नौकरशाह, स्वतंत्रता सेनानियों द्वारा नि: स्वार्थ सेवा को पहचान नहीं दे रहे; ऐसे मामलों में नौकरशाही विफलता को स्वीकार नहीं किया जा सकता: मद्रास उच्च न्यायालय

Update: 2020-11-24 05:35 GMT

Madras High Court

जिला कलेक्टर और तहसीलदार (कृष्णगिरि जिले) द्वारा एक 97 वर्षीय स्वतंत्रता सेनानी की याचिका पर विचार नहीं करने के चलते, मद्रास उच्च न्यायालय ने सोमवार (23 नवंबर) को टिप्पणी करते हुए कहा कि,

"यदि वे (स्वतंत्रता सेनानियों) नहीं होते तो न तो कलेक्टर और न ही तहसीलदार और हम में से कोई भी आजादी और मूल्यवान जीवन का आनंद न ले पाता, जैसा कि हम आज आनंद ले रहे हैं।"

न्यायमूर्ति सुरेश कुमार की खंडपीठ ने आगे यह भी कहा कि,

"वे (जिला कलेक्टर और तहसीलदार, कृष्णगिरि जिला) ने 97 वर्षीय स्वतंत्रता सेनानी की याचिका पर विचार करने का मन नहीं बनाया, जो नौकरशाहों की सोच को दर्शाता है कि वे राष्ट्र की स्वतंत्रता के लिए स्वतंत्रता सेनानियों द्वारा प्रदान की गई निस्वार्थ सेवा को पहचानना नहीं चाहते हैं।"

मामले की पृष्ठभूमि

यह मामला 97 साल की उम्र के एक स्वतंत्रता सेनानी से संबंधित है, जिसे पेंशन से वंचित कर दिया गया है।

रिपोर्ट के अवलोकन के बाद अदालत ने कहा कि,

"न तो जिला कलेक्टर और न ही संबंधित तहसीलदार ने राज्य सरकार और केंद्र सरकार, दोनों की स्वतंत्रता सेनानी पेंशन योजना को समझा है, और उन्होंने एक नियमित फाइल के रूप में, इस मामले से भी निपटा है।"

कोर्ट का अवलोकन

न्यायालय ने अपने आदेश में टिप्पणी की कि,

"यह एक आश्चर्यजनक तथ्य है कि यह न्यायालय स्वतंत्रता सेनानियों के दयनीय मामलों को बार-बार देख रहा है। समय-समय पर, न्यायालयों ने बहुत कड़ा रुख अपनाया है और सरकार के अधिकारियों/नौकरशाहों को इस मुद्दे पर संवेदनशील बनाने के निर्देश दिए हैं; हालाँकि, सरकारी अधिकारियों/नौकरशाहों का रवैया नहीं बदला है। कोई भी विवेकशील व्यक्ति अपनी चेतना के साथ इस तरह के नौकरशाही व्यवहार को स्वीकार नहीं करेगा, खासतौर पर स्वतंत्रता सेनानी के मामलों में।"

इसके अलावा, तत्काल मामले से संबंधित वास्तविक तथ्य का पता लगाने के लिए जहां याचिकाकर्ता, एक 97 वर्षीय स्वतंत्रता सेनानी पेंशन की मांग कर रहा है, और पूर्ण न्याय करने के लिए, अदालत ने मामले से संबंधित संपूर्ण मूल फ़ाइल की मांग की है।

इसलिए, प्रतिवादी जिला कलेक्टर और तहसीलदार के लिए उपस्थित होने वाले सरकारी अधिवक्ता को अदालत ने निर्देश दिया कि वे सभी प्रासंगिक रिकॉर्ड के साथ मूल फाइलों को अदालत के समक्ष एक सीलबंद आवरण में प्रस्तुत करें।

गुरुवार (03.12.2020) को आगे की सुनवाई के लिए मैटर पोस्ट किया गया है।

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