कलकत्ता हाईकोर्ट ने यौनकर्मियों के लिए पर्याप्त राशन और वित्तीय सहायता की मांग वाली याचिका पर राज्य सरकार से जवाब मांगा
कलकत्ता हाईकोर्ट ने मंगलवार को पश्चिम बंगाल में यौनकर्मियों की दुर्दशा को उजागर करने वाली एक जनहित याचिका (पीआईएल) पर राज्य सरकार को नोटिस जारी किया।
ये यौनकर्मी मौजूदा COVID-19 महामारी के कारण गंभीर वित्तीय संकट का सामना कर रही हैं।
याचिका में कहा गया कि राज्य में यौनकर्मियों के पास राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम, 2013 के प्रावधानों के तहत आवश्यक पर्याप्त राशन नहीं है।
इसके परिणामस्वरूप, संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत उनके जीवन के मौलिक अधिकार का उल्लंघन किया जा रहा है।
कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश राजेश बिंदल और न्यायमूर्ति राजर्षि भारद्वाज की पीठ ने महाधिवक्ता किशोर दत्ता को इस संबंध में 15 सितंबर तक हलफनामा दाखिल करने का निर्देश दिया।
इसके अलावा, बेंच ने राज्य को यह सुनिश्चित करने का निर्देश दिया कि राज्य में यौनकर्मियों के पास पहचान पत्र हैं या नहीं, ताकि वे विभिन्न सरकारी योजनाओं के लिए पात्र हो सकें।
पीठ ने कहा कि इस संबंध में कानूनी सेवा प्राधिकरण से भी मदद मांगी जा सकती है।
वर्तमान याचिका को 15 अगस्त, 2021 को वाटगंज रेड लाइट क्षेत्र में की गई एक तथ्यान्वेषी जांच के अनुसार स्थानांतरित किया गया था।
याचिकाकर्ता ने अदालत के ध्यान में लाया कि वर्तमान में यौनकर्मियों को प्रदान किया जा रहा खाद्यान्न पोषण की दृष्टि से अपर्याप्त है, जिसके कारण यौनकर्मियों में गंभीर कुपोषण है। इसके अलावा, तथ्य खोज मिशन के दौरान यह भी पाया गया कि वाटगंज क्षेत्र में संबंधित यौनकर्मियों को एकीकृत बाल विकास सेवा (आईसीडीएस) योजना के तहत आंगनवाड़ियों से पौष्टिक खाद्य पदार्थों से वंचित किया जा रहा है।
याचिका में आगे कहा गया,
"वाटगंज रेडलाइट एरिया में छह महीने की गर्भवती महिलाएं और स्तनपान कराने वाली माताओं के साथ कई बच्चे हैं, जिन्हें भारत सरकार के पूरक पोषण कार्यक्रम के तहत स्थानीय आंगनवाड़ी से पौष्टिक खाद्य पदार्थों के अपने अधिकार से वंचित किया जा रहा है। 3-6 वर्ष की आयु के बच्चे आंगनबाड़ियों में प्री-स्कूल शिक्षा के हकदार हैं, मगर इन बच्चों को भी शिक्षा से वंचित किया जा रहा है।"
याचिकाकर्ता ने वर्तमान महामारी के परिणामस्वरूप चल रहे वित्तीय संकट से निपटने के लिए संबंधित राज्य के अधिकारियों को राज्य में संबंधित यौनकर्मियों के बैंक खातों में धन हस्तांतरित करके पर्याप्त वित्तीय सहायता प्रदान करने का निर्देश दी मांग की।
याचिकाकर्ता यदि यौनकर्मियों के बैंक खाते नहीं हैं, तो ऐसे बैंक खाते खोलने के लिए राज्य की सहायता दिलाए जाने की भी मांगी गई।
इसके अलावा, याचिका में एक समिति के गठन के लिए प्रार्थना की गई, जिसमें यौनकर्मियों के कल्याण के लिए काम करने का अनुभव रखने वाले विशेषज्ञ सदस्य शामिल हों, ताकि भोजन की अनुपलब्धता, राशन और रहने वाले यौनकर्मियों के आर्थिक निर्वाह से संबंधित संकट की स्थिति की पहचान, मूल्यांकन और आकलन किया जा सके।
मंगलवार को महाधिवक्ता किशोर दत्ता ने अदालत को सूचित किया कि राज्य सरकार ने इस संबंध में पहले ही दिशा-निर्देश तैयार कर लिए हैं और विभिन्न सरकारी योजनाओं के तहत यौनकर्मियों के साथ-साथ ट्रांसजेंडरों को भोजन कूपन के माध्यम से राशन प्रदान किया जा रहा है। इसलिए उन्होंने जवाब दाखिल करने के लिए कोर्ट से अनुमति मांगी।
महाधिवक्ता ने न्यायालय के ध्यान में यह भी लाया कि सुप्रीम कोर्ट पहले से ही इसी तरह की याचिका पर फैसला सुना चुका है। तदनुसार राज्य सरकारों को राष्ट्रीय एड्स नियंत्रण संगठन (NACO) द्वारा तैयार मानक संचालन प्रक्रिया का पालन करने और यौनकर्मियों को सूखे राशन का वितरण शुरू करने का निर्देश दिया था।
एजी किशोर दत्ता ने आगे कहा,
इसके अलावा, राज्य सरकारों को राशन वितरण के लिए योजनाओं के कार्यान्वयन से संबंधित अनुपालन रिपोर्ट दाखिल करने का भी निर्देश दिया गया था।
उठाई गई चिंताओं को ध्यान में रखते हुए बेंच ने राज्य सरकार को चावल और गेहूं के अलावा यौनकर्मियों को दाल उपलब्ध कराने का निर्देश देते हुए मामले को स्थगित कर दिया।
इसके साथ ही कोर्ट द्वारा राज्य सरकार को यह पता लगाने का भी निर्देश दिया गया कि क्या इस तरह के सरकारी लाभों का लाभ उठाने के लिए पहचान प्रमाण दिखाए जाने की आवश्यकता है।
मामले में याचिकाकर्ता का प्रतिनिधित्व एडवोकेट जोवेरिया सबा ने किया।
केस शीर्षक: ऐश्वर्या अधिकारी बनाम पश्चिम बंगाल राज्य