"50 साल बाद विधवा को उसके घर से बाहर निकालने के लिए पार्टी नहीं बना जा सकता, न्याय कहां है?": बॉम्बे हाईकोर्ट
बॉम्बे हाईकोर्ट ने महाराष्ट्र हाउसिंग एंड डेवलपमेंट अथॉरिटी (MHADA) से कहा वह उस बूढ़ी विधवा महिला को संभवतः उसके 50 साल के कानूनी रूप से कब्जे वाले घर से बेदखल करने के लिए पक्षकार नहीं हो सकता। इसके साथ ही हाईकोर्ट ने म्हाडा को 160 वर्ग के परिसर में किरायेदार/रहने वाले के रूप में उसका नाम जोड़ने का निर्देश भी दिया।
जस्टिस जीएस पटेल और जस्टिस एसजी डिगे की खंडपीठ ने कहा कि एक तरफ तो म्हाडा के पास अवैध रूप से घुसपैठियों को भी अस्थायी रूप से समायोजित करने की नीति है, लेकिन वर्तमान मामले में वे कानूनी रूप से परिसर में रहने वाली बूढ़ी महिला को बेदखल करने के अपने अधिकारों को आरक्षित करने पर जोर दे रहे हैं।
खंडपीठ ने कहा,
"हमें पूछना होगा, इस तरह के दृष्टिकोण में न्याय कहां है? अगर हम म्हाडा के रुख को स्वीकार करते हैं तो हम उन्हें अन्याय करने का अधिकार देंगे।”
मुंबई के कलाचौकी में 160 वर्ग फुट के कमरे में रहने वाले याचिकाकर्ता ने म्हाडा द्वारा बेदखली से सुरक्षा की मांग करते हुए हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया। उसने कई आवेदन किए, आखिरी बार 10 दिसंबर, 2019 को आवेदन दिया, लेकिन कोई जवाब नहीं मिला।
ए़़डवोकेट हर्षल मिराशी द्वारा प्रस्तुत कि 1960 में मूल किराएदार रघुनाथ चव्हाण था, जिसने तीस साल पहले महिला के पति के चाचा के नाम पर फ्लैट स्थानांतरित किया। जब महिला 1984 में अपनी शादी के बाद से परिसर में रह रही थी, 1994 में उस्के पति के चाचा ने महिला के पति पति किशन येवाले के पक्ष में हलफनामा और फ्लैट के लिए क्षतिपूर्ति जारी की। म्हाडा ने अपने रिकॉर्ड में फ्लैट में दंपति का कब्जा भी दर्ज किया।
महिला के पति ने उसके नाम पर फ्लैट के हस्तांतरण के लिए दो आवेदन दायर किए, लेकिन म्हाडा ने कहा कि उनके पास कुछ दस्तावेजों की कमी है। उसके द्वारा 2019 में एक और आवेदन दायर किया गया, लेकिन कोई जवाब नहीं मिला।
म्हाडा का आधिकारिक जवाब था कि वे आवेदन पर विचार करेंगे।
अदालत ने आश्चर्य जताया कि कैसे म्हाडा 40-50 वर्षों से निष्क्रिय रहा और अब वह उस गरीब महिला को उस कमरे से बेदखल करने का अधिकार सुरक्षित रखना चाहता है, जिसमें वह लगभग आधी सदी से रह रही है।
खंडपीठ ने कहा,
“इसकी अनुमति देना निश्चित रूप से अन्यायपूर्ण होगा … हमने म्हाडा को यह कहते सुना कि यह किसी प्रकार के विवेक का प्रयोग करेगा और अब लगभग आधी शताब्दी से परिसर में रहने वाली महिला को बेदखल कर सड़क पर फेंक सकता है। हम ऐसी किसी कार्यकारी या प्रशासनिक कार्रवाई में खुद को पार्टी बनने की अनुमति देने से इनकार करते हैं।'
अतिक्रमियों को भी स्थायी वैकल्पिक आवास देने की म्हाडा की नीति पर ध्यान देते हुए अदालत ने कहा कि इसमें कहा गया कि म्हाडा यह दिखाने में विफल रहा कि महिला की हरकतें कैसे अवैध हैं।
अदालत ने कहा,
"तो एक तरफ म्हाडा अतिचार जैसी स्पष्ट अवैधताओं को रिवॉर्ड करता है, लेकिन दूसरी तरफ उन वास्तविक कब्जेदारों के खिलाफ बेदखली करना चाहता है, जिनके कब्जे म्हाडा के रिकॉर्ड पर भी दर्ज हैं और जिनके खिलाफ म्हाडा ने 50 वर्षों से कोई कार्रवाई नहीं की है।"
बेंच ने म्हाडा अधिकारियों को चेतावनी दी कि अगली बार अगर वे नागरिकों के खिलाफ इस तरह के अनुचित तरीके से कार्य करते पाए गए तो जुर्माने की राशि अदालत के असंतोष की सीमा को दर्शाएगी।
अंत में अदालत ने म्हाडा को निर्देश दिया कि वह शशिकला किशन येवाले को कमरा नंबर 171, चौथी मंजिल, सीता सदन, दत्तात्रेय लाड मार्ग, कालाचौकी, मुंबई 400 033 के वैध किराएदार / रहने वाले के रूप में दिखाने के लिए अपने रिकॉर्ड को अपडेट और संशोधित करें।
केस टाइटल: शशिकला किशन येवाले बनाम महाराष्ट्र राज्य और अन्य
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