विवाह प्रमाणपत्र की सत्यता का निर्धारण असाधारण रिट क्षेत्राधिकार के तहत नहीं किया जा सकता, घोषणा के लिए सक्षम कोर्ट से संपर्क करें: पटना हाईकोर्ट
पटना हाईकोर्ट ने एक फैसले में माना कि विशेष विवाह अधिनियम के तहत प्राप्त विवाह प्रमाण पत्र, इस तथ्य के बिना कि इसे विशेष विवाह अधिनियम के चैप्टर III के तहत प्रदान किए गए विवाह प्रमाणपत्र पुस्तक में अंतत: दर्ज किया गया था, केवल "विवाह का प्रमाण" है " और "अधिनियम के अनुसार विवाह का प्रमाण" नहीं।
जस्टिस पूर्णेंदु सिंह की बेंच ने कहा,
"विशेष विवाह अधिनियम, 1954 की धारा 18 में कहा गया है कि जहां विवाह प्रमाण पत्र को विशेष विवाह अधिनियम के चैप्टर III के तहत विवाह प्रमाणपत्र पुस्तक में अंतिम रूप से दर्ज किया गया है, ऐसी प्रविष्टि की तारीख से विवाह को अधिनियम के तहत संपन्न विवाह माना जाएगा ... विवाह का पंजीकरण धारा 16 के तहत होता है और तदनुसार इसे अधिनियम के चैप्टर III के तहत विवाह प्रमाणपत्र पुस्तक में दर्ज किया जाना चाहिए और विवाह प्रमाणपत्र पुस्तक में प्रविष्टि की तिथि से, विवाह को अधिनियम के तहत किया गया विवाह माना जाता है और उसके बाद ही प्रमाण पत्र इस तथ्य का प्रमाण होगा कि अधिनियम के तहत याचिकाकर्ता और दिवंगत प्रेमा देवी के बीच विवाह संपन्न हुआ है, जैसा कि अधिनियम की धारा 13 की उप-धारा '2' से भी स्पष्ट है।
अधिनियम के चैप्टर II की धारा 13 के तहत प्रमाण पत्र जारी किया गया है या नहीं, इस बारे में स्पष्ट प्रावधान के अभाव में रिट याचिका के एनेक्जर-1 में दिए गए विवाह प्रमाण पत्र को केवल साक्ष्य के रूप में लिया जा सकता है न कि अधिनियम के अनुसार विवाह के प्रमाण के रूप में। ”
हाईकोर्ट ने बिहार राज्य विद्युत बोर्ड द्वारा पेंशन देने के याचिकाकर्ता के दावे को खारिज करने के आदेश को रद्द करने की मांग वाली याचिका पर अपने फैसले में यह टिप्पणी की। याचिकाकर्ता गंगा राम पासवान अपनी पत्नी की मौत के बाद फैमिली पेंशन की मांग कर रहे हैं।
पृष्ठभूमि
श्रीमती प्रेमा देवी (मृतक) का विवाह बिहार राज्य विद्युत बोर्ड (बीएसईबी) के कर्मचारी राम प्रकाश चौधरी से हुआ था। 30.04.1993 को राम प्रकाश चौधरी की मृत्यु हो गई, तो प्रेमा देवी को 16.11.1994 को अनुकंपा के आधार पर चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी के रूप में नियुक्त किया गया।
पासवान का दावा है कि उन्होंने 27.09.1993 को प्रेमा देवी से विवाह किया और विवाह प्रमाणपत्र प्राप्त किया, उसके बाद वे पति-पत्नी के रूप में रहने लगे। प्रेमा देवी की 07.01.1995 को मृत्यु हो गई। उनके पीछे याचिकाकर्ता और एक नाबालिग पुत्र, आलोक कुमार पासवान उर्फ गांधी उनके कानूनी उत्तराधिकारी और प्रतिनिधि के रूप में रह गए।
स्वर्गीय प्रेमा देवी की मृत्यु के बाद, याचिकाकर्ता ने बीएसईबी को उसके लिए देय मृत्यु सह सेवानिवृत्ति लाभों की पूरी बकाया राशि का भुगतान करने के निर्देश के लिए एक याचिका दायर की, जिसके लंबित रहने के दरमियान उत्तराधिकार प्रमाण पत्र के आधार पर याचिकाकर्ता को लगभग सभी देय राशि का भुगतान कर दिया गया। हालांकि, कुछ बकायों और पारिवारिक पेंशन के दावे पर विचार नहीं किया गया।
हाईकोर्ट ने प्रतिवादी बोर्ड को निम्नानुसार निर्देशित करते हुए उस रिट याचिका का निस्तारण किया,
"हालांकि, कंपनी के विद्वान वकील की ओर से कोर्ट को दिए गए आश्वासन के बाद प्रतिवादी कंपनी को यह निर्देश देते हुए कि अधिकतम 15 जनवरी, 2015 तक याचिकाकर्ता को उसकी पत्नी की मृत्यु के कारण शेष बकाया राशि का भुगतान कर दिया जाए, मामले को निस्तारित किया जा रहा है। यदि कंपनी अपनी प्रतिबद्धता को पूरा करने में विफल रहती है तो याचिकाकर्ता वर्तमान कार्यवाही में ही एक आवेदन दायर करने के लिए स्वतंत्र होगा, और उचित आदेश पारित करने के लिए उक्त तथ्य को न्यायालय के ध्यान में लाएगा।”
