पुलिस ने सुनी-सुनाई कथित बातचीत के आधार पर गौहत्या अधिनियम के तहत मामला दर्ज कियाः इलाहाबाद हाईकोर्ट ने आवेदक को जमानत दी और एसपी से स्पष्टीकरण मांगा

Update: 2021-06-12 08:30 GMT

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने हाल ही में उस आरोपी व्यक्ति को जमानत दे दी है,जिसके खिलाफ यू.पी. गोहत्या निवारण अधिनियम, 1955 के तहत अपराध करने का मामला दर्ज किया गया था। कोर्ट ने पाया कि पुलिस पार्टी द्वारा सुनी गई आवेदक की कथित बातचीत के आधार पर यह मामला दर्ज किया गया था।

जस्टिस अब्दुल मोइन की बेंच यूपी गोहत्या निवारण अधिनियम, 1955 की धारा 3/5/8 के तहत आवेदक द्वारा दायर जमानत अर्जी पर सुनवाई कर रही थी।

संक्षेप में मामला

प्राथमिकी के अनुसार, आवेदक सहित चार व्यक्तियों को गिरफ्तार किया गया था और उनके कब्जे से दो बैल, एक रस्सी का एक बंडल, एक हथौड़ा, एक घड़ासा (छोटा), एक घड़ासा (बड़ा), एक कील और 5 किलो के बारह खाली पैकेट बरामद किए गए थे।

यह तर्क दिया गया था कि मुखबिर से प्राप्त सूचना के आधार पर, पुलिस दल ने सावधानी से उक्त व्यक्तियों तक पहुंच बनाई थी और उन्हें झाड़ियों में आपस में बात करते हुए सुना था। वह आपस में बात कर रहे थे कि उन्होंने तीन बछड़ों का वध किया है और काफी पैसा कमाया है और अब उनके पास दो बैल हैं और वह उनका भी वध कर देंगे।

उक्त बातचीत के आधार पर, जिसे पुलिस दल ने कथित रूप से सुना था, उक्त व्यक्तियों को गिरफ्तार कर लिया गया और उनके कब्जे से गोहत्या में उपयोग किए जाने वाले उपरोक्त उपकरण बरामद किए गए।

कथित तौर पर दोनों बैल को उनके कब्जे से लेकर शेल्टर में भेज दिया गया था। उसी के आधार पर अधिनियम, 1955 की धारा 3 और 8 के प्रावधानों के तहत प्राथमिकी दर्ज की गई थी।

अपराध

अधिनियम, 1955 की धारा 3 उस समय लागू होती है जहां कोई व्यक्ति या तो वध करता है या वध का कारण बनता है या गाय, बैल या सांड को वध के लिए पेश करता है या उसको पेश करने का कारण बनता है, तो वह अधिनियम 1955 की धारा 8 के तहत प्रदान किए गए दंड के लिए उत्तरदायी होगा।

अधिनियम, 1955 की धारा 2 (डी) में दी गई परिभाषा के अनुसार, किसी भी तरीके से हत्या करना, जिसमें अपंग और शारीरिक चोट शामिल है, जो सामान्य रूप से मृत्यु का कारण बने, अधिनियम 1955 की धारा 3 को लागू करने के लिए एक अनिवार्य शर्त है।

इसी तरह, अधिनियम, 1955 की धारा 8 उस व्यक्ति के खिलाफ भी दंड का प्रावधान करती है जो अधिनियम, 1955 की धारा 3 या धारा 5 के प्रावधानों का उल्लंघन करता है या उल्लंघन करने के लिए उकसाता है।

न्यायालय की टिप्पणियां

प्राथमिकी पर विचार करते हुए, अदालत ने पाया कि आवेदक के कब्जे में पाए गए बैलों को न तो मारा गया था और न ही अपंग किया गया था या न ही उन्हें कोई शारीरिक चोट पहुंचाई गई थी।

महत्वपूर्ण रूप से, कोर्ट ने नोट किया,

''अधिनियम, 1955 की धारा 3 और 8 के प्रावधानों के तहत आवेदक और अन्य के खिलाफ यह मामला केवल उस कथित बातचीत (जो उत्सुकता से आवेदक और अन्य लोगों द्वारा झाड़ियों में की जा रही थी) के आधार पर दर्ज किया गया था, जो पुलिस पार्टी ने सुनी थी।''

इसके अलावा, अदालत ने यह भी कहा कि प्राथमिकी में कहीं भी यह नहीं कहा गया है कि आवेदक ने वध करने का कोई प्रयास किया था या वध को अंजाम दिया था।

इस प्रकार, न्यायालय ने कहा कि,

''अधिनियम, 1955 के तहत आवेदक के खिलाफ अपराध स्पष्ट रूप से लागू नहीं होता हैै। नतीजतन, यह प्रथम दृष्टया स्पष्ट है कि अधिनियम, 1955 की धारा 3 और 8 को आवेदक के खिलाफ गलत तरीके से लागू किया गया है।''

मामले के तथ्यों को देखते हुए अदालत ने आवेदक को जमानत देना उचित समझा और जमानत अर्जी मंजूर कर ली गई।

अंत में, कोर्ट ने कहा कि मामले की अजीबोगरीब परिस्थितियों को देखते हुएः

''इस न्यायालय को यह न्याय के हित में लगता है कि पुलिस अधीक्षक, सीतापुर को अपना व्यक्तिगत हलफनामा दायर करने का निर्देश दिया जाए, विशेष रूप से जमानत आवेदन में दिए गए तर्कों के साथ-साथ यह इंगित करने के लिए कि आवेदक के खिलाफ अधिनियम 1955 की धारा 3 और 8 के तहत मामला कैसे बनाया गया?''

केस का शीर्षकः सूरज बनाम यू.पी. राज्य

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