कि वह व्यक्ति अशांत क्षेत्र में क़ानून के ख़िलाफ़ काम कर रहा है और वह किसी को भी ऐसी वस्तुओं के साथ निकलने से रोक सकता है, जिसका प्रयोग हथियार, आग्नेयास्त्र या विस्फोटक के रूप में हो सकता है;
· अगर उसको ज़रूरी लगता है तो वह हथियारों के ज़ख़ीरे को नष्ट कर सकता है, किसी जगह को घेर सकता है, जहां से हथियारों से हमले हो रहे हैं या हो सकते हैं या ऐसा करने का प्रयास हो रहा है, या ऐसी जगह जिसे हथियारबंद लोगों को प्रशिक्षण देने या किसी अपराध को अंजाम देने के लिए इन लोगों के छिपने की जगह के रूप में हो रहा है;
· बिना किसी वारंट के किसी भी व्यक्ति को गिरफ़्तार कर सकता है अगर उसने कोई संज्ञेय अपराध किया है या उस पर ऐसा करने का संदेह है या कर सकता है;
· किसी भी परिसर में किसी व्यक्ति की खोज में खोजी वारंट के बिना प्रवेश कर सकता है जिसके बारे में उसको लगता है कि किसी को ग़लत तरीक़े से बंद रखा गया है या उस जगह पर हथियार, गोलाबारूद रखा गया है;
एएफएसपीए की संवैधानिक स्थिति
1997 में सुप्रीम कोर्ट की एक संविधान पीठ ने नागा पीपुल्स मूवमेंट, ऑफ़ ह्यूमन राइट्स बनाम भारत संघ मामले में एएफएसपीए, 1958 को संवैधानिक रूप से वैध ठहराया।
पीठ ने कहा,
· इस अधिनियम की धारा 3 के तहत एएफएसपीए की घोषणा एक सीमित अवधि के लिए हो सकती है और छह माह की अवधि के बीतने से पहले इसकी समीक्षा होगी।
· यद्यपि केंद्र एएफएसपीए लगाने की घोषणा उस राज्य की सरकार से परामर्श किए बिना कर सकता, लेकिन राज्य सरकार की राय ली जाए यह वांछनीय है।
· धारा 3 के तहत एएफएसपीए की घोषणा का अधिकार देने का मतलब उस राज्य के राज्यपाल को केंद्र का अधिकार थमा देना (delegation) नहीं है।
· धारा 3 के तहत केंद्र सरकार का एएफएसपीए को लागू करना संविधान के तहत संघीय व्यवस्था का उल्लंघन नहीं है।
सुप्रीम कोर्ट ने मणिपुर में एएफएसपीए लगाने को लेकर 2016 में Extra Judicial Execution Victim Families Association v. Union of India, मामले में कहा था -
" हमारी राय में सामान्य स्थिति बहाल करने के लिए सशस्त्र बल की मदद लेना नागरिक प्रशासन की विफलता है या यह सैन्य बलों की विफलता का संकेत है अगर उसे सामान्य स्थिति बहाल करने में नागरिक प्रशासन की मदद करनी पड़े। कुछ भी हो, स्थिति सामान्य नहीं हो पा रही है, इसके लिए स्थायी तौर पर या अनिश्चित काल तक के लिए सेना की तैनाती का बहाना नहीं हो सकता है…
यह हमारी लोकतांत्रिक व्यवस्था का मज़ाक़ उड़ाना होगा और आंतरिक गड़बड़ी के कारण संघ सूची की प्रविष्टि 2 के तहत सैन्य बलों की तैनाती क्षेत्राधिकार का उपहास होगा।"