बॉम्बे हाईकोर्ट ने 2013 से अलग रहने के दावे के बावजूद अपील अवधि के दौरान पुनर्विवाह करने वाली तलाकशुदा महिला को राहत देने से इनकार किया

Update: 2023-04-19 12:30 GMT

Bombay High Court

बॉम्बे हाईकोर्ट ने तलाक के फैसले के खिलाफ पति की तरफ से दायर अपील को खारिज करने की मांग करने वाली उस महिला को राहत देने से इनकार कर दिया है,जिसने अपनी अंतरिम अर्जी में कहा था कि वह पहले ही किसी और से शादी कर चुकी है,इसलिए उसके पति की अपील को खारिज कर दिया जाए।

अदालत ने कहा कि ‘‘अपील अवधि (90 दिनों की) के भीतर पति द्वारा दायर की गई फैमिली कोर्ट की अपील को, आवेदक (पत्नी) द्वारा दूसरी शादी करने और वह भी अपील की अवधि के दौरान, निष्फल नहीं माना जाएगा।’’

हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 15 पति-पत्नी को उस अवधि में पुनर्विवाह करने की अनुमति नहीं देती है, जब तलाक के खिलाफ अपील लंबित हो या फैमिली कोर्ट द्वारा तलाक की डिक्री पारित किए हुए एक वर्ष से कम समय हुआ हो। धारा 19 पीड़ित पति या पत्नी को अपील दायर करने के लिए कम से कम 90 दिन का समय देती है।

जस्टिस आरडी धानुका और जस्टिस एमएम सथाये की खंडपीठ ने कहा कि यह ‘‘मुकदमेबाजों के बीच बढ़ती उस प्रवृत्ति का एक उत्कृष्ट उदाहरण है, जो एक स्थिति बनाकर कानून के प्रावधानों को खत्म करने की कोशिश करती है, जिसे उलटना मुश्किल है, जिससे लंबित कार्यवाही निष्फल हो जाती है।’’

इस जोड़े की शादी 2006 में हुई थी और उनका एक बच्चा भी है। पत्नी द्वारा दायर एक याचिका पर फैमिली कोर्ट ने 2019 में उसकी तलाक की मांग को मंजूर कर लिया और उसे बच्चे की स्थायी कस्टडी भी दे दी।

पति ने फैसले के खिलाफ हाईकोर्ट में अपील दायर की। अंतरिम राहत के तौर पर फैमिली कोर्ट के आदेश पर रोक लगा दी गई थी। इसके बाद पत्नी ने वर्तमान आवेदन दायर कर हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया और शिकायत को खारिज करने की मांग की।

अपने एडवोकेट विक्रमादित्य देशमुख के माध्यम से पत्नी ने तर्क दिया कि उसने पहले ही एक जर्मन नागरिक से विवाह कर लिया है और वह इस बात से अनजान थी कि उसके पति ने अपील दायर की है। उसने कहा कि अपील के कागजात उसकी शादी के तीन दिन बाद उसे मिले थे।

उसने आगे कहा कि वह दोनों 10 साल से अधिक समय से अलग रह रहे थे और उनकी शादी पूरी तरह से टूट गई थी। अतः विवाह-विच्छेद की डिक्री पर रोक को समाप्त किया जाना चाहिए, अपील को खारिज किया जाना चाहिए और वैकल्पिक रूप से अपील में तेजी लाई जानी चाहिए।

पति ने इस आधार पर आवेदन का विरोध किया कि उसकी पत्नी ने जल्दबाजी में शादी कर ली और तुरंत ही बच्चे के पासपोर्ट के लिए आवेदन कर दिया ताकि उसे अपने बेटे तक पहुंच से वंचित किया जा सके। उसने आगे कहा कि अदालत ने उसकी पत्नी को बेटे को विदेश ले जाने से रोक दिया और पत्नी के आचरण को देखते हुए तलाक पर भी रोक लगा दी।

पति ने दावा किया कि दूसरी शादी को कानूनी रूप से पंजीकृत या सामाजिक रूप से स्वीकार नहीं किया जा सकता है।

शुरुआत में अदालत ने कहा कि तलाक की डिक्री पर पत्नी की दूसरी शादी से पड़ने वाले प्रभाव पर अंतरिम स्तर पर विचार करने की मांग की गई थी। खासतौर पर तब जब तलाक फाइनल भी न हुआ हो।

हाईकोर्ट ने कहा,

‘‘अपील की अवधि समाप्त होने की प्रतीक्षा किए बिना जल्दबाजी में पुनर्विवाह करने के उसके आचरण के आलोक में धारा 15 के उल्लंघन से पति द्वारा दायर अपील के अंतिम परिणाम पर पड़ने वाले प्रभाव को सुनवाई के अंतिम चरण में ही निपटाया जा सकता है। हमारे विचार में, लंबित अपीलों के अंतिम परिणाम पर इस तरह के पुनर्विवाह (उक्त अधिनियम की धारा 15 के उल्लंघन में) का प्रभाव, प्रत्येक मामले के तथ्यों पर निर्भर करता है।’’

अदालत उस ‘‘साहस’’ से हैरान थी जिसके साथ पत्नी हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 की धारा 15 के उल्लंघन में दूसरी शादी करने के आधार पर अपील को खारिज करने की मांग कर रही थी।

अदालत ने कहा कि इन तर्कों पर अंतरिम चरण में विचार नहीं किया जा सकता है और इसलिए अंतरिम चरण में अपील को खारिज करने से इनकार कर दिया।

केस टाइटल- आकाश कंवरलाल कमल बनाम हिमानी आकाश कमल

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