वकील के लिए यह सुनिश्चित करना बाध्यकारी है कि अदालत के समक्ष पेश दलीलें समझने में आसान होंः दिल्‍ली हाईकोर्ट

Update: 2022-05-10 08:51 GMT

दिल्ली हाईकोर्ट

दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा है कि ऐसे मामलों में जहां पार्टियों का प्रतिनिधित्व वकील करते है, उनमें वकील के लिए यह सुनिश्चित करना बाध्यकारी है कि अदालत के समक्ष पेश दलीलें समझने में आसान (सुबोध) हों।

जस्टिस सी हरि शंकर ने एक मामले में नागरिक प्रक्रिया संहिता के आदेश VII नियम 14 के तहत दायर एक आवेदन पर नाराजगी व्यक्त करते हुए कहा कि आवेदन में एक भी वाक्य ऐसा नहीं है जो ग्रामर या विन्यास के स्तर पर सही हो।

उन्होंने कहा, 

"... किसी को यह समझने के लिए कि आवेदन क्या कहना चाहता है, अपनी कल्पना पर जोर देना होगा।"

जज ने कहा,

"ऐसी दलीलों से वकीलों की साख कम होती है, क्योंकि उन्होंने अदालत के समक्ष याचिका दायर करने में पूरी तरह से उदासीन रवैया अपनाया। उन्होंने यह भी संकेत दिया कि प्रथम दृष्टया, न्यायालय और न्यायिक प्रक्रिया के प्रति उनमें उचित सम्मान की कमी है।"

इस प्रकार, कोर्ट ने 24 फरवरी, 2022 के आक्षेपित आदेश के खिलाफ दायर याचिका को खारिज कर दिया। ट्रायल कोर्ट के आदेश में याचिकाकर्ता जो कि दीवानी मुकदमे में प्रतिवादी है, के आवेदन को आदेश VII नियम 14 के तहत 5000 रूपये के जुर्माने के साथ खारिज कर दिया गया था।

प्रतिवादी ने दावा किया था कि उसने 4 अगस्त, 2017 से 20 जून, 2018 तक याचिकाकर्ता को कपड़े की आपूर्ति की थी। जिसके एवज में याचिकाकर्ता को प्रतिवादी को 56.64,846 रुपये देने थे। इसलिए, मुकदमे में प्रतिवादी के पक्ष में और याचिकाकर्ता के खिलाफ उक्त राशि के लिए पेंडेंट लाइट और फ्यूचर इंटरेस्ट के साथ वाद दायर करने की तिथि से राशि और लागत की वसूली तक 18% प्रति वर्ष की दर से एक डिक्री की मांग की गई थी।

याचिकाकर्ता ने प्रतिवादी के मुकदमे के जवाब में एक लिखित बयान और एक जवाबी दावा दायर किया था, जिसमें सच्चाई का बयान (statement of truth) भी शामिल था। इसके बाद लिखित बयान के साथ काउंटर क्लेम के समर्थन में गवाहों के दो हलफनामे दायर किए गए।

इसके अलावा, याचिकाकर्ता ने कुछ अतिरिक्त दस्तावेजों को रिकॉर्ड में लेने के लिए सीपीसी के आदेश VII नियम 14(3)1 के तहत एक आवेदन दायर किया। आक्षेपित आदेश ने सीपीसी के आदेश VII नियम 14(3) के तहत उक्त आवेदन को खारिज कर दिया, जिसके खिलाफ याचिकाकर्ता ने हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया।

न्यायालय का विचार था कि वाणिज्यिक न्यायालय अधिनियम द्वारा संशोधित सीपीसी के आदेश XI नियम 1(10) के अर्थ में "उचित कारण", न्यायालय के समक्ष दस्तावेज दाखिल करने में लापरवाही तक नहीं बढ़ाया जा सकता है।

"उचित कारण", अनिवार्य रूप से, एक ऐसे कारण का उल्लेख करना चाहिए जो याचिकाकर्ता के नियंत्रण से बाहर रहा हो और जिसने याचिकाकर्ता को लिखित बयान के साथ संबंधित दस्तावेज दाखिल करने से रोका हो। तदनुसार, न्यायालय ने निष्कर्ष निकाला कि याचिकाकर्ता द्वारा अतिरिक्त दस्तावेजों को रिकॉर्ड में रखने की अनुमति नहीं देने का ‌वाणिज्यिक न्यायालय का निर्णय त्रुटिपूर्ण नहीं हो सकता है।

न्यायालय ने कहा, "इस न्यायालय के अनुच्छेद 227 क्षेत्राधिकार के प्रयोग में ऐसी त्रुट‌ि जिसमें पर्यवेक्षी सुधार की आवश्यकता हो या अन्य कोई त्रुटि मौजूद नहीं है।"

कोर्ट ने इन्हीं टिप्प‌ण‌ियों साथ याचिका खारिज कर दी।

केस शीर्षक: बेला क्रिएशन प्राइवेट लिमिटेड बनाम अनुज टेक्सटाइल्स

‌सिटेशन: 2022 लाइव लॉ (दिल्ली) 425

आदेश पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

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