कलकत्ता हाईकोर्ट ने सरकार को राज्य में अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति अधिनियम के तहत लंबित मामलों की संख्या का खुलासा करने को कहा

Update: 2022-02-01 05:25 GMT

कलकत्ता हाईकोर्ट 

कलकत्ता हाईकोर्ट ने सोमवार को राज्य सरकार के साथ-साथ हाईकोर्ट को अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989 (एससी / एसटी अधिनियम) के तहत राज्य में 31 जनवरी, 2022 तक लंबित मामलों की मौजूदा संख्या का खुलासा करते हुए एक हलफनामा दायर करने का निर्देश दिया।

चीफ जस्टिस प्रकाश श्रीवास्तव और जस्टिस राजर्षि भारद्वाज की पीठ एक जनहित याचिका (पीआईएल) पर सुनवाई कर रही थी। इस याचिका में आरोप लगाया गया कि अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति समुदाय के गरीब सदस्यों की भूमि को बदमाशों द्वारा जबरन जब्त किया जा रहा है।

याचिकाकर्ता की ओर से पेश अधिवक्ता देबज्योति बसु ने पीठ को अवगत कराया कि एससी/एसटी समुदाय के गरीब सदस्यों की जमीन हड़पने की सामाजिक प्रवृत्ति प्रतीत होती है और ऐसे मामलों में पुलिस अधिकारियों की अक्सर मिलीभगत होती है। उन्होंने आगे कहा कि जब ऐसे पीड़ित एससी/एसटी सदस्य एफआईआर और शिकायत दर्ज करने के लिए पुलिस अधिकारियों से संपर्क करते हैं तो अधिकारियों द्वारा ऐसे अनुरोधों पर विचार नहीं किया जाता है।

याचिकाकर्ता ने आगे तर्क दिया कि राज्य सरकार एससी/एसटी अधिनियम की धारा 21 के तहत अपने दायित्वों का पालन करने में विफल रही है। अधिनियम की धारा 18 राज्य सरकार को अधिनियम के प्रभावी कार्यान्वयन के लिए आवश्यक उपाय करने का आदेश देती है।

इसके अलावा, हाईकोर्ट प्रशासन (प्रतिवादी छह) की ओर से पेश अधिवक्ता सैकत बनर्जी ने आगे कहा कि राज्य सरकार ने 1989 से एससी/एसटी अधिनियम के तहत लंबित मामलों को निर्धारित करने के लिए कोई अभ्यास नहीं किया है।

तदनुसार, बेंच ने कहा,

"राज्य के महाधिवक्ता के साथ-साथ प्रतिवादी के वकील को भी 31 जनवरी, 2022 तक अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989 के तहत लंबित मामलों के आंकड़ों के संबंध में हलफनामा दायर करने का निर्देश दिया जाता है।"

इसके बाद मामले को अगली सुनवाई के लिए 29 मार्च को पोस्ट कर दिया गया।

केस शीर्षक: थडियस लकड़ा और अन्य बनाम पश्चिम बंगाल राज्य और अन्य

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