[बीएसएफ] जम्मू एंड कश्मीर हाईकोर्ट ने पति के जीवनकाल के दौरान लंबित तलाक की कार्यवाही के बावजूद विधवा के फैमिली पेंशन का अधिकार बरकरार रखा

Update: 2023-04-05 07:26 GMT

जम्मू एंड कश्मीर एंड लद्दाख हाईकोर्ट ने हाल ही में फैसला सुनाया कि पति की मृत्यु के बाद विधवा को फैमिली पेंशन से वंचित नहीं किया जा सकता, क्योंकि उसके जीवनकाल के दौरान, दंपति के बीच तलाक की कार्यवाही चल रही थी।

जस्टिस राहुल भारती ने यह टिप्पणी उस विधवा की याचिका पर सुनवाई करते हुए की, जिसमें उनके मृत पति की पेंशन की मांग की गई थी, जो सीमा सुरक्षा बल (बीएसएफ) में 2015 तक कांस्टेबल के रूप में कार्यरत थे।

वर्तमान मामले में विधवा एकमात्र कानूनी उत्तराधिकारी है, क्योंकि उसके पति के माता-पिता अब नहीं रहे और दंपति के बच्चे नहीं हैं।

याचिकाकर्ता ने अपने पति के निधन के बाद फैमिली पेंशन जारी करने की मंजूरी के लिए कमांडिंग ऑफिसर के समक्ष आवेदन दिया, जिसे इस आधार पर खारिज कर दिया गया कि उसका नाम मृतक के पेंशन रिकॉर्ड में नहीं पाया गया।

प्रतिवादियों ने अपना पक्ष स्पष्ट करते हुए कहा कि याचिकाकर्ता की तलाक याचिका के कारण फैमिली पेंशन की प्रक्रिया के लिए उसका मामला नहीं लिया जाना है।

उत्तरदाताओं ने आगे इस तथ्य का उल्लेख किया कि याचिकाकर्ता अपने जीवन के दौरान अपने मृत पति के खिलाफ रखरखाव की कार्यवाही से अदालत द्वारा दिए गए मासिक भरण-पोषण की कमाई कर रही है।

जस्टिस भारती ने मामले पर विचार करने के बाद कहा कि फैमिली पेंशन कानून के तहत अधिकार है, जिसे कानून द्वारा अनुमति मिलने पर ही हटाया जा सकता है।

पीठ ने रेखांकित किया,

"प्रतिवादियों द्वारा जवाब/आपत्तियों में कानून का भी प्रावधान उद्धृत नहीं किया गया कि प्रतिवादी किस आधार पर याचिकाकर्ता को फैमिली पेंशन की स्वीकृति और अनुदान के उसके दावे से इनकार करने में सक्षम बना रहे हैं।"

यह देखते हुए कि पारिवारिक पेंशन अर्जित करने का मामला कानूनी दिया गया अधिकार है, जो किसी व्यक्ति को केवल उस स्थिति में वंचित किया जा सकता है जब कानून इस तरह की अयोग्यता को सक्षम/अनुमति दे रहा हो, जो कि वर्तमान मामला नहीं है, पीठ ने कहा कि प्रतिवादियों द्वारा लिया गया स्टैंड बिना किसी कानूनी आधार के तुच्छ के अलावा कुछ नहीं है।

उसी के मद्देनजर प्रतिवादियों को सभी पूर्वव्यापी लाभों के साथ याचिकाकर्ता के पक्ष में नियमों के तहत पारिवारिक पेंशन स्वीकृत करने और देने का निर्देश दिया गया।

पीठ ने आगे निर्देश दिया कि यह प्रक्रिया उत्तरदाताओं को यह आदेश प्राप्त होने की तारीख से तीन महीने की अवधि के भीतर पूरी की जानी चाहिए।

केस टाइटल: सोनिका शर्मा बनाम भारत संघ

साइटेशन: लाइवलॉ (जेकेएल) 74/2023

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