बॉम्बे हाईकोर्ट ने स्टेट बोर्ड से कक्षा 10 और 12 की परीक्षा फीस वापस करने पर विचार करने को कहा

Update: 2021-07-31 09:55 GMT

बॉम्बे हाईकोर्ट ने गुरुवार को महाराष्ट्र स्टेट बोर्ड ऑफ सेकेंडरी एंड हायर सेकेंडरी एजुकेशन के अध्यक्ष को COVID19 महामारी के कारण इस साल की कक्षा दसवीं और बारहवीं की बोर्ड परीक्षा रद्द करने के मद्देनजर परीक्षा फीस वापस करने की मांग वाली याचिका पर विचार करने के लिए कहा है।

मुख्य न्यायाधीश दीपांकर दत्ता और न्यायाधीश जीएस कुलकर्णी की खंडपीठ ने सांगली के एक 80 वर्षीय सेवानिवृत्त स्कूल प्रिंसिपल प्रतापसिंह चोपदार की जनहित याचिका का निपटारा किया। याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि असंख्य परिवारों ने कक्षा दसवीं और बारहवीं कक्षा की परीक्षाओं के लिए क्रमशः 415 और 520 रूपये परीक्षा फीस जमा की थी, वह वापस की जाए।

याचिकाकर्ता ने इसके अलावा कहा कि फीस वापस नहीं करना राज्य निकाय द्वारा लगभग 150 करोड़ रुपये का "अन्यायपूर्ण संवर्धन" होगा। याचिकाकर्ता ने अपने वकील मनोज शिरसत के माध्यम से अधिवक्ता पद्मनाभ पिसे की सहायता से यह प्रस्तुत किया।

याचिकाकर्ता ने चेयरमैन को 22 जून को अपने अभ्यावेदन में कहा था कि,

"मार्च 2020 से COVID-19 के कारण कई माता-पिता अधिक वित्तीय कठिनाइयों का सामना कर रहे हैं। इसके बावजूद माता-पिता ने फीस जमा कर दी। ऐसी स्थिति में बोर्ड को फीस वापस करने का फैसला करना चाहिए।"

एडवोकेट शिरसत ने बताया कि उनके मुवक्किल को इस पत्र का कोई जवाब नहीं मिला है। सोलह लाख एसएससी छात्रों और 14 लाख एचएससी छात्रों ने परीक्षा के लिए नामांकन किया था। उन्होंने कहा कि जरूरतमंद परिवारों में से एक और परिवार ने जनहित याचिका में हस्तक्षेप किया है।

राज्य के वकील भूपेश सामंत ने जनहित याचिका का विरोध करते हुए कहा कि फीस नाममात्र है और आंतरिक मूल्यांकन के लिए कदम उठाए गए हैं। उन्होंने तर्क दिया कि वैकल्पिक मूल्यांकन में भी खर्च किया गया होगा।

एडवोकेट शिरसत ने यह कहते हुए तर्क का प्रतिवाद किया कि स्कूलों को आंतरिक मूल्यांकन और बोर्ड को परिणाम भेजने की जिम्मेदारी सौंपी गई है। उन्होंने कहा कि प्रश्नपत्र की छपाई न होने के कारण धनराशि की बचत हुई।

पीठ ने दोनों पक्षों को सुनने के बाद अध्यक्ष से याचिकाकर्ता के प्रतिनिधित्व पर विचार करने और 4 सप्ताह के भीतर फीस वापस नहीं करने का फैसला पर एक तर्कपूर्ण आदेश पारित करने को कहा।

पीठ ने अंत में कहा कि हमारे विचार में मामले को लंबित रखने से कोई उद्देश्य पूरा नहीं होता है। यदि बोर्ड के अध्यक्ष प्रतिनिधित्व पर विचार करने के लिए आगे बढ़ते हैं तो न्याय के हित में पर्याप्त रूप से कार्य किया जाएगा। ऐसी स्थिति में प्रार्थना को स्वीकार नहीं किया जा सकता है, एक तर्कपूर्ण आदेश पारित हो सकता है। यदि वास्तव में अध्यक्ष को चिंता सारवान प्रतीत होती है, तो हम आशा और विश्वास करते हैं कि अध्यक्ष फीस को वापस करने के लिए उचित आदेश पारित करेंगे।

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