आरोपियों को लाभ देने के लिए उचित धाराओं में मामला दर्ज नहीं किया गया, मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने पुलिस अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई का निर्देश दिया

Update: 2022-02-25 07:07 GMT

Madhya Pradesh High Court

मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने हाल ही में शहडोल जिले के पुलिस अधीक्षक को एक आरोपी के‌ खिलाफ उचित धाराओं में मामला दर्ज नहीं करने के मामले में 'अपराधी' पुलिस अधिकारियों के खिलाफ उचित कार्रवाई करने का निर्देश दिया। आरोप है कि पुलिस अधिकारियों ने आरोपी को कथ‌ित रूप से फायदा पहुंचाने के लिए ऐसा कृत्य किया।

जस्टिस विशाल मिश्रा दरअसल आईपीसी धारा 409, 420 और 34 के तहत दायर आरोपी की दूसरी जमानत याचिका पर विचार कर रहे थे।

अभियोजन पक्ष के अनुसार, आवेदक ने गलत बयानी कर शिकायतकर्ता को धोखा दिया था। शिकायतकर्ता द्वारा कुछ निवेश और अन्य आवेदक के माध्यम से शेयर बाजार में किए गए थे। भुगतान की मांग करने पर आवेदक द्वारा चेक जारी किया गया, जो अनादरित हो गया।

याचिकाकर्ता ने सुनवाई में देरी के आधार पर जमानत देने की मांग की। उन्होंने तर्क दिया कि उन्हें लंबे समय तक हिरासत में रखना ट्रायल से पहले दोषसिद्धि जैसा होगा।

उन्होंने कहा कि ट्रायल में वस्तुतः कोई प्रगति नहीं हुई थी। उन्होंने तर्क दिया कि शिकायतकर्ता अपनी मर्जी से शेयर बाजार में उसके माध्यम से राशि जमा करने के लिए सहमत हुए थे, इसलिए यह धोखाधड़ी का मामला नहीं हो सकता है। उन्होंने कहा कि शेयर बाजार में नुकसान होने पर एफआईआर दर्ज की गई थी। उनके द्वारा जारी किए गए चेक अनादरित हो गए थे, इसलिए अधिक से अधिक उनके खिलाफ निगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट्स एक्ट के तहत मामला दर्ज किया जा सकता था। उन्होंने यह भी उल्लेख किया कि अन्य सह-आरोपियों को पहले ही जमानत दी जा चुकी है।

इसके विपरीत राज्य और आपत्तिकर्ता ने यह कहते हुए आवेदन का जोरदार विरोध किया कि अपराध वर्ष 2015 में दर्ज किया गया था और आवेदक लगभग 7 वर्षों से फरार था। उसे बड़ी मुश्किल से गिरफ्तार किया गया। उनका कहना था कि इस मामले में एक करोड़ रुपये से अधिक की राशि का लेन-देन किया गया है। उन्होंने आगे तर्क दिया कि आवेदक ने खुद को एक लाइसेंस प्राप्त और पंजीकृत शेयर दलाल के रूप में दिखाया, और उसने शिकायतकर्ता और अन्य को अपने माध्यम से निवेश करने के लिए कहा और उन्हें मुनाफे का आश्वासन दिया। हालांकि, उनका तर्क था कि उनके पास अपेक्षित लाइसेंस नहीं था।

राज्य और आपत्तिकर्ता ने यह भी प्रस्तुत किया कि यह दिखाने के लिए रिकॉर्ड में कुछ भी नहीं था कि आवेदक एक पंजीकृत शेयर मार्केट ब्रोकर है। उन्होंने तर्क दिया, यदि यह माना जाता है कि उनके नाम पर एक डिमैट अकाउंट है, तो उक्त ड‌िमैट अकाउंट केवल उनके उपयोग के लिए होगा।

उक्त उद्देश्य के लिए कोई उचित लाइसेंस के बिना वह ड‌िमैट अकाउंट के माध्यम से दूसरों के लिए निवेश नहीं कर सकता था। राज्य और आपत्तिकर्ता द्वारा यह दावा किया गया था कि आवेदक ने झूठे नाटक के माध्यम से शिकायतकर्ता और अन्य लोगों को उसके माध्यम से शेयर बाजार में निवेश करने के लिए कहा।

