बॉम्बे लॉयर्स एसोसिएशन ने सीजेआई बी.आर. गवई से जस्टिस यशवंत वर्मा के खिलाफ FIR दर्ज करने की मंजूरी देने का अनुरोध किया
बॉम्बे लॉयर्स एसोसिएशन (BLA) ने भारत के चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (CJI) बी आर गवई को पत्र लिखकर इलाहाबाद हाईकोर्ट के जस्टिस यशवंत वर्मा के खिलाफ FIR दर्ज करने की अनुमति देने का अनुरोध किया।
यह मामला तब सामने आया, जब दिल्ली में उनके सरकारी आवास से अधिकृत नहीं की गई नकदी' की भारी मात्रा बरामद हुई।
BLA के अध्यक्ष एडवोकेट अहमद अब्दी द्वारा हस्ताक्षरित इस पत्र में CJI से आग्रह किया गया कि वे सुप्रीम कोर्ट के फैसले K. वीरास्वामी बनाम भारत संघ के तहत मंजूरी प्रदान करें।
इस निर्णय में स्पष्ट किया गया कि हाईकोर्ट या सुप्रीम कोर्ट के किसी वर्तमान जज के खिलाफ आपराधिक मामला दर्ज करने से पहले CJI की पूर्व स्वीकृति अनिवार्य है।
पत्र की मुख्य बातें
पत्र में कहा गया,
"आवेदक आपसे अनुरोध कर रहा है कि आप जस्टिस यशवंत वर्मा, जो वर्तमान में इलाहाबाद हाईकोर्ट में जज हैं, उनके खिलाफ भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम 1988 और भारतीय न्याय संहिता, 2023 की प्रासंगिक धाराओं के तहत आपराधिक अभियोजन की अनुमति प्रदान करें।"
K. वीरास्वामी निर्णय के अनुसार हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के जज लोक सेवक होते हैं और भ्रष्टाचार अधिनियम के अंतर्गत अवांछनीय संपत्तियों के कब्जे जैसे अपराधों के लिए उत्तरदायी हैं।
न्यायिक स्वतंत्रता की रक्षा के लिए यह भी निर्धारित किया गय कि CJI की मंजूरी के बिना कोई आपराधिक मामला दर्ज नहीं किया जा सकता।
CJI यदि मानते हैं कि मामला असंगत है तो FIR दर्ज नहीं की जानी चाहिए।
भ्रष्टाचार अधिनियम के तहत अभियोजन की मंजूरी राष्ट्रपति द्वारा दी जाती है लेकिन वह मंजूरी CJI की सलाह पर आधारित होनी चाहिए।
आरोप और BLA का तर्क
BLA के अनुसार 15 मार्च 2025 को जस्टिस वर्मा के सरकारी आवास से जलती हुई नकदी बरामद हुई, जिसे कथित रूप से छिपाकर रखा गया था। यह भ्रष्टाचार अधिनियम की धारा 13(1)(e) और भारतीय न्याय संहिता, 2023 के तहत संज्ञेय अपराध है।
दिल्ली पुलिस आयुक्त द्वारा साझा की गई तस्वीरें और वीडियो साक्ष्य, न्यायिक निष्पक्षता और जन विश्वास को लेकर गंभीर चिंता पैदा करते हैं।
BLA ने चेताया कि FIR दर्ज न करना समानता के सिद्धांत और न्यायपालिका की विश्वसनीयता को नुकसान पहुंचा सकता है।
BLA की मांगें
जस्टिस यशवंत वर्मा के खिलाफ FIR दर्ज करने के लिए मंजूरी दी जाए।
सभी साक्ष्यों को सुरक्षित रखने के लिए दिल्ली पुलिस या CBI को निर्देश दिया जाए जैसे कि जली हुई नकदी, तस्वीरें और वीडियो।
इन-हाउस जांच समिति की रिपोर्ट की प्रति उपलब्ध कराई जाए, जो प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति को भेजी गई ताकि औपचारिक शिकायत दर्ज की जा सके।
पृष्ठभूमि
22 मार्च, 2025 को जब जस्टिस वर्मा के दिल्ली आवास के एक स्टोर-रूम में आग लगी तब बड़ी मात्रा में नकदी बरामद हुई। उस समय वह दिल्ली हाईकोर्ट के जज थे।
इसके बाद उन्हें उनके मूल कोर्ट इलाहाबाद हाईकोर्ट में ट्रांसफर कर दिया गया और उनसे न्यायिक कार्य वापस ले लिया गया।
8 मई, 2025 को तत्कालीन CJI संजीव खन्ना ने इन-हाउस जांच समिति की रिपोर्ट प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति को भेजी थी। यह समिति जस्टिस शील नागू (CJ, पंजाब एवं हरियाणा), जस्टिस जी.एस. संधावालिया (CJ, हिमाचल प्रदेश), और जस्टिस अनु शिवरामन (कर्नाटक हाईकोर्ट) की थी
दिल्ली हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस की प्रारंभिक रिपोर्ट और जस्टिस वर्मा की प्रतिक्रिया, साथ ही दिल्ली पुलिस द्वारा लिए गए फोटो और वीडियो, सुप्रीम कोर्ट की वेबसाइट पर सार्वजनिक किए गए थे। लेकिन अंतिम जांच रिपोर्ट अभी सार्वजनिक नहीं की गई।