"अभियोजन पक्ष के गवाहों की इच्छा और मनमानी पर किसी को सलाखों के पीछे नहीं रख सकते" : एमपी हाईकोर्ट ने एनडीपीएस एक्ट के आरोपी को 50 हज़ार रुपए का मुआवज़ा देने का निर्देश दिया

Update: 2021-09-19 11:37 GMT

मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने हाल ही में राज्य सरकार को एनडीपीएस अधिनियम के एक आरोपी को उसके "मौलिक अधिकार के उल्लंघन" के लिए 15 दिनों के भीतर 50,000 / - का भुगतान करने का निर्देश दिया। यह आरोपी जनवरी 2018 से सलाखों के पीछे है और अभियोजन पक्ष अपने गवाहों को ट्रायल के दौरान अदालत के सामने पेश करने में विफल रहा है।

न्यायमूर्ति जीएस अहलूवालिया की पीठ सुनवाई में देरी के आधार पर जयपाल सिंह की 10वीं जमानत याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जब उसने कहा कि राज्य सरकार लगातार तेजी से सुनवाई के आवेदक के मौलिक अधिकार का उल्लंघन कर रही है।

संक्षेप में मामला

आवेदक को एनडीपीएस अधिनियम की धारा 8/20 के तहत अपराध में 5 जनवरी, 2018 को गिरफ्तार किया गया था, हालांकि, जून 2020 तक भी ट्रायल शुरू नहीं हो सका और इसलिए जून 2020 में अदालत ने अभियोजन पक्ष के गवाहों के पेश न होने के कारण याचिकाकर्ता 20,000 / - मुआवजे का आदेश दिया।

अदालत ने दो निरीक्षकों के वेतन से इसे वसूल करने का निर्देश दिया था, हालांकि, अदालत को यह नहीं बताया गया था कि आवेदक जयपाल सिंह को मुआवजे की राशि का भुगतान किया गया या नहीं।

वर्तमान जमानत याचिका दायर करते हुए आवेदक ने कहा कि स्थिति में सुधार नहीं हुआ है और फिर भी अभियोजन पक्ष के गवाह मुकदमे में पेश नहीं हो रहे हैं।

न्यायालय ने इस प्रकार देखा:

"अभियोजन पक्ष मुकदमे के जल्द से जल्द निपटान में दिलचस्पी नहीं रखता और अभियोजन पक्ष का हर गवाह जो पुलिसकर्मी है, ट्रायल को बहुत हल्के में ले रहा है और बिना कोई कारण बताए और कोर्ट की अनुमति के ट्रायल कोर्ट के सामने पेश नहीं हो रहा है।"

यह रेखांकित करते हुए कि अभियोजन पक्ष के गवाहों की इच्छा पर किसी को भी सलाखों के पीछे नहीं रखा जा सकता है, कोर्ट ने यह भी कहा कि

" यदि अभियोजन पक्ष अपने गवाहों को पेश करने की स्थिति में नहीं है तो उन्हें इस पर गंभीरता से विचार करना चाहिए कि उन्हें आरोपी के खिलाफ मुकदमा चलाना चाहिए या नहीं। आरोप पत्र दाखिल करना अभियोजन पक्ष के कर्तव्य का अंत नहीं है। यह सुनिश्चित करना उनका कर्तव्य है कि गवाह बिना किसी चूक के नियमित रूप से ट्रायल कोर्ट के सामने पेश हों ताकि साक्ष्य के टुकड़ों के आधार पर किसी व्यक्ति के भाग्य का फैसला किया जा सके।"

आरोपी को 50 हजार मुआवजे का आदेश देते हुए अदालत ने यह भी निर्देश दिया कि चूंकि पुलिस अधीक्षक, भिंड ट्रायल कोर्ट के समक्ष अपने ही पुलिस गवाहों की उपस्थिति सुनिश्चित करने में बुरी तरह विफल रहे हैं, इसलिए मुआवजे की वसूली पुलिस, भिंड पुलिस अधीक्षक के वेतन से की जाए।

इसके अलावा, राज्य सरकार को उप-निरीक्षक के खिलाफ विभागीय जांच शुरू करने का भी निर्देश दिया गया, जो 15 मार्च, 2021 को समन की तामील के बावजूद ट्रायल कोर्ट के समक्ष पेश नहीं हुए थे।

राज्य सरकार को उस कांस्टेबल के खिलाफ विभागीय जांच शुरू करने का भी निर्देश दिया गया, जिसने विनोद छावई पर जमानती वारंट की तामील नहीं की और न ही वारंट दिया और न ही लौटाया।

अंत में ट्रायल कोर्ट को तीन महीने के भीतर ट्रायल पूरा करने का निर्देश देते हुए मामले को दिन-प्रतिदिन तय करने को कहा गया है।

कोर्ट ने भिंड के पुलिस अधीक्षक का व्यक्तिगत कर्तव्य और जिम्मेदारी भी बना दिया है कि वह यह सुनिश्चित करें कि अभियोजन पक्ष के सभी गवाह ट्रायल कोर्ट द्वारा तय की गई तारीख पर ट्रायल कोर्ट के सामने पेश हों।

केस टाइटल - जयपाल सिंह बनाम मध्य प्रदेश राज्य




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