चार्जशीट को रद्द करने की प्रार्थना पर विचार करते समय अभियुक्त की ओर से पेश बचाव की जांच नहीं कर सकता: इलाहाबाद हाईकोर्ट

Update: 2023-03-06 09:36 GMT

Allahabad High Court

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने हाल ही में एक कहा कि कोर्ट‌ किसी आरोपपत्र को रद्द करने की प्रार्थना पर विचार करते समय उन बचावों की जांच नहीं कर सकती, जिन्हें अब तक अधीनस्थ न्यायालय के समक्ष पेश नहीं किया गया है।

जस्टिस शेखर कुमार यादव की पीठ ने कालिका प्रताप सिंह नामक व्यक्ति द्वारा दायर याचिका पर विचार करने से इनकार करते हुए यह टिप्पणी की। उस व्यक्ति ने अपनी याचिका में एक महिला को कथित रूप से आत्महत्या के लिए उकसाने के आरोप में उसके खिलाफ शुरू की गई आपराधिक कार्यवाही को रद्द करने की मांग की थी।

पीठ ने कहा कि चार्जशीट के स्तर पर, संबंधित अदालत को केवल पुलिस द्वारा जांच के दरमियान एकत्र किए गए दस्तावेजों की जांच करनी है और अभियुक्तों द्वारा कथित रूप से आरोपत अन्य सभी सबूतों की जांच परीक्षण के दरमियान की जाएगी। अभियोजन पक्ष के मामले के अनुसार, आवेदक कालिका की शादी पीड़िता के साथ तय हुई थी और उसने कथित तौर पर दहेज में 24 लाख रुपये लिए थे। उसने कुछ समय तक रिश्ता जारी रखा और बाद में उसने रिश्ता जारी रखने और पीड़िता से शादी करने से इनकार कर दिया।

प्रार्थी के शादी से इनकार करने पर पीड़िता ने जहर खा लिया और बाद में उसकी मौत हो गयी। उसने एक सुसाइड नोट छोड़ा, जिसमें उसने आवेदक के खिलाफ बलात्कार (शादी के झूठे वादे पर शारीरिक संबंध) सहित कई आरोप लगाए।

जांच के बाद, जांच अधिकारी ने आवेदक के खिलाफ कोई मामला नहीं पाया और इसलिए सितंबर 2021 में आवेदक के खिलाफ एक अंतिम रिपोर्ट प्रस्तुत की गई।

इसका विरोध करते हुए, पीड़िता-मृतक की मां ने मामले की आगे की जांच के लिए पुलिस प्राधिकरण के समक्ष एक आवेदन दिया, जिस पर एक जांच का आदेश दिया गया और जांच अधिकारी ने धारा 173 (8) सीआरपीसी के तहत मामले की आगे की जांच की सिफारिश की।

जिसके बाद आवेदक के विरुद्ध मई 2022 में धारा 420, 376,306,406,120-बी आईपीसी और आईटी अधिनियम की धारा 67 एवं डीपी एक्ट की धारा 3/4 के तहत आरोप पत्र प्रस्तुत किया गया, जिस पर अवर न्यायालय ने संज्ञान लिया और अभियुक्त को मुकदमे का सामना करने के लिए सम्मन भेजा गया। साथ ही उसके खिलाफ एनबीडब्ल्यू भी जारी किया गया है।

अब, अभियुक्त ने हाईकोर्ट के समक्ष यह तर्क देते हुए मौजूदा याचिका दायर की कि अगर सहमति से बना शारीरिक संबंध शादी के वास्तविक वादे पर आधारित था, जिसे इसलिए पूरा नहीं किया जा सका क्योंकि आरोपी और उसके परिजनों को पता चला की प‌ीड़िता आपराधिक मामले में शामिल ‌‌‌थी, तो इसे बलात्कार नहीं कहा जा सकता।

आगे प्रस्तुत किया गया कि उकसाने में किसी व्यक्ति को उकसाने या जानबूझकर किसी व्यक्ति को एक काम करने में सहायता करने की एक मानसिक प्रक्रिया शामिल है और अभियुक्त की ओर से आत्महत्या करने के लिए उकसाने या सहायता करने के लिए एक सकारात्मक कार्य के बिना, एक दोष सिद्ध नहीं किया जा सकता है।

यह आगे तर्क दिया गया कि किसी व्यक्ति को आईपीसी की धारा 306 के तहत दोषी ठहराने के लिए अपराध करने के लिए एक स्पष्ट मनःस्थिति होनी चाहिए। दूसरी ओर, राज्य की ओर से उपस्थित एजीए ने तर्क दिया कि आत्महत्या के लिए उकसाने का एक अप्रत्यक्ष कार्य भी आत्महत्या के लिए उकसाने का अपराध होगा।

यह भी तर्क दिया गया था कि सीआरपीसी की धारा 482 के तहत शक्ति के प्रयोग में, न्यायालय शिकायत में आरोप की सत्यता की जांच नहीं करता है, सिवाय असाधारण दुर्लभ मामलों में जहां यह स्पष्ट है कि आरोप तुच्छ हैं या नहीं किसी अपराध का खुलासा नहीं किया गया है।

कोर्ट ने इस पृष्ठभूमि में कहा कि रिकॉर्ड में मौजूद सामग्री के अवलोकन से यह नहीं कहा जा सकता कि आवेदक के खिलाफ कोई अपराध नहीं बनता है।

अदालत ने आगे कहा कि अभियुक्त के वकील की ओर से की गई सभी प्रस्तुतियां तथ्य के विवादित प्रश्न से संबंधित हैं, जिस पर अदालत द्वारा धारा 482 सीआरपीसी के तहत फैसला नहीं किया जा सकता है, क्योंकि इस स्तर पर केवल एक प्रथम दृष्टया मामला देखा गया है।

कोर्ट ने आरोपी के खिलाफ मामले को खारिज़ करने से इनकार करते हुए कहा,

आरोपी ने मृतक को ज़हर लेने के लिए उकसाया या नहीं, इस स्तर पर विचार नहीं किया जा सकता। अन्य तथ्य जो प्रासंगिक हैं कि अभियुक्त ने मृतक के साथ दोस्ती की और उसके साथ कुछ समय के लिए संबंध बनाए और अचानक, वह रिश्ते से अलग हो गया, ये सभी ऐसे तथ्य हैं जिनसे पीड़िता को गंभीर अवसाद हो सकता है या रिश्ता टूटना उसके लिए इतनी शर्मिंदगी का कारण बना सकता है कि उसने जहर खाने के अलावा और कोई चारा न सोचा हो।

यह ऐसा मामला नहीं है जहां आरोपी पर केवल शादी से इनकार करने पर धारा 306 के तहत अपराध का आरोप लगाया गया है, बल्कि यहां आवेदक ने पीड़िता के साथ पहले से संबंध बनाए थे। उसने काफी समय तक संबंध बनाए रखा और बाद में उसने संबंध जारी रखने और पीड़िता से शादी करने से इनकार कर दिया। क्या यह मृतक के साथ सहमति से या बिना सहमति के संबंध में प्रवेश करने का मामला है या क्या उसने कोई सक्रिय प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष भूमिका निभाई है जो मृतक को आत्महत्या करने के लिए प्रेरित करती है, इस चरण पर गौर नहीं किया जा सकता है।"

केस टाइटल- कालिका प्रताप सिंह बनाम स्टेट ऑफ यूपी और अन्‍य [Appl U/S 482 No. - 33349 of 2022]

केस साइटेशन: 2023 लाइवलॉ (एबी) 85

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