संदेह और स्वीकारोक्ति पर आधारित मामला: मद्रास हाईकोर्ट ने यूएपीए के तहत आरोपी व्यक्ति को जमानत दी
मद्रास हाईकोर्ट ने हाल ही में व्यक्ति को यह देखते हुए जमानत दी कि उसके खिलाफ पूरा मामला संदेह पर आधारित है और मामला स्वीकारोक्ति बयान के आधार पर बनाया गया है।
जस्टिस एस वैद्यनाथन और जस्टिस एडी जगदीश चंडीरा ने भी कहा कि आरोपी के खिलाफ कोई शिकायत नहीं की गई।
इस मामले में किसी व्यक्ति की ओर से कोई शिकायत नहीं की गई और न ही कोई घायल हुआ। अत: इस न्यायालय की राय में गैर कानूनी गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम के प्रावधानों को केवल अपीलकर्ता को न्यायालय से जमानत मिलने से इनकार करने/देरी करने के लिए शामिल किया गया।
पुलिस ने आरोपी को संदिग्ध परिस्थितियों में गिरफ्तार कर लिया। बाद में उसने कबूल किया कि उसे कुमारसेन को मारने के लिए इंडियन मुस्लिम डेवलपमेंट एसोसिएशन के अध्यक्ष बकरुद्दीन ने कहा था। उक्त कुमारसेन ने अपने बेटे से तिरुवरूर की के राजा मोहम्मद और शाह नाज़मी की बेटी नूर निशा से शादी करने पर आपत्ति जताई थी। चूंकि कुमारसेन ने अपने बेटे के हिंदू धर्म को त्यागने और इस्लाम अपनाने पर आपत्ति जताई थी, इसलिए लड़की के माता-पिता ने कुमारेसन को मारने के लिए बकरुद्दीन की मदद मांगी ताकि उसका बेटा इस्लाम को स्वीकार कर सके। साथ ही भविष्य में दूसरों को इस्लाम स्वीकार करने से रोकने के वालो को स्पष्ट संदेश भेजा जा सके।
अपीलकर्ता के स्वीकारोक्ति के आधार पर चार अन्य को गिरफ्तार किया गया और तीन लंबे आकार के बिल के हुक बरामद किए गए। अपीलकर्ता पर भारतीय दंड संहिता, आपराधिक कानून संशोधन अधिनियम, शस्त्र अधिनियम और गैरकानूनी गतिविधि रोकथाम अधिनियम के तहत अपराध का आरोप लगाया गया। अपीलकर्ता ने तीन बार जमानत के लिए गुहार लगाई और तीनों याचिकाएं खारिज कर दी गईं। वर्तमान अपील तीसरी जमानत याचिका को खारिज किए जाने के खिलाफ दायर की गई।
अपीलकर्ता ने तर्क दिया कि आरोप झूठे हैं और उसे केवल त्रिची में "इंडियन मुस्लिम डेवलपमेंट एसोसिएशन" नाम के व्हाट्सएप ग्रुप में उसकी सक्रिय भागीदारी के लिए गिरफ्तार किया गया। आगे यह प्रस्तुत किया गया कि अपीलकर्ता को बिना किसी समन के आयुक्त के कार्यालय में बुलाया गया और उसे अवैध रूप से हिरासत में लिया गया। उसे क्रूरता पूर्वक परेशान किया गया। अपीलकर्ता ने यह भी कहा कि उसका कोई पूर्ववृत्त नहीं है।
पीड़ित पक्ष ने झूठे आरोप लगाने के मामले से इनकार किया। यह प्रस्तुत किया गया कि यह दिखाने के लिए सामग्री है कि अगर अपीलकर्ता को जमानत दी जाती है तो उसकी सबूतों से छेड़छाड़ करने की संभावना है। पीड़ित पक्ष ने प्रस्तुत किया कि हालांकि अपीलकर्ता का कोई पूर्ववृत्त नहीं है, वर्तमान मामले में शामिल अपराध गंभीर हैं और सांप्रदायिक हिंसा को भड़काने की संभावना से लिप्त है। स्थापित कानून के अनुसार, अपीलकर्ता जघन्य अपराधों में शामिल होने के लिए जमानत का हकदार नहीं है।
अदालत ने कहा कि यूएपीए अधिनियम के अध्याय IV के तहत आने वाले अपराधों के लिए जमानत आवेदन पर विचार करते समय अदालत को पहले राय बनानी होती है कि क्या आरोपी के खिलाफ प्रथम दृष्टया मामला है।
वर्तमान मामले में अदालत ने कहा कि अपीलकर्ता के मकसद के दो उद्देश थे, पहला धर्मांतरण में बाधा को दूर करना और दूसरा लोगों को इस्लाम से न टकराने की धमकी देना। हालांकि ये मकसद किसी भी तरह पूरे नहीं हो सके। अपीलकर्ता की कार्यप्रणाली रहस्यमय हो सकती है कि यदि उसका इरादा कुमारेसन को मारने और संदेश भेजने का था तो यह खुला होता।
केस डायरी और उपलब्ध सामग्री के अवलोकन से अपीलकर्ताओं और अन्य अभियुक्तों को संदेह के आधार पर गिरफ्तार किया गया। हिरासत में रहते हुए उसकी स्वीकारोक्ति को दर्ज किया जा रहा है और अन्य आरोपियों से बिल हुक की बरामदगी के लिए कोई अन्य सामग्री प्राप्त नहीं की जा सकी है। यह इंगित करता है कि अपीलकर्ता और अन्य अभियुक्तों का इरादा कुमारसेन की हत्या करने और जनता और अन्य वर्ग के लोगों के बीच आतंक और भय पैदा करने का था।
अदालत ने यह भी नोट किया कि कोई अपराध नहीं हुआ और कुमारसन द्वारा वास्तव में कोई शिकायत नहीं की गई। पूरा मामला पुलिस अफसर के रूटीन गश्त लगाने के दौरान उसके मन में उठने वाले शक पर आधारित था। इसलिए अदालत आश्वस्त है कि अपीलकर्ता के खिलाफ कोई प्रथम दृष्टया मामला नहीं है।
ऊपर उल्लिखित निर्णयों और केस डायरी के परिशीलन के आलोक में मामले के तथ्यों और परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए अदालत की राय है कि अपीलकर्ता के खिलाफ आरोप "आतंकवादी अधिनियम" की परिभाषा के अंतर्गत नहीं आते हैं। साथ ही यह मानने के लिए कोई उचित आधार नहीं हैं कि अपीलकर्ता के खिलाफ आरोप प्रथम दृष्टया सत्य है।
इस प्रकार, अदालत ने अपीलकर्ता को जमानत दे दी। इसके साथ ही अदालत ने इस बात पर भी जोर दिया कि फैसले में की गई टिप्पणियां केवल जमानत के आवेदन के संबंध में हैं और विशेष अदालत इससे प्रभावित नहीं हो सकती।
केस टाइटल: सदाम हुसैन बनाम राज्य और दूसरा
केस नंबर: आपराधिक अपील नंबर 597/2022
साइटेशन: 2022 लाइव लॉ (मैड) 373
अपीलकर्ता के वकील: एस.एम.ए. जिन्ना
प्रतिवादियों के लिए वकील: बाबू मुथुमीरन, अतिरिक्त लोक अभियोजक (आर 1), आर कार्तिकेयन, एनआईए के लिए विशेष लोक अभियोजक (आर 2)
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