बिना ऑक्यूपेंसी सर्टिफिकेट हासिल किए फ्लैट खरीददारों से मेंटेनेंस चार्ज नहीं ले सकता बिल्डर: एनसीडीआरसी
राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग (एनसीडीआरसी) ने हाल ही में कहा कि ऑक्यूपेंसी सर्टिफिकेट प्राप्त न कर पाने की स्थिति परियोजना पर रखरखाव का खर्च खरीदारों से नहीं लिया जा सकता है।
पीठासीन सदस्य एसएम कांतिकर और सदस्य बिनॉय कुमार ने बिल्डरों को छह महीने के ग्रेस पीरियड समेत, पज़ेशन की प्रस्तावित तिथि से 9% प्रति वर्ष की दर से विलंब मुआवजे का भुगतान करने का निर्देश दिया।
पृष्ठभूमि
उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 की धारा 21(ए)(i) सहपठित धारा 12(1)(सी), और धारा 13(6) सहपठित नागरिक प्रक्रिया संहिता नियम 8 आदेश 1 के तहत उपभोक्ता शिकायत दर्ज की गई थी। उपभोक्ता 11 शिकायतकर्ताओं का प्रतिनिधित्व कर रहा है, जिन्हें विरोधी पार्टी के प्रोजेक्ट में फ्लैट आवंटित किए गए थे। विरोधी पक्ष निर्माण व्यवसाय में लगा हुआ है।
शिकायतकर्ता के मामले में प्रोजेक्ट में फ्लैटों के आवंटन के लिए आवेदन किया गया था, जिसमें कुल 70 यूनिट्स शामिल थीं। शिकायतकर्ताओं ने दावा किया कि उन्होंने आवासीय फ्लैट बुक किए थे और बिना ऑक्यूपेंसी सर्टिफिकेट और वादा की गई सुविधाओं के बिना ही अपार्टमेंट का अधूरा कब्जा आवंटित कर दिया गया।
इसके अलावा, ऑक्यूपेंसी सर्टिफिकेट के बिना, विरोधी पक्ष ने निर्माण समझौते का उल्लंघन करते हुए, शिकायतकर्ताओं पर मेटेंनेस चार्ज और एडवांस मेंटनेंस लगाना शुरू कर दिया।
शिकायतकर्ताओं की ओर से पेश एडवोकेट चंद्रचूड़ भट्टाचार्य और मनोज कुमार दुबे ने तर्क दिया कि जब तक ऑक्यूपेंसी सर्टिफिकेट प्राप्त नहीं हो जाता, तब तक परियोजना का मेंटेनेंस विरोधी पक्ष की लागत और खर्च पर किया जाएगा।
दूसरी ओर, विरोधी पक्षों ने कहा कि बाजार की बदलती परिस्थितियों और COVID-19 महामारी के कारण लागत बढ़ी, जिससे परियोजना में देरी हुई। इसके एवज में फरवरी 2020 में विलंब जुर्माना भी अदा किया गया।
विरोधी पक्ष की ओर से पेश एडवोकेट प्रभा स्वामी, जिनके साथ निखिल स्वामी और दिवा स्वामी भी थे, उन्होंने तर्क दिया कि यूनिट्स का निर्माण पूरा होने पर, शिकायतकर्ताओं ने बिक्री विलेख को निष्पादित करने के लिए उन पर दबाव बनाना शुरू कर दिया। पजे़शन न लेने की सलाह देने के बावजूद उन्होंने फ्लैटों का पज़ेशन ले लिया।
निष्कर्ष
एनसीडीआरसी ने शिकायत और लिखित निवेदन पर गौर करने के बाद पाया कि निर्माण पूरा करने में विरोधी पक्ष की ओर से अनुचित देरी की गई। यह भी नोट किया गया कि शिकायतकर्ताओं ने अपने फ्लैटों के लिए पर्याप्त राशि का भुगतान किया था।
यह देखा गया कि 22 महीने की निर्धारित अवधि के साथ-साथ छह महीने की अतिरिक्त छूट अवधि के भीतर, विपक्षी पार्टी प्रोजेक्ट का निर्माण करने में विफल रही और उसने आज तक ऑक्यूपेंसी सर्टिफिकेट प्राप्त नहीं किया है।
यह कहा गया, "इसलिए, हमारा विचार है कि शिकायतकर्ता उचित विलंब मुआवजा पाने के हकदार हैं। इसके अलावा, आज तक एक ऑक्यूपेंसी सर्टिफिकेट प्राप्त नहीं करना सेवा की गंभीर कमी है।"
कोर्ट ने विंग कमांडर अरिफुर रहमान खान बनाम डीएलएफ सदर्न होम्स प्रा लिमिटेड में सुप्रीम कोर्ट के फैसले का हवाला दिया, जहां यह कहा गया था, "डेवलपर की चूक के कारण फ्लैट खरीदारों को पीड़ा और उत्पीड़न का सामना करना पड़ता है। फ्लैट खरीदार अपने भविष्य के संबंध में वैध मूल्यांकन करते हैं, जो उस फ्लैट के आधार पर होता है, जिसे खरीदा गया है और उपयोग और व्यवसाय के लिए उपलब्ध है। इन वैध उम्मीदों पर विश्वास किया जाता है, जब वर्तमान मामले में डेवलपर एक संविदात्मक दायित्व की पूर्ति में वर्षों की देरी के लिए दोषी है।"
इसके अलावा, वर्तमान समय में एक उचित ब्याज दर तय करने के लिए, आयोग ने ग्रेस रियलटेक प्राइवेट लिमिटेड बनाम अभिषेक खन्ना और अन्य में शीर्ष अदालत के फैसले पर भरोसा किया। इसने ब्याज दर तय करते समय प्रतिस्पर्धी हितों के संतुलन पर जोर दिया। इसके बाद, आयोग ने निर्देश दिया कि वर्तमान मामले में 9% की देरी का मुआवजा उचित है।
इसने ऑक्यूपेंसी सर्टिफिकेट प्राप्त होने तक मेंटेनेंस चार्ज वसूलने के सवाल का विरोध किया। यह नोट किया गया कि शिकायतकर्ता ऑक्यूपेंसी सर्टिफिकेट प्राप्त होने के बाद ही रखरखाव शुल्क का भुगतान करने के लिए उत्तरदायी होंगे।
केस शीर्षक: मधुसूदन रेड्डी आर और अन्य बनाम वीडीबी व्हाइटफील्ड डेवलपमेंट प्राइवेट लिमिटेड और अन्य।
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