निर्णय
याचिकाकर्ता की ओर से प्रस्तुत विवाह और उत्तराधिकार प्रमाण पत्र की वैधता की पड़ताल करने से इनकार करते हुए, पीठ ने कहा कि वह इस तथ्य के विवादित प्रश्न की पड़ताल नहीं कर सकती है कि क्या विवाह संपन्न हुआ था या नहीं।
अदालत ने कहा, "याचिकाकर्ता ने विवाह प्रमाण पत्र और उत्तराधिकार प्रमाण पत्र की जेरोक्स प्रतियां संलग्न की हैं, जिनकी सत्यता इस न्यायालय द्वारा असाधारण रिट क्षेत्राधिकार में सुनिश्चित नहीं की जा सकती है।"
अदालत ने कहा कि भारतीय उत्तराधिकार अधिनियम, 1925 की धारा 372 के तहत कार्यवाही प्रकृति में सारांश होने के कारण, इस तरह की जांच में आवश्यक सबूत के मानक का पालन किया जाता है या नहीं, इसे एक सक्षम सिविल कोर्ट द्वारा देखा जाना चाहिए।
"हाईकोर्ट के पास उत्तराधिकार प्रमाणपत्र के साथ हस्तक्षेप करने का कोई अधिकार क्षेत्र नहीं है, जिसके आधार पर याचिकाकर्ता को सेवानिवृत्त देय राशि का भुगतान किया गया है।"
अदालत ने कहा कि उत्तराधिकार प्रमाण पत्र का अनुदान स्वामित्व या मृतक की संपत्ति से संबंधित विशेषाधिकार क्या है या क्या नहीं है, के सवाल का निर्धारण नहीं करता है।
यह केवल उस पार्टी को, जिसे प्रमाणपत्र दिया गया है, को मृतक से संबंधित किसी भी ऋण या प्रतिभूतियों को इकट्ठा करने में सक्षम बनाता है।
पीठ ने कहा, "इस प्रकार, मृतक के कानूनी प्रतिनिधि को देय पारिवारिक पेंशन के लिए उत्तराधिकार प्रमाणपत्र की आवश्यकता नहीं है....।"
भारतीय उत्तराधिकार अधिनियम, 1925 की धारा 214 का उल्लेख करते हुए, अदालत ने कहा, "पारिवारिक पेंशन एक स्वतंत्र दावा है और मृत कर्मचारी के माध्यम से इसका दावा नहीं किया जा सकता है। पेंशन कर्ज नहीं है, बल्कि अब इसे संपत्ति मान लिया गया है।"
क्या याचिकाकर्ता पारिवारिक पेंशन पाने का हकदार है?
पीठ ने कहा कि बोर्ड ने कभी भी याचिकाकर्ता को मृत कर्मचारी के पति के रूप में मान्यता नहीं दी और विवाह प्रमाण पत्र के अलावा ऐसी मान्यता के लिए कोई सबूत नहीं है, जिस पर मृतक कर्मचारी के हस्ताक्षर भी मौजूद हों।
अदालत ने कहा, "बच्चे का पितृत्व यह साबित नहीं करेगा कि शादी हुई थी क्योंकि पति और पत्नी के बीच सहवास प्रतिवादियो की ओर से उठाई गई मुख्य आपत्ति है।"
यह इंगित करते हुए कि याचिकाकर्ता अदालत के समक्ष यह दिखाने के लिए संतोषजनक सबूत पेश करने में सक्षम नहीं था कि उसकी शादी 27.09.1993 को विशेष विवाह अधिनियम के तहत हुई थी और यह कि उनके अवयस्क पुत्र के नैसर्गिक अभिभावक के आधार पर उनके दावे को भी बोर्ड द्वारा अस्वीकार कर दिया गया था, जिसमें हाईकोर्ट द्वारा भी हस्तक्षेप नहीं किया गया था, पीठ ने कहा, "उपरोक्त स्वीकृत तथ्यों के आधार पर भी, परिवार पेंशन का दावा करने के लिए वर्तमान रिट आवेदन में याचिकाकर्ता द्वारा मांगी गई राहत टिकाऊ नहीं है।"
खंडपीठ ने कहा,
"याचिकाकर्ता का अपनी पत्नी (मृत कर्मचारी) के साथ विशेष विवाह अधिनियम, 1954 के तहत संलग्न विवाह प्रमाण पत्र की प्रति के आधार पर विवाह करने का दावा, और बच्चे की वैधता का विवादित मुद्दा जो कथित विवाह के पहले ही पैदा हुआ था तथ्यों का विवादित प्रश्न है और इसे केवल एक सक्षम दीवानी अदालत द्वारा ही निपटाया जा सकता है।"
याचिकाकर्ता को स्वर्गीय प्रेमा देवी के साथ अपनी शादी के संबंध में घोषणा के लिए सक्षम न्यायालय का दरवाजा खटखटाने की स्वतंत्रता देते हुए, अदालत ने कहा कि सफल होने पर वह परिवार पेंशन के भुगतान के लिए बोर्ड से संपर्क कर सकती है।
हालांकि, अदालत ने यह भी कहा कि यदि विवाह फर्जी पाया जाता है, तो बोर्ड कानून के अनुसार याचिकाकर्ता को मृत्यु सह सेवानिवृत्ति देय राशि के रूप में पहले से भुगतान की गई राशि की वसूली कर सकता है।
केस टाइटल: गंगा राम पासवान बनाम चैयरमैन, बिहार राज्य विद्युत बोर्ड