कलकत्ता हाईकोर्ट में जज और वकील के बीच तीखी बहस, जज ने कहा आप जैसे बदमाश से निपटना जानता हूं
कलकत्ता हाईकोर्ट के जज जस्टिस अभिजीत गंगोपाध्याय और वकीलों के बीच गुरुवार को अभूतपूर्व घटनाक्रम में तीखी नोकझोंक देखने को मिली। यह घटनाक्रम तब सामने आया जब जस्टिस गंगोपाध्याय ने अदालत में मौजूद पत्रकारों को पश्चिम बंगाल के सरकारी स्कूल में शिक्षकों की अवैध नियुक्ति से संबंधित सुनवाई की वीडियो रिकॉर्डिंग करने की अनुमति दी।
जस्टिस गंगोपाध्याय ने कथित रूप से गिरफ्तार तृणमूल कांग्रेस नेता अनुब्रत मंडल की बेटी सहित अवैध रूप से नियुक्त छह शिक्षकों को गुरुवार को व्यक्तिगत रूप से अदालत में पेश होने का निर्देश दिया। मामले में आरोप लगाया गया कि उसे और पांच अन्य को शिक्षक पात्रता परीक्षा (टीईटी) पास किए बिना प्राथमिक विद्यालयों में नियुक्त किया गया था। याचिकाकर्ताओं ने दावा किया कि सुकन्या सहित मंडल से जुड़े कुछ लोगों को शिक्षक के रूप में नौकरी दी गई। सुकन्या कथित तौर पर बीरभूम के कालिकापुर प्राथमिक विद्यालय में कभी नहीं गई, जहां वह कार्यरत थीं।
टीएमसी के पार्टी के बीरभूम जिला अध्यक्ष मंडल डिवीजन बेंच के उन्हें अग्रिम जमानत देने से इनकार करने के बाद कथित पशु तस्करी मामले में सीबीआई की हिरासत में हैं।
जस्टिस गंगोपाध्याय ने पहले पश्चिम बंगाल सरकार द्वारा प्रायोजित स्कूलों में शिक्षण और गैर-शिक्षण कर्मचारियों की नियुक्ति में कथित अनियमितताओं के कई मामलों में सीबीआई जांच का आदेश दिया था।
जस्टिस गंगोपाध्याय ने गुरुवार को सुनवाई की शुरुआत में खुली अदालत में कहा कि वह पत्रकारों को स्थापित प्रथा के विपरीत अपने फोन पर मामले की कार्यवाही फिल्माने की अनुमति देंगे। उल्लेखनीय है कि वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग पर सुप्रीम कोर्ट के नियमों के अनुसार, अदालती कार्यवाही की रिकॉर्डिंग प्रतिबंधित है, जो यह निर्धारित करती है कि लाइव-स्ट्रीमिंग का कोई भी अनधिकृत उपयोग भारतीय कॉपीराइट अधिनियम, 1957, सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 और अन्य प्रावधानों के तहत दंडनीय होगा।
हालांकि, कोर्ट रूम में मौजूद कई वकीलों ने इस पर आपत्ति जताई। आपत्ति जातने वाले वकीलों में सीनियर एडवोकेट और कांग्रेस के पूर्व विधायक अरुणव घोष भी शामिल रहे। उन्होंने जज से कोर्ट रूम को "बाजार में नहीं बदलने" का आग्रह किया। मामले में सुकन्या मंडल का प्रतिनिधित्व कर रहे सीनियर वकील कलकत्ता हाईकोर्ट बार एसोसिएशन के अध्यक्ष भी हैं।
न्यायाधीश को संबोधित करते हुए सीनियर वकील ने यह भी टिप्पणी की कि ऐसी अफवाहें हैं कि पत्रकार जस्टिस गंगोपाध्याय के चैंबर में उनसे मिलने जाते हैं।
जस्टिस गंगोपाध्याय ने आरोप का जवाब देते हुए कहा,
"हां, वे मेरे चैंबर में जाते हैं। तो, इसमें आपत्तिजनक बात क्या है?"