उन्होंने अदालत को बताया कि अगर आवेदक को जमानत दी गई तो इस बात की पूरी संभावना है कि वह फिर से फरार हो जाएगा। अन्य अभियुक्तों के साथ समानता के संबंध में, उन्होंने तर्क दिया कि अन्य सह-अभियुक्तों का मामला आवेदक के मामले से बिल्कुल अलग था।

दोनों पक्षों की दलीलों पर विचार करते हुए कोर्ट ने कहा कि वह आरोपी को जमानत देने के पक्ष में नहीं है। हालांकि, इसने आरोपों के निर्धारण की ओर अपना ध्यान आकर्षित किया। कोर्ट ने रिकॉर्ड पर मौजूद दस्तावेजों का अवलोकन करते हुए, आदेश 14.02.2022 के तहत राज्य से एक प्रश्न किया था।

अदालत ने संबंधित जांच अधिकारी से, जो व्यक्तिगत रूप से मौजूद था, पूछा कि क्या वित्तीय अनियमितताओं के संबंध में कानून के तहत कोई अपराध आवेदक के खिलाफ किया गया था या नहीं। उक्त प्रश्न के लिए, अधिकारी ने प्रस्तुत किया कि आवेदक के खिलाफ मामले में वास्तव में अन्य अपराध किए गए थे।

उन्होंने अदालत के सामने अपना बचाव करते हुए कहा कि चूंकि उन्होंने हाल ही में पुलिस स्टेशन ज्वाइन किया है और उन्हें केस डायरी सौंपी गई है, उन्हें इस बात की कोई जानकारी नहीं थी कि जांच किस तरीके से की जा रही है। उन्होंने अदालत को आश्वासन दिया कि वह ट्रायल कोर्ट की अनुमति से आवेदक के खिलाफ अन्य अपराधों को दर्ज कराने के लिए हर संभव कदम उठाएंगे।

आईओ की दलीलों पर विचार करते हुए कोर्ट ने कहा-

दस्तावेजों और केस डायरी के अवलोकन से, यह स्पष्ट है कि यह मामला बिना किसी उचित लाइसेंस या सरकार से अनुमोदन के बिना शेयर बाजार में भारी निवेश करने के संबंध में है। कानून के उचित अधिकार के बिना बड़ी राशि के गबन के संबंध में भी यही है। ऐसी परिस्थितियों में, वर्तमान आवेदक के विरुद्ध भारतीय रिजर्व बैंक अधिनियम आदि के तहत अपराध स्पष्ट रूप से बनाए गए हैं । उक्त अपराध शुरू से ही दर्ज नहीं किये जा रहे हैं और मामले की जांच जांच अधिकारियों द्वारा की जा रही थी ...

उपरोक्त टिप्पणियों के साथ, न्यायालय ने संबंधित एसपी को मामले को देखने और अधिकारियों के खिलाफ उचित कार्रवाई करने का निर्देश दिया-

मामले को पुलिस अधीक्षक, शहडोल के समक्ष रखा जाए ताकि वह उस पर गौर करे और संबंधित दोषी कर्मचारियों के खिलाफ उचित कार्रवाई करे, जिन्होंने आरोपी को लाभ पहुंचाने के लिए उचित धाराओं के तहत मामला दर्ज नहीं किया है। कोर्ट ने कहा, आदेश की प्रमाणित प्रति प्राप्त होने की तिथि से 45 दिनों के भीतर अनुपालन कार्रवाई की रिपोर्ट प्रस्तुत की जाए।

आवेदक का प्रतिनिधित्व डॉ. अनुवाद श्रीवास्तव ने किया। श्री संजीव सिंह द्वारा राज्य का प्रतिनिधित्व किया गया। श्री योगेश सोनिक ने आपत्त‌िकर्ता का प्रतिनिधित्व किया।

केस शीर्षक: संजय सिंह बघेल बनाम. मध्य प्रदेश राज्य

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