बॉम्बे हाईकोर्ट ने पूर्व अंडर-19 भारतीय कप्तान के एक साल के लिए क्रिकेट से निलंबन को बरकरार रखा
बॉम्बे हाईकोर्ट ने पूर्व रणजी खिलाड़ी और अंडर-19 भारतीय टीम के पूर्व कप्तान किरण पोवार को मुंबई क्रिकेट एसोसिएशन की एपेक्स काउंसिल से हटाने के फैसले को बरकरार रखा। साथ ही उन पर एक साल के लिए क्रिकेट खेलने पर लगे प्रतिबंध को भी बरकरार रखा।
जस्टिस एसवी गंगापुरवाला और जस्टिस आरएन लड्डा की खंडपीठ ने पोवार द्वारा दायर याचिका पर यह आदेश पारित किया, जिन्होंने एमसीए के नैतिक अधिकारी के "हितों के टकराव" का दोषी पाए जाने के फैसले को चुनौती दी थी।
पोवार भारतीय महिला क्रिकेट टीम के कोच रमेश पोवार के भाई हैं।
जस्टिस वीके ताहिलरमानी (सेवानिवृत्त) ने 28 दिसंबर, 2021 को एमसीए के नैतिक अधिकारी के रूप में दीपन सुंदरलाल मिस्त्री की शिकायत के आधार पर दो पहलुओं में "हितों पर संघर्ष" पाया।
सबसे पहले, पोवार की एपेक्स काउंसिल के सदस्य के रूप में नियुक्ति के तुरंत बाद उनके भाई को एमसीए के लिए हेड कोच के रूप में नियुक्त किया गया; और दूसरा, पोवार गोरेगांव स्पोर्ट्स क्लब (जीएससी) के क्रिकेट कोच के रूप में अनुबंध पर थे, जबकि वे एपेक्स काउंसिल के सदस्य थे। इसके तहत वह जीएससी एमसीए के टूर्नामेंट में भाग लेंगे, इसलिए संघर्ष की स्थिति पैदा हुई।
हाईकोर्ट के समक्ष पोवार ने दावा किया कि उन्हें उपरोक्त में से किसी का भी खुलासा करने की आवश्यकता नहीं है। शिकायत दर्ज होने पर उनके वकील रमेश ने हाईकोर्ट को सूचित किया कि वह अब मुंबई की किसी भी टीम के कोच नहीं हैं और यहां तक कि पोवार भी जीएससी में कोच नहीं हैं, इसलिए हितों के टकराव का अस्तित्व समाप्त हो गया।
लेकिन एमसीए के वकील ए एस खांडेपारकर और विकास वारेकर ने कहा कि नैतिकता अधिकारी को एमसीए संविधान के नियम 39(3) के तहत आदेश पारित करने का अधिकार है। नियम भारतीय क्रिकेट प्रशासन में सुधारों की श्रृंखला पर भारत के पूर्व चीफ जस्टिस (सीजेआई) आर एम लोढ़ा समिति की सिफारिशों का तहते हैं और बीसीसीआई मामले में सुप्रीम कोर्ट द्वारा इनकी पुष्टि की गई है।
हाईकोर्ट ने कहा कि पोवार को अक्टूबर, 2019 में शीर्ष परिषद में नियुक्त किया गया। हालांकि, वह यह घोषित करने में विफल रहे कि उनके भाई को 2017-18 के बीच एमसीए के कोच के रूप में नियुक्त किया गया और उनका (भाई का) नाम विचाराधीन है।
हाईकोर्ट ने कहा,
"याचिकाकर्ता ने अपने हितों के टकराव की घोषणा नहीं की और सर्वोच्च परिषद सदस्य बन गया। याचिकाकर्ता ने नैतिकता अधिकारी सह लोकपाल द्वारा आयोजित पारदर्शिता को बनाए नहीं रखा।"
आदेश में कहा गया कि खुलासा एमसीए के संविधान की धारा 38(2) के तहत किया जाना चाहिए। अधिनियम की धारा 38(1)(v) के तहत कोई भी व्यक्ति जो प्रभाव की स्थिति में है, उसे खुलासा करना चाहिए कि दोस्त, रिश्तेदार या करीबी सहयोगी विचार क्षेत्र में कहां है।
खंडपीठ ने कहा,
"... सर्वोच्च परिषद का सदस्य होने के नाते व्यक्ति चयन के मामलों में प्रभावशाली स्थिति में होगा, इसलिए यह नहीं कहा जा सकता कि नैतिकता अधिकारी का निर्णय हाईकोर्ट के हस्तक्षेप के लिए प्रतिकूल है।"
खंडपीठ ने याचिका का निपटारा करते हुए कहा,
"यह नहीं कहा जा सकता कि दी गई सजा और/या पारित आदेश इस अदालत के लिए हस्तक्षेप करने के लिए आश्चर्यजनक रूप से असंगत है।"
केस टाइटल: किरण राजाराम पवार बनाम मुंबई क्रिकेट एसोसिएशन
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