विभागीय कार्यवाही के अभाव में पेंशन लाभ नहीं रोक सकते, भले ही कर्मचारी नियुक्ति के समय योग्य न हो: गुवाहाटी हाईकोर्ट
गुवाहाटी हाईकोर्ट ने हाल ही में माध्यमिक शिक्षा विभाग को ऐसे व्यक्ति के पेंशन लाभों को संसाधित करने का निर्देश दिया, जिसे इस आधार पर वंचित कर दिया गया कि उसके पास नियुक्ति के समय आवश्यक योग्यता नहीं थी।
जस्टिस अचिंत्य मल्ल बुजोर बरुआ ने कहा कि उनके कार्यकाल के दौरान इसकी कोई विभागीय जांच नहीं हुई थी और कदाचार की कार्रवाई 1988 में हुई थी।
जस्टिस अचिंत्य मल्ल बुजोर बरुआ ने कहा,
"मौजूदा मामले में रिकॉर्ड से पता चलता है कि न तो कोई विभागीय कार्यवाही हुई थी और न ही कदाचार की कार्रवाई का कारण चार साल की अवधि के भीतर है, जिससे विभागीय कार्यवाही शुरू की जा सकती है। माना जाता है कि कार्रवाई का कारण वर्ष 1988 में हुआ था,जब याचिकाकर्ता ने आवश्यक योग्यता के बिना सेवा शुरू की थी। ऐसे दृष्टिकोण से हमारा विचार है कि याचिकाकर्ता के पेंशन लाभ को अब असम सेवा (पेंशन) नियम, 1969 के नियम 21 के प्रावधान को लागू करके नहीं रोका जा सकता है।"
याचिकाकर्ता को 25.11.1988 को असम सरकार के प्रारंभिक शिक्षा विभाग के तहत सहायक शिक्षक के रूप में नियुक्त किया गया था। वह 31.08.2019 को कचारीहाट गर्ल्स हाई स्कूल के सहायक शिक्षक के रूप में सेवा से सेवानिवृत्त हुआ। याचिकाकर्ता द्वारा दी गई कुल सेवा अवधि 30 वर्ष 279 दिन बताई गई है।
विभाग ने उन्हें यह कहते हुए पेंशन लाभ से वंचित कर दिया कि उन्होंने एचएसएलसी परीक्षा या कोई अन्य समकक्ष परीक्षा उत्तीर्ण नहीं की है। विभागीय अधिकारियों ने यह विचार किया कि यह सुनिश्चित नहीं किया जा सकता कि याचिकाकर्ता पेंशन पाने योग्य सेवा में था या नहीं। सेवानिवृत्ति के बाद पेंशन का लाभ नहीं मिलने से व्यथित याचिकाकर्ता ने कोर्ट का रुख किया।
न्यायालय ने दर्ज किया कि असम सेवा (पेंशन) नियमों के नियम 21(1) में यह प्रावधान है कि यदि विभागीय या न्यायिक कार्यवाही में पेंशनभोगी को उसकी सेवा की अवधि के दौरान लापरवाही के लिए गंभीर कदाचार का दोषी पाया जाता है तो असम के राज्यपाल के पास पेंशन को रोकने या वापस लेने का अधिकार सुरक्षित है, चाहे वह स्थायी रूप से हो या एक निर्दिष्ट अवधि के लिए।
दूसरे शब्दों में, पेंशनभोगी लाभों को रोकने के लिए विभागीय या न्यायिक कार्यवाही में एक आदेश होने की पूर्ववर्ती शर्तों को पूरा करना होगा, जो यह संकेत दे सकता है कि पेंशनभोगी को गंभीर कदाचार या लापरवाही का दोषी पाया गया है।
इसके अलावा, असम सेवा (पेंशन) नियम, 1969 के नियम 21 के तहत प्रावधान (बी) (ii) में प्रावधान है कि विभागीय कार्यवाही यदि संबंधित व्यक्ति के सेवा में रहते हुए स्थापित नहीं की गई है तो किसी भी घटना के संबंध में नहीं होगी जो विभागीय कार्यवाही की ऐसी संस्था से चार साल पहले हुई हो।
अदालत ने याचिकाकर्ता के रिकॉर्ड का भी अवलोकन किया और कहा कि यह पता चला है कि न तो कोई विभागीय कार्यवाही थी और न ही कदाचार की कार्रवाई का कारण चार साल की अवधि के भीतर है, जिससे विभागीय कार्यवाही शुरू की जा सकती है।
अदालत ने कहा,
"मौजूदा मामले में भले ही यह स्वीकार किया जाता है कि याचिकाकर्ता के पास वर्ष 1988 में अपनी प्रारंभिक नियुक्ति के समय आवश्यक योग्यता नहीं थी, विभागीय कार्यवाही में उसके कदाचार का निष्कर्ष निकालना होगा और आगे इस तरह के कदाचार के लिए विभागीय कार्यवाही शुरू होने से चार साल की अवधि के भीतर कार्रवाई करनी होगी।"
अदालत ने दर्ज किया कि कार्रवाई का कारण 1988 में ही हुआ था जब याचिकाकर्ता ने आवश्यक योग्यता के बिना सेवा में प्रवेश किया था। इसलिए, यह विचार था कि याचिकाकर्ता पेंशन लाभ का हकदार है और तदनुसार रिट की अनुमति दी गई थी।
केस का शीर्षक: सैयद महबूब मजीद बनाम असम राज्य और पांच अन्य
याचिकाकर्ता का प्रतिनिधित्व एडवोकेट एस एस एस रहमान ने किया।
ऑर्डर डाउनलोड करने के लिए यहां क्लिक करें