जज ने इस पर गंभीर आपत्ति जताते हुए यह भी कहा कि वह सीनियर एडवोकेट अरुणव घोष पर अदालत की अवमानना का आरोप लगाएंगे और उन्हें जेल भी भेजेंगे।
इस पर घोष ने टिप्पणी की,
"मुझे पता है, माई लॉर्ड, एक न्यायाधीश के साथ कैसे व्यवहार करना है..आप कानून नहीं जानते।"
जस्टिस गंगोपाध्याय ने पलटवार करते हुए कहा,
"मैं यह भी जानता हूं कि आप जैसे गुंडे से कैसे निपटना है।"
इस बिंदु पर अन्य वकील ने हस्तक्षेप किया और दावा किया कि उसने पिछले छह वर्षों में न्यायाधीश को एक भी फैसला सुनाते नहीं देखा।
इस पर जस्टिस गंगोपाध्याय ने कहा,
''एक भी फैसला नहीं सुनाया? आपने कुछ पढ़ा नहीं है। आप तथ्यों को लेना नहीं जानते।''
जस्टिस गंगोपाध्याय ने आगे वकीलों को कोर्ट रूम में "असंसदीय भाषा" का उपयोग करने की चेतावनी दी और दोहराया कि वह वकीलों के खिलाफ अदालत की अवमानना के आरोप लगाएंगे। इसके जवाब में वकीलों ने दुस्साहसिक टिप्पणी की कि न्यायाधीश को आगे बढ़ना चाहिए और उनके खिलाफ अवमानना का नियम जारी करना चाहिए। फिर मामले को न्यायिक रूप से देखा जा सकता है।
तीन आरोपियों का प्रतिनिधित्व करने वाले अन्य वकील ने भी न्यायाधीश की टिप्पणी पर आपत्ति जताई।
जस्टिस गंगोपाध्याय ने वकील को संबोधित करते हुए आगे टिप्पणी की,
"मैंने पहले ही तय कर लिया है कि आज क्या आदेश होगा। मुझे अपनी लाल-लाल आंखें मत दिखाओ"।
हैरानी की बात यह है कि उत्तेजित वकीलों ने एक स्वर में जवाब दिया,
"हम दिखाएंगे।"
जस्टिस गंगोपाध्याय ने पलटवार करते हुए कहा,
"अगर आप दिखाएंगे तो मैं आपके खिलाफ अवमानना की कार्यवाही करूंगा।"
इसके बाद जज आदेश देने के लिए आगे बढ़े।
सीनियर एडवोकेट बिकाश रंजन भट्टाचार्य ने न्यायाधीश से मामले को केवल गुण-दोष के आधार पर तय करने का अनुरोध करते हुए कहा,
"मामले को गुण-दोष के आधार पर लिया जाए।"
इसके बाद न्यायाधीश ने मामले को आगे की सुनवाई के लिए एक सितंबर को सूचीबद्ध किया।
जस्टिस गंगोपाध्याय पहले भी कई विवादों में रहे हैं, जब उन्होंने हाईकोर्ट की एक खंडपीठ पर गंभीर आपत्ति जताते हुए तीखा आदेश पारित किया था। इस आदेश में उन्हें सरकारी स्कूलों में ग्रुप-डी के कर्मचारी मामले में 'सीलबंद लिफाफे' में दस्तावेजों को स्वीकार करने का निर्देश दिया गया था।
इस पर अपनी नाराजगी दर्ज करते हुए न्यायाधीश ने कहा था,
"मुझे नहीं पता कि यह अदालत इस कार्यवाही में सीलबंद लिफाफे के साथ क्या करेगी, जब इस अपील अदालत के हाथ उपरोक्त अवलोकन से बंधे हैं। संपत्ति के उक्त हलफनामे के माध्यम से जाने पर मुझे परिणामी कदम उठाने से रोका गया है